दिल्लीः आज बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होलिका दहन है। होलिका दहन के लिए 5.30 घंटे का सिर्फ एक ही मुहूर्त है। आपको बता दें कि इस साल पूर्णिमा दो दिन तक रहेगी, जो कि आज शाम को 4.18 पर शुरू होगी और इसके साथ भद्रा दोष भी रहेगा, लेकिन रात में 12.40 से होली जलाने का मुहूर्त रहेगा।

इससे पहले 1994 में ऐसा हुआ था। वहीं, धुरेंडी यानी रंग वाली होली पूरे देश में 8 तारीख को मनेगी। मतलब देश के ज्यादातर राज्यों में होली जलने के 24 घंटे बाद ही रंग खेला जाएगा। आज गुरु और शनि खुद की राशि में और शुक्र उच्च स्थिति में है। साथ ही केदार, हंस, मालव्य, चतुष्चक्र और महाभाग्य नाम के पांच बड़े योग बन रहे हैं। सितारों का ऐसा दुर्लभ योग पिछले 700 सालों में नहीं बना। इस संयोग में होने वाला होलिका दहन शुभ रहेगा।

ज्योतिषाचार्यों कहना है कि इन योग में होलिका दहन होना देश के लिए शुभ रहेगा। जिससे देश की अर्थव्यवस्था सुधरेगी। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश मजबूत होगा। बीमारियां कम होंगी।

कैसे करें होली पूजा, दहनः  ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक होली पूजन और दहन मुहूर्त के बारे में कहते हैं कि प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के बाद अगले ढाई घंटे में भद्रा के रहते पूजा तो कर सकते हैं, लेकिन होलिका दहन भद्रा दोष खत्म होने के बाद करना चाहिए। इसलिए शाम 6.24 से 6.48 तक होली पूजा का मुहूर्त है। ये गोधुलि बेला का समय रहेगा। वहीं, होलिका दहन का मुहूर्त रात 12.40 से सुबह 5.56 के बीच रहेगा।

कैसे करें होली के दिन पूजाः होलिका पूजा से पहले भगवान नृसिंह फिर प्रहलाद का ध्यान कर के प्रणाम करें। उन्हें चंदन, अक्षत और फूल सहित पूजन सामग्री चढ़ाकर नमस्कार करें। इसके बाद होली की पूजा करें। पूजा करते समय पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह होना चाहिए।

इस दिन घर में बने हुए 7 तरह के पकवानों और पूजन सामग्री से होलिका पूजा होती है। भोग भी लगाया जाता है। साथ ही होलिका दहन देखना भी शुभकारी माना जाता है। मान्यता है इससे मन की नकारात्मकता का भी दहन होता है और मन की ऊर्जा बढ़ती है।

क्यों माथे पर लगाई जाती है होली की राखः  त्रेतायुग की शुरुआत में लोगों की रक्षा के लिए धरती पर पहला यज्ञ हुआ तो भगवान विष्णु ने उसमें से थोड़ी सी राख अपने सिर पर लगाई और थोड़ी हवा में उड़ा दी। इसके बाद ऋषियों ने भी ऐसा ही किया और जाना की हवन की राख को शरीर पर लगाने से सेहत से जुड़ी परेशानियां दूर होती है। तब से ये परंपरा चली आ रही है। सिर पर राख लगाने को धुलि वंदन कहते हैं। इसी से धुरेंडी पर्व बना, जिस दिन हम रंग गुलाल से खेलते हैं।

होली से जुड़ी मान्यताएं…

  • बसंत ऋतु के आने पर मौसम सुहाना हो जाता है। इस वक्त न तो ज्यादा गर्मी होती है और न ही ज्यादा ठंड। ज्यादातर सभ्यताओं में आग और पानी से जुड़े पर्व वसंत के स्वागत में हैं। होली भी वसंत का रूप है। पुराने समय में रंग उड़ाकर इस ऋतु के आने पर उत्सव मनाते थे। इसलिए इसे वसंतोत्सव भी कहते हैं।
  • फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को कश्यप ऋषि के द्वारा अनुसूया के गर्भ से चंद्रमा का जन्म हुआ था। इसलिए इस तिथि पर चंद्रमा की विशेष पूजा और अर्घ्य देने का विधान बताया गया है। फाल्गुन महीने की पूर्णिमा पर चंद्रमा की पूजा करने से रोग नाश होता है। इस त्योहार पर पानी में दूध मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए।
  • समुद्र मंथन के दौरान फाल्गुन पूर्णिमा पर महालक्ष्मी अवतरित हुई थीं। यही कारण है कि लक्ष्मी जयंती फाल्गुन पूर्णिमा को मनाई जाती है। लक्ष्मी जयंती के दिन को काफी शुभ माना जाता है, इस दिन किसी भी काम की शुरुआत कर सकते हैं। इस दिन मां लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की पूजा भी की जाती है।
  • पुराने समय में फाल्गुन महीने की पूर्णिमा पर फसलें पक जाती थीं। तब उत्सव मनाते थे। ये परंपरा आज भी है। होली के वक्त खासतौर पर गेहूं की फसल पक जाती है।
  • इस फसल के पकने की खुशी में होली मनाने की परंपरा है। इसलिए किसान जलती हुई होली में नई फसल का कुछ हिस्सा चढ़ाते हैं और खुशियां मनाते हैं। होली की आग में इसलिए डालते हैं क्योंकि आग के जरीये ही वो भगवान तक पहुंचती है। इसे यज्ञ की तरह माना गया है।

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