मुंबईः इस धुंधली तस्वीर में दिखाई देने वाले बच्चे को पहचान रहे हैं। नहीं तो चलिए आपको बताते हैं कि यह बच्चा कौन है। इस बच्चे का जन्म एक ऐसे खानदान में हुआ, जहां टैलेंट का खान था। लेकिन जन्म के कुछ साल बाद मां का आंचल सिर से उठ गया। फिर जिंदगी में दर-दर की ठोकरें मिलीं। कभी नानी-नानी के पास बचपन गुजरा तो कभी मौसी के पास वक्त गुजारा, लेकिन कहते हैं कि किस्मत से बलवान कुछ नहीं। कुछ ऐसा ही इस बच्चे के साथ भी हुआ और उसने अपनी काबिलियत के दम पर नाम, पैसा, शोहरत, रुतबा… सब कमाया। इसे देश के बड़े-बड़े अवॉर्ड्स पद्म श्री, पद्म विभूषण से नवाजा जा चुका है। इसने हाल ही में पाकिस्तान में घुसकर हमला भी बोला है। अभी भी नहीं पहचाना?

जनाब यह बच्चा और कोई नहीं, बल्कि मशहूर स्क्रीन राइटर्स जावेद अख्तर (Javed Akhtar) हैं, जिनकी इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। दरअसल जावेद साहब एक कार्यक्रम में शामिल होने केलिए लाहौर गए थे और वहां की आवाम के बीच बैठकर ही पाकिस्तान को आईना दिखा दिया। उन्होंने वहां पर कहा कि ‘हमने तो नुसरत और मेहंदी हसन के बड़े-बड़े फंक्शन किए, लेकिन आपके मुल्क में तो लता मंगेशकर का कोई फंक्शन नहीं हुआ।’ उन्होंने ये भी कहा कि उन्होंने मुंबई में हमला होते हुए देखा है और वे लोग नार्वे या इजिप्ट से नहीं आए थे। वे लोग आप ही (पाकिस्तान) के मुल्क में घूम रहे हैं। अगर हर हिंदुस्तानी के दिल में ये शिकायत है तो बुरा नहीं मानना चाहिए।

जावेद अख्तर के इस बयान के बाद देश में हर तरफ उनकी तारीफ हो रही है। लोग उनकी हिम्मत की दाद दे रहे हैं। वो अपने बेबाक बयानों की वजह से खूब सुर्खियों में रहते हैं और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी काबिलियत का खूब परचम लहराया है।

जावेद अख्तर का जन्म 1945 में ग्वालियर में हुआ था। उनके पिता जान निसार अख्तर बॉलीवुड फिल्म सॉन्ग राइटर और उर्दू कवि थे। उनके दादा मुज़्तर खैराबादी एक कवि थे, जैसे उनके दादा के बड़े भाई बिस्मिल खैराबादी थे। परदादा फ़ज़ल-ए-हक खैराबादी इस्लाम के एक धार्मिक विद्वान थे, जिन्होंने 1857 में धार्मिक कारणों से अंग्रेजी के खिलाफ जिहाद की घोषणा की थी।

जावेद अख्तर का मूल नाम जादू था, जो उनके पिता द्वारा लिखी गई एक कविता की एक पंक्ति से लिया गया था: ‘लम्हा, लम्हा किसी जादू का फसाना होगा’। उन्हें जावेद का आधिकारिक नाम दिया गया था, क्योंकि ये जादू शब्द के सबसे करीब था। उनकी छोटी उम्र में ही उनकी मां का निधन हो गया। फिर उन्होंने कुछ समय लखनऊ में नाना-नानी के पास बिताया। इसके बाद मौसी के पास अलीगढ़ चले गए। उन्होंने भोपाल से कॉलेज किया था।

1970 के दशक से पहले आमतौर पर स्क्रिप्ट, कहानी, डायलॉग्स के लिए एक ही राइटर होने की कोई अवधारणा नहीं थी, ना ही राइटर्स को फिल्मों में कोई क्रेडिट दिया जाता था। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में स्क्रीन राइटिंग लिखने वालों को खास तवज्जो नहीं दी जाती थी, लेकिन वे जावेद अख्तर और सलीम खान ही हैं, जिनकी बदौलत स्क्रीन राइटर्स को फिल्मों में क्रेडिट दिया जाने लगा। उनका नाम भी हर जगह छपने लगा, इसलिए उन्हें पहचान मिलने लगी और अच्छा पैसा भी। इस जोड़ी ने अपने टैलेंट की बदौलत खूब नाम कमाया।

हालांकि, जावेद अख्तर और सलीम खान को स्क्रिप्ट राइटर बनने का पहला मौका एक्टर राजेश खन्ना ने दिया था। वो फिल्म थी ‘हाथी मेरे साथी’। जावेद ने एक इंटरव्यू में बताया था कि एक दिन वे सलीम साहब के पास गए और कहा कि श्री देवर ने उन्हें एक बड़ा साइन अमाउंट दिया है, जिससे वो अपने बंगले ‘आशीर्वाद’ का पेमेंट पूरा कर सकते हैं, लेकिन मूवी रीमेक थी और मूल स्क्रिप्ट संतोषजनक नहीं थी, उन्होंने हमसे कहा कि अगर हम स्क्रिप्ट ठीक कर सकें तो वो सुनिश्चित करेंगे कि हमें पैसा और क्रेडिट दोनों मिले।’

सलीम और जावेद ने साथ मिलकर ‘जंजीर’ लिखी, जो सुपरहिट रही। फिर उन्होंने ‘दीवार’ और ‘शोले’ जैसी फिल्म भी लिखी। दोनों ने बतौर राइटर खूब नाम कमाया। दोनों ने मिलकर 24 फिल्में लिखीं, जिनमें से 20 हिट रही। लेकिन फिर ये जोड़ी अलग हो गई।

जावेद अख्तर ने कई फिल्मों के गाने लिखे हैं। डायलॉग्स लिखे हैं। उन्हें पांच नेशनल अवॉर्ड मिल चुके हैं। 1999 में उन्हें पद्म श्री से नवाजा गया था। फिर 2007 में पद्म भूषण भी मिला।

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