दिल्लीः 26 जनवरी 1930 की सुबह से हिंदुस्तान के हर कोने में उत्सव का माहौल है। खादी पहने और हाथों में भारत का तिरंगा झंडा लिए स्त्री-पुरुष, बूढ़े-बच्चे सब आधुनिक युग के सबसे बड़े उत्सव को मनाने अपने घरों से निकल रहे हैं। यह उत्सव था पूर्ण स्वराज का। उत्सव भारत को आजाद करवाने का। निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक गांव-गांव में, शहर-शहर में जैसे ही सुबह के आठ बजे पूरे भारतवर्ष में वंदे मातरम् के उद्घोष और गीतों के साथ भारत का तिरंगा फहराया जाने लगा। पेशावर से लेकर मद्रास तक और कलकत्ता से लेकर अहमदाबाद तक- सभी शहरों में, कस्बों और गांवों में तिरंगा फहराने का कार्यक्रम।
कांग्रेस के दिसंबर, 1929 के लाहौर अधिवेशन में युवा अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में पहली बार देश ने अंग्रेजी हुकूमत को संवैधानिक सुधारों की अर्जी देने और स्वशासन की क्रमिक रियायत देने की परंपरा को तोड़ते हुए सीधे देश की सब तरह से आज़ादी की घोषणा कर दी। इसे पूर्ण स्वराज कहा गया।
पूर्ण स्वराज के इस संकल्प को जन-जन तक पहुंचाने के लिए 06 जनवरी, 1930 को इलाहाबाद में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई, जिसमें उसी महीने की 26 जनवरी को पूरे देश में स्वाधीनता दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। 26 जनवरी की तारीख इसलिए तय की गई कि वह जनवरी महीने का आखिरी रविवार था। झंडा फहराने का समय भी उसी कार्यसमिति में तय किया गया। यह समय था सुबह के 8 बजे। सभी देशवासियों से आह्वान किया गया कि अगली 26 जनवरी को भारतीय तिरंगा फहराकर पूर्ण स्वराज के संकल्प की सिद्धि का जयघोष किया जाए।
महात्मा गांधी ने 26 जनवरी, 1930 के पहले स्वाधीनता-दिवस के आयोजनों को लेकर कुछ और अतिरिक्त निर्देश दिए । गांधी जी ने कहा, “सभी लोग पूरी तरह अहिंसक तरीके से जुलूस निकालेंगे। किसी तरह के भाषण नहीं दिए जाएंगे, परंतु कांग्रेस के पूर्ण स्वराज के संकल्प को स्थानीय भाषाओं में अनूदित कर लोगों को सुनाया जाएगा।“ भारत के इस संकल्प की सूचना दुनिया के दूसरे देशों को भी भेजी गई। दुनिया के तब के सबसे बड़े लोकतंत्र अमेरिका के कई सांसदों ने भारत के स्वाधीनता के संकल्प के प्रति पूरा समर्थन व्यक्त किया।
26 जनवरी, 1930 को न्यूयॉर्क की एक सभा में अमेरिकी सांसदों ने भारत के पूर्ण स्वराज के संकल्प के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करते हुए अमेरिकी सीनेट से स्वाधीन भारत को अपनी मान्यता देने का भी आग्रह किया। वह प्रस्ताव अमेरिकी सीनेट के विदेशी संबंधों की समिति में भी लाया गया। उन सांसदों ने इस बाबत एक संदेश भी कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू को भेजा। अमेरिका के अलावा दुनिया के अन्य देशों में भी भारतीयों ने देश का स्वाधीनता दिवस 26 जनवरी, 1930 को पहली बार मनाया, जिसे स्थानीय लोगों ने भी अपना समर्थन दिया। साल 1930 से आज़ादी मिलने तक हर साल 26 जनवरी को ही पूरे देश में स्वाधीनता दिवस मनाया जाता रहा।
कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में सिर्फ झंडा फहराने या पूर्ण स्वराज का नारा भर नहीं दिया गया था। उस अधिवेशन में स्वाधीन भारत के संविधान की और उसकी भावी शासन-प्रणाली की पूरी रूपरेखा पंडित नेहरू ने प्रस्तुत की थी, जो महात्मा गांधी के निर्देशन में तैयार की गई थी।
लाहौर के इस अधिवेशन में भारत को चारों तरह की स्वतंत्रता अर्जित करने को प्रेरित किया गया- आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्वतंत्रता। इसमें यह भी साफ किया गया कि भारत पूरी तरह से पंथनिरपेक्ष शासन-व्यवस्था स्वीकार करेगा। नेहरू ने अपने को समाजवादी विचारधारा का प्रतिनिधि बताते हुए यह भी कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था समाजवाद पर आधारित होगी। उन्होंने कहा कि वे न तो राजा-रजवाड़े में विश्वास करते हैं और न ही पूंजीपति-संचालित वाणिज्य-व्यवस्था में। भारत किसी भी रूप में न तो इंग्लैंड की संसद का नियंत्रण स्वीकार करेगा और न ही इंग्लैंड ने जो भारत पर ऋण थोपा गया है, उसे किसी भी रूप में स्वीकार करेगा।
लाहौर अधिवेशन के पूर्ण-स्वराज के संकल्प के साथ जो स्वाधीन भारत के लिए दिशा निर्देश तय किए गए थे, वही भारत की संविधान-सभा की प्रस्तावना के सिद्धांत भी बने। यह भी महज संयोग भर नहीं था कि 28 दिसंबर, 1929 की लाहौर-कांग्रेस की प्रस्तावना और 13 दिसम्बर, 1946 को भारत की संविधान-सभा की प्रस्तावना- दोनों ही पंडित जवाहरलाल नेहरू ने प्रस्तुत किए थे। इन्हीं दो बीज मंत्रों से प्रेरित होकर हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत का समावेशी संविधान बनाया। इन दो बीज मंत्रों के संकल्प का दिन चूंकि 26 जनवरी था, इसलिए संविधान के निर्माण का काम 26 नवम्बर, 1949 को पूरा हो जाने के बाद भी उसे 26 जनवरी, 1950 से ही लागू करने का निर्णय लिया गया।
26 जनवरी, 1930 की इस गौरवशाली परम्परा की एक और घटना बहुत महत्त्वपूर्ण है। उसी दिन बम्बई और कुछ और शहरों में कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ लोगों ने भारतीय तिरंगे की जगह लाल झंडे लेकर प्रदर्शन किया, हिंसक झड़पें हुईं और भारतीय तिरंगा लेकर हो रहे आयोजनों में बाधा पहुंचाई गई। इसकी प्रतिक्रिया में कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष पंडित नेहरू ने कहा था कि वह लाल झंडे का भी सम्मान करते हैं, परंतु कोई व्यक्ति, कोई संगठन या कोई पार्टी भारतीय तिरंगे का अपमान करे, यह किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।