दिल्लीः बागेश्वर धाम महाराज (Bageshwar Dham Maharaj ) पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री इन दिनों चर्चा में हैं। हर कोई उनके बारे में जानना चाहता है। हर किसी के मन में यह सवाल उठ रहा है कि वह बिना बताए सामने वाले व्यक्ति की मन की बात कैसे जान जाते हैं। क्या वह चमत्कारी है या माइंड रीडिंग का कमाल है। वह यह कैसे बता देते हैं कि किसी व्यक्ति के घर में कौन सी चीजें कहां रखी है और वह बिना सामने वाले व्यक्ति के बताए। अब आपके जेहन में यह सवाल पैदा हो रहा होगा कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है?

हर समय में हर व्यक्ति अलग-अलग बातें सोचता है, उसके मन के विचार अलग-अलग हो सकते हैं आदि। हर किसी के दिमाग में किस समय कौन सी बात चल रही उन बातों को सामने वाला व्यक्ति जान पाए, ऐसा मुश्किल नजर आता है। कई लोग ऐसे हैं, जो लोगों के मन की बात पढ़ लेते हैं। क्या वह चमत्कारी व्यक्ति है या कुछ और बात है, तो चलिए आज हम आपको इसके बारे में बताने जा रहे हैं। आज हम माइंड रीडिंग छुपी है? तो चलिए आपको बताते हैं कि माइंड रीडिंग क्या है कैसे होती है?

माइंड रीडिंगः माइंड रीडिंग का मतलब होता है बिना जाने सामने वाले व्यक्ति के दिमाग में क्या चल रहा है, ये जानना। बिना किसी साधनों के इस्तेमाल के दूसरे व्यक्ति के दिमाग के विचार को जानना ही माइंड रीडिंग कहलाता है।

व्यक्ति के मन की बातः इस क्रिया में व्यक्ति अलर्ट रहकर और अपना दिमाग खुला रखकर सामने वाले व्यक्ति की फीलिंग को समझता है। कुछ मनोवैज्ञानिक तरकीबें और सलाह के जरिए दूसरे व्यक्ति के दिमाग को प्रभावी ढंग से पढ़ा जाता है। मनोवैज्ञानिक इसे साहनुभूति सटीकता कहते हैं, जिससे ये संकेत मिलते हैं कि सामने वाले व्यक्ति के दिमाग में क्या चल रहा है इसका थोड़ा बहुत अंदाजा मिल जाता है।

माइंड रीडिंग करने वाले लोग इसका निरंतर अभ्यास करते हैं। कहा जाता है कि ये लोग दिन में कम से कम दो से तीन बार ये पता लगाने की कोशिश करते हैं कि सामने वाले व्यक्ति के दिमाग में क्या चल रहा है। ऐसे लोगों के अंदर एकाग्रता होती है, जो किसी का दिमाग पढ़ने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी मानी जाती है।

क्या विज्ञान पर है आधारितः कई लोग ये समझते हैं कि शायद माइंड रीडिंग विज्ञान पर आधारित है। पर यहां ये भी समझना जरूरी है कि माइंड रीडिंग सटीक विज्ञान पर आधारित नहीं है। जानकार मानते हैं कि आप हर बार सही नहीं हो सकते कि सामने वाले व्यक्ति के मन में क्या चल रहा है। हो सकता है कि आप गलत भी हो, क्योंकि यहां पर आप केवल प्रासंगिक सुरागों के आधार पर ही अनुमान लगाते हैं।

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