बेंगलुरुः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर कर्नाटक विधान परिषद में विपक्ष के नेता एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद ने विवादित बयान दिया है। हरिप्रसाद  ने कहा कि पीएम मोदी का अपनी पार्टी के नेताओं को मुसलमानों को विश्वास में लेने के लिए कहना शैतान के धर्मग्रंथों का उपदेश देने जैसा है। पीएम मोदी चुनाव के दौरान वे इस तरह की नौटंकी करना चाहते हैं, लेकिन लोग इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं।

आपको बता दें कि दिल्ली में 16-17 जनवरी को बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी। इसमें प्रधानमंत्री कहा था कि मुस्लिम समुदाय के बोहरा, पसमांदा और पढ़े-लिखे लोगों तक हमें सरकार की नीतियां लेकर जानी हैं। हमें समाज के सभी अंगों से जुड़ना है और उन्हें अपने साथ जोड़ना है।

पीएम मोदी ने इससे करीब 06 महीने पहले यानी 03 जुलाई 2022 को हैदराबाद में आयोजित पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पसमांदा मुस्लिमों के लिए स्नेह यात्रा की घोषणा की थी। इस यात्रा का मकसद पसमांदा मुस्लिमों के घर-घर पहुंच कर बीजेपी से जोड़ने की पहल करना था।

बीके हरिप्रसाद ने कहा कि शिक्षा महत्वपूर्ण है लेकिन बीजेपी एनईपी यानी नैशनल एजुकेशन पॉलिसी की बात करती हैं जो कहीं भी उपयोग करने योग्य नहीं है। उन्होंने कहा कि अमित शाह यहां आते हैं और जेडीएस पर हमला करते हैं और अमूल तथा  केएमएफ यानी कर्नाटक मिल्क फेडरेशन को विलय करने की बात करते हैं, लेकिन हम इसे होने नहीं देंगे।

कांग्रेस नेता ने कहा कि बीजेपी विकास के बजाय केवल ‘लव जिहाद’, हिंदू-मुस्लिम विवाद और ऐसे अन्य संवेदनशील मुद्दे ही उठाना चाहती है। उन्होंने कहा कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा अमेरिकी छात्रों को बेंगलुरु और शंघाई के छात्रों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए सक्षम होने के लिए कहते थे। अब कर्नाटक में बीजेपी सरकार ने सब बर्बाद कर दिया है।

हरिप्रसाद ने प्रधानमंत्री मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि पीएम मोदी का अपनी पार्टी के नेताओं को मुसलमानों का विश्वास जीतने के लिए कहना किसी गलत व्यक्ति के धर्मग्रंथों का उपदेश देने जैसा है। उन्होंने कहा कि वे चुनाव के दौरान ऐसे ही  नौटंकी करते हैं, लेकिन लोग इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं।

आखिर बोहरा और पसमांदा मुस्लिमों पर क्यों है बीजेपी का फोकसः  इस बात को जानने के लिए आपको बिहार की राजनीति में चलना पड़ेगा। आप बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम से बीजेपी के मकसद को समझ सकते हैं। साल 2010 में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली NDA सरकार बिहार में दो-तिहाई से अधिक बहुमत के साथ बनी थी। नीतीश कुमार के सुशासन और माफिया को खत्म कर कानून-व्यवस्था को मजबूत करने के चुनावी नारे उन कई कारणों में से एक थे, जिनकी वजह से उनकी जीत हुई।

इतना ही नहीं, नीतीश कुमार ने जातिगत समीकरणों को काफी शानदार तरीके से साधा था, जिसके चलते पसमांदा मुसलमानों ने RJD और LJP के बजाय NDA को वोट दिया था।

सूत्रों की मानें तो 2024 लोकसभा चुनाव में NDA की सहयोगी पार्टियां अन्नाद्रमुक, अपना दल, निषाद पार्टी, JJP, राष्ट्रीय लोजपा, BPF, AGP, IPFT आदि पसमांदा मुस्लिम समुदाय को जोड़ने के लिए अन्य छोटे सहयोगियों के माध्यम से अपने मास्टर प्लान को लागू करेंगीं। यानी चुनाव में ये पार्टियां पसमांदा समुदाय के नेताओं को मुस्लिम बहुल सीटों पर उनके चुनाव चिह्न पर टिकट देंगी। भले ही ये पार्टियां चुनाव न जीत सकें, लेकिन मुस्लिम वोटों को बांटने और विपक्षी दलों को कमजोर करने में अहम भूमिका निभाएंगी।

 

देश में अब तक 400 मुस्लिम सांसद बने, इनमें पसमांदा सिर्फ 60 एमपी बनेः साल 2019 लोकसभा चुनाव के बाद पसमांदा मुस्लिमों के भारतीय राजनीति में हिस्सेदारी को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक 1947 से लेकर 14वीं लोकसभा तक कुल 7,500 सांसद बने, जिनमें से 400 मुस्लिम थे। हैरानी की बात यह है कि इनमें से 340 सांसद अशरफ यानी उच्च मुस्लिम जाति के थे और सिर्फ 60 मुस्लिम सांसद पसमांदा समाज से रहे हैं।

ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के संस्थापक अली अनवर अंसारी का कहना है कि वैसे तो देश के 18 राज्यों में जहां भी मुस्लिम आबादी है, हर जगह पसमांदा हैं, लेकिन 5 राज्यों UP, बिहार, झारखंड, बंगाल और असम में इनकी संख्या ज्यादा है। इन 5 में से 3 राज्यों में अभी BJP और उसके सहयोगी दलों की सरकार है, जबकि 2 राज्यों में से एक में TMC और दूसरे में JMM और कांग्रेस की सरकार है।

आपको बता दें कि 2011 जनगणना के मुताबिक इन 5 राज्यों में मुस्लिम आबादी की बात करें तो UP में 19.26%, बिहार में 16.87%, बंगाल में 27.01%, झारखंड में 14.53% और असम में 34.22% मुस्लिम हैं।

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