पटनाः बिहार में किस जाति के कितने लोग हैं, इसका पता लगाने के लिए राज्य सरकार ने सात जनवरी से जातिगत सर्वे शुरू हुआ है। हिंदू सेना ने हालांकि इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और शीर्ष अदालत से जातीय सर्वे पर रोक लगाने की मांग हुई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जातिगत सर्वे पर रोल लगाने से इनकार कर दिया। तो चलिए अब आपको बता रहे हैं कि बिहार में कैसे हो रहा जातिगत सर्वे… कैसे पता चलेगा कि किस जाति के कितने लोग हैं? मकानों की गिनती कैसे होगी? इन सभी सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं….
सबसे पहले बात करते हैं जातिगत सर्वे की जरूरत क्या है…बिहार में राजनीतिक दलों ने जातीय जनगणना की लंबे समय से मांग कर रखी थी। राजनीतिक दलों का कहना है कि इससे दलित, पिछड़ों की सही संख्या मालूम चलेगी और उन्हें इसके अनुसार आगे बढ़ाया जा सकेगा। जातीय जनसंख्या के अनुसार ही राज्य में योजनाएं बनाई जाएंगी। 18 फरवरी 2019 और फिर 27 फरवरी 2020 को बिहार विधानसभा और विधान परिषद में जातीय जनगणना कराने से संबंधित प्रस्ताव पेश किया गया था। इसे बीजेपी, आरजेडी और जेडयू सहित सभी दलों ने समर्थन दे दिया था। हालांकि, केंद्र सरकार इसके खिलाफ थी। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि जातीय जनगणना नहीं होनी चाहिए। केंद्र का कहना था कि जातियों की गिनती करना लंबा और कठिन काम है। इसके बावजूद नीतीश कुमार की सरकार ने जातीय जनगणना कराने का एलान कर दिया था। बिहार सरकार ने इस साल मई तक यह काम पूरा करने का दावा किया है। राज्य सरकार ने इसके लिए दो चरण निर्धारित किए हैं।
कैसे होगी मकानों की गिनतीः जातिगत सर्वे के पहले चरण में लोगों के घरों की गिनती शुरू की गई है। इसकी शुरुआत पटना के वीआईपी इलाकों से हुई है। अभी तक राज्य सरकार की तरफ से मकानों को कोई नंबर नहीं दिया गया है। वोटर आईकार्ड में अलग, नगर निगम के होल्डिंग में अलग नंबर हैं। पंचायत स्तर पर मकानों की कोई नंबरिंग ही नहीं है। शहरी क्षेत्र में कुछ मोहल्लों में मकानों की नंबरिंग है भी तो वह हाउसिंग सोसायटी की ओर से दी गई है, न कि सरकार की ओर से। अब सरकारी स्तर पर मकानों को नंबर दिया जा रहा है। इस चरण में सभी मकानों को स्थायी नंबर दिया जाएगा।
आर्थिक और जातीय जनगणनाः जातिगत सर्वे के दूसरे चरण में जाति और आर्थिक जनगणना का काम होगा। इसमें लोगों के शिक्षा का स्तर, नौकरी (प्राइवेट, सरकारी, गजटेड, नॉन-गजटेड आदि), गाड़ी (कैटगरी), मोबाइल, किस काम में दक्षता है, आय के अन्य साधन, परिवार में कितने कमाने वाले सदस्य हैं, एक व्यक्ति पर कितने आश्रित हैं, मूल जाति, उप जाति, उप की उपजाति, गांव में जातियों की संख्या, जाति प्रमाण पत्र से जुड़े सवाल पूछे जाएंगे।
जानें अन्य अहम बातें…
- बिहार सरकार ने जातीय और आर्थिक जनगणना कराने की जिम्मेदारी बिहार के सामान्य प्रशासन विभाग को दी गई है।
- जिला स्तर पर डीएम इसके नोडल पदाधिकारी नियुक्त किए गए हैं।
- जातीय गणना के लिए 500 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान है। यह बढ़ भी सकता है।
- आजादी के बाद देश में पहली बार 1951 में जनगणना हुई थी।