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हमें कर व्यवस्था, प्रशासन व्यवस्था, भाषा, सेना के पदनाम को बदल कर अपनी जड़ों के अनुरूप बनाना चाहिएः सुनील आंबेकर - Prakhar Prahari
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हमें कर व्यवस्था, प्रशासन व्यवस्था, भाषा, सेना के पदनाम को बदल कर अपनी जड़ों के अनुरूप बनाना चाहिएः सुनील आंबेकर

संवाददाताः संतोष कुमार दुबे, प्रखर प्रहरी

दिल्लीः हमें कर व्यवस्था, प्रशासन व्यवस्था, भाषा, सेना के पदनाम आदि बहाल कर अपनी जड़ों के अनुरूप बनाना चाहिए और आजादी के अमृतकाल में ये बदलाव प्रारंभ हो चुके हैं। यह बाते आरएसएस (RSS) यानी  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने शनिवार को दिल्ली में कही। संघ के दिल्ली प्रांत के प्रचार विभाग इंद्रप्रस्थ विश्व संवाद केन्द्र की नयी वेबसाइट का लोकार्पण करने के बाद अपने संबोधन में कहा कि देश भर में सभी समाजों एवं समुदायों में अपनी हज़ारों वर्ष पुरानी सभ्यतागत मूल्यों एवं व्यवस्थाओं को पुन: स्थापित करने की इच्छा बढ़ रही है।

उन्होंने कहा कि समाज में आगे बढ़ने की इच्छा बलवती हो रही है और लोगों में इसे लेकर उत्साह है। समाज के हर प्रकार के लोग सामने आ रहे हैं और पूरे समाज की इच्छा है कि एक सकारात्मक नेतृत्व आये तथा विवाद की जगह समाधान लाये। यह जिला स्तर पर, प्रांत स्तर पर और अखिल भारतीय स्तर पर भी अनुभव हो रहा है। देश के सुदूर कोनों में ऐसे प्रयास हो रहे हैं जो जल्द ही राष्ट्रीय फलक पर दिखायी देंगे।
संघ के प्रचार प्रमुख ने बताया कि छत्तीसगढ़ के जंगलों से भी यह भावना सामने आ रही है कि हम शांति और विकास के मार्ग के सहयात्री बनना चाहते हैं। उनका धर्म इसी मिट्टी से जुड़ा है। उन्होंने उदाहरण दिया कि महाराष्ट्र के जलगांव में बंजारा कुम्भ का आयोजन किया जा रहा है। बंजारा समुदाय का कहना है कि उनकी परंपराएं देश की प्राचीन परंपराओं का हिस्सा है।
उन्होंने संविधान दिवस का उल्लेख करते हुए कहा कि हाल ही में संविधान दिवस के आयोजन पर कई लोगों ने कहा है कि संविधान की आत्मा भारत की आत्मा एवं हजारों वर्ष की बंधुत्व की भावना से जुड़ी है। इसीलिए संविधान के प्रलेखन में राम, कृष्ण, गौतम, शिव और विष्णु आदि के चित्र उकेरे गये हैं। उन्होंने कहा कि देश के हर समाज के सब लोग अपने अपने ढंग से कह रहे हैं कि बदलाव होना चाहिए। भारत में हजारों वर्षों से एक व्यवस्था रही है जिसमें हर कोई समृद्ध था और हर किसी को न्याय मिला था। मुगलों के काल में व्यवस्था को बदला और तोड़ा मरोड़ा गया तथा विदेशी प्रभाव वाली व्यवस्था आयी।

उन्होंने कहा कि वर्ष 1671 में छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक होने पर उन्होंने विदेशी प्रभाव वाली व्यवस्था को पुन: स्वदेशी व्यवस्था में बदलना शुरू किया था। उन्होंने कहा कि तत्कालीन राजव्यवस्था में फारसी शब्दों का चलन 90 प्रतिशत से अधिक था, लेकिन 1724 तक 94 प्रतिशत से अधिक शब्द स्वदेशी हो गये थे।

आंबेकर ने कहा कि ब्रिटिश काल में अंग्रेज़ों ने भी मुगल व्यवस्था में अपने अनुकूल बदलाव किये थे। उन्होंने कहा कि भारत के समाज में आज वैसी ही इच्छा दिखती है कि हम अपनी जड़ों से जुड़ी कर व्यवस्था, प्रशासन व्यवस्था, भाषा, सेना के पदनाम आदि बहाल करें।
उन्होंने कहा कि 1947 के बाद आवश्यक था कि हम छत्रपति शिवाजी की प्रेरणा के अनुरूप ‘स्व’ के अनुसार अपनी व्यवस्था स्थापित करते, लेकिन अब काफी समय बाद आज़ादी के अमृतकाल में अपनी व्यवस्थाओं को ‘स्व’ के अनुसार न्याय के अनुरूप स्थापित करने का कार्य प्रारंभ हो गया है। इसे जल्दी ही सबको बताना है। उन्होंने कहा कि आज समय की मांग है कि समाज के सभी लोगों को जानकारी मिले कि हम अकेले नहीं हैं। बदलाव प्रारंभ हो गये हैं।
इससे पहले आरएसएस के दिल्ली प्रांत के प्रचार प्रमुख रीतेश अग्रवाल ने आंबेकर का स्वागत किया। आंबेकर ने वेबसाइट के लोकार्पण के बाद वेबसाइट डिजायन करने वाले धर्मेन्द्र का पुस्तक भेंट करके अभिनंदन किया।

वहीं इंद्रप्रस्थ विश्व संवाद केंद्र के मीडिया सम्पर्क विभाग से जुड़े विपिन तिवारी ने संघ की नई वेबसाइट की कार्य पद्धति के बारे में विस्तार से जानकारी दी। आरएसएस की नई वेबसाइट में वीडियो, डिजीटल पुस्तकालय, संस्कृति एवं संस्कार, विरासत, समाचार, संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी की बैठकों के प्रस्ताव, संघ के पूर्व एवं वर्तमान सरसंघचालकों के परिचय एवं कृतियों आदि की जानकारी समेटी गयी है।

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