दिल्ली डेस्कः आज 14 जनवरी है। आज के दिन भारत के इतिहास में कुछ ऐसी घटनाएं दर्ज हैं जिनके स्मरण मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसी ही एक घटना 14 जनवरी 1761 की है, जब एक लाख से ऊपर स्त्री, बच्चों सहित भारतीयों को मारा गया। इसमें 40 तो निहत्थे तीर्थ यात्री थे। यह तिथि पानीपत के तीसरे युद्ध की है, जो मराठों और अफगान हमलावर अहमद शाह अब्दाली के बीच लड़ा गया था। अब्दाली को दो भारतीय शासकों ने हमले के लिए आमंत्रित किया था। ये थे अवध के नबाब सिराजुद्दौला और रोहिल्ला नजीबुद्दौला। आपको बता दें कि इन दोनों को न केवल मराठों ने हराया था, बल्कि इनसे राजस्व भी वसूला था। इन दोनों ने एक तीसरे राजा को अपने साथ मिलाया, वे थे जयपुर के माधवसिंह। इस तरह भारत की धरती पर हुए इस युद्ध में इन तीनों ने केवल मराठों की घेराबंदी करके रसद के मार्ग रोक दिए थे, बल्कि अपने मुखबिरों के जरिये मराठों की रणनीति की जानकारी भी अहमदशाह अब्दाली को देते थे। अब्दाली ने भारत पर कुछ छह आक्रमण किए।  आइए, आपको इस भयानक हत्याकांड़ से रूबरू करवाते हैं….

हमने इतिहास की किताबों में पढ़ा है कि पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठा क्षत्रपों और अफ़ग़ान सेना के बीच हुई थी। 14 जनवरी 1761 को हुए इस युद्ध में अफ़ग़ान सेना की कमान अहमद शाह अब्दाली-दुर्रानी के हाथों में थी। इस घटना पर पानीपत नाम से फिल्म भी बनी है, जिसमें संजय दत्त और अर्जुन कपूर मुख्य भूमिकाओं में थे।

अब्दाली ने पानीपत की इस तीसरे युद्ध से पहले 1757 में दिल्ली पर धावा बोला था और मुगल बादशाह को बंदी बनाकर भारी लूट की थी। तब मराठों की सेना ने आकर बादशाह को मुक्त कराया और अहमदशाह को वापस खदेड़ दिया था। इस घटना से वह तिलमिलाया हुआ था और जब उसे सिराजुद्दौला और नजीबुद्दौला का निमंत्रण मिला तो बिना देर किए चढ़ दौड़ा। इसकी खबर पेशवा को लगी। तब मराठा साम्राज्य की कमान पेशवा बालाजी बाजीराव के हाथ में थी। उन्होंने मराठों की सेना रवाना की और इसकी कमान सदाशिव राव भाऊ को सौंपी। इस सेना में पेशवा का पुत्र आनंद राव भी साथ था। मराठों की फौज पूरे वेग से आगे बढ़ी। वह दिल्ली पहुंची। मराठों ने दिल्ली मुक्त कराई लाल किले पर अपना ध्वज फहराया। दिल्ली की व्यवस्था बनाकर मराठों ने पंजाब की ओर रुख किया। वे इस बार अब्दाली को पूरा सबक सिखाना चाहते थे। मराठा सेना जितने इलाके मुक्त कराती वहां व्यवस्था के लिए अपने कुछ सैनिक तैनात करती जाती थी। इससे सैनिकों की संख्या कम होती गई।

मराठा सेना की शरण में वे हजारों स्त्री पुरुष भी आए, जो अब्दाली के आक्रमण से पीड़ित थे या तीर्थ यात्री थे। इतिहासकार मानते हैं कि मराठा सेना में बड़ी संख्या में भेदिये थे जो एक ओर अब्दाली को मराठा सेना गतिविधियों की जानकारी दे रहे थे दूसरी ओर व्यवस्था के नाम पर सैनिकों की संख्या कम कर रहे थे। अब्दाली ने पानीपत में तगड़ी मोर्चाबंदी कर रखी थी। जैसे ही मराठा सेना पानीपत पहुँची भयानक युद्ध छिड़ गया। यह तिथि 14 जनवरी थी, मकर संक्रांति का दिन। सदाशिव भाऊ ब्रह्म सरोवर में स्नान करना चाहते थे, लेकिन पानीपत में मार्ग अवरुद्ध था    तेज हमला हुआ। यह हमला अकस्मात हुआ और पूरी तैयारी से हुआ। फिर भी मराठा सेना भारी पड़ी उन्होंने अब्दाली का रसद भंडार छीन लिया। सदाशिव भाऊ हाथी पर सबार थे और आनंदराव घोड़े पर। तभी बंदूक की एक गोली आनंदराव को लगी। उन्हे गिरते सदाशिव राव भाऊ ने देख लिया था। वे हाथी से उतर आये और आनंदराव के शव को ढूँढने लगे। इधर मराठा सेना ने अपने सेनापति का हाथी खाली देखा उनमें घबराहट हुई अंर अफरा तफरी मच गयी। मौके का फायदा अब्दाली ने उठाया उसने ऐलान करा दिया। सदाशिव भाऊ का सिर काट लिया है। इससे हमलावर सैनिकों का जोश बढ़ा और मराठा सेना में भगदड़ शुरू हुई। इसी भगदड़ में किसी ने सदाशिव राव भाऊ का सिर काट लिया। अब्दाली ने यह ऐलान भी कराया कि जो हथियार डाल देगा उसकी जान बख़्शी जायेगी। मराठा सेना में जो भेदिए थे, उन्होंने हथियार डालने को प्रेरित किया। मराठा सैनिक घेर लिये गये, बंदी बना लिए गए।

बड़ी मुश्किल से होल्कर बीस महिलाओं को सुरक्षित निकाल पाये। दोपहर तीन बजे तक यह सब हो गया। इसके बाद महिलाओं को अलग कर लिया गया। पुरूषों का कत्ले आम शुरू हुआ। अनुमान है कि एक लाख से अधिक लोगों को कत्ल किया गया । इनमें चालीस हजार तीर्थयात्री भी थे। यह मराठा सेना की सबसे बड़ी क्षति थी । इतिहास का काला दिन माना गया। महाराष्ट्र का शायद कोई घर ऐसा नहीं था जिसका परिजन इस युद्ध में शहीद न हुआ था। पानीपत में खून की नदियां बहा कर और कटे हुये सिरों का ढेर लगाकर अहमदशाह दिल्ली लौटा और उसने उन सब को कत्ल किया जिनको दिल्ली की सुरक्षा के लिये मराठों ने तैनात किया था। अब्दाली का यह कत्ले आम और लूट का सिलसिला अक्टूबर 1760 से शुरू हुआ था जो फरवरी 1761 तक चला । इसमें 14 जनवरी 1761 बुधवार का दिन मकर संक्रांति की तिथि सबसे भीषण रक्तपात से भरी थी।

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