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Swami Vivekananda Birth Anniversary: स्वामी विवेकानंद का वह भाषण, जिसकी पूरी दुनिया हो गई थी मुरीद और अमेरिका के शिकागो में तालियां की गड़कड़ाहट से गूंज उठा था हॉल - Prakhar Prahari
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Swami Vivekananda Birth Anniversary: स्वामी विवेकानंद का वह भाषण, जिसकी पूरी दुनिया हो गई थी मुरीद और अमेरिका के शिकागो में तालियां की गड़कड़ाहट से गूंज उठा था हॉल

दिल्लीः आज राष्ट्रीय युवा दिवस है। आपको बता दें कि आध्यात्म गुरु स्वामी विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद का जीवन हर किसी के लिए आदर्श है। उनके अनमोल विचार और उनके द्वारा दिए भाषण युवाओं के लिए सफलता के मूलमंत्र की तरह हैं। स्वानी मेहद कम उम्र में ही ईश्वर और ज्ञान की प्राप्ति के लिए सांसारिक मोह माया त्याग दिया था और ज्ञान की प्राप्ति के मार्ग पर चल दिये।

करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था।

गुरु रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बनने के बाद स्वामी विवेकानंद को ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसी ज्ञान को सभी के जीवन में आत्मसात करने के लिए उन्होंने प्रेरणादायक संदेश देना शुरू किया। स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी ऐसी ही कई रोचक बातें हैं, जो हर किसी के लिए सफलता का मूलमंत्र बन सकती हैं।

स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेंद्र नाथ था। उनकी माता धार्मिक महिला थीं, जो पूजा पाठ में ध्यान लगाती थीं। बचपन से ही नरेंद्रनाथ अपनी माता के आचरण, व्यवहार से काफी प्रभावित थे। इसी का असर था कि महज 25 वर्ष की कम उम्र में उन्होंने सांसारिक मोहमाया को त्यागकर सन्यास ले लिया और ज्ञान की तलाश में चल पड़े ।

स्वामी विवेकानंद 1890 में जब हिमालय की यात्रा पर थे, तो उस दौरान उनके साथ स्वामी अखंडानंद भी थे। एक रोज काकड़ीघाट में पीपल के पेड़ के नीचे स्वामी विवेकानंद तपस्या में लीन थे, तभी उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। वहाँ से स्वामी विवेकानंद अल्मोड़ा से चलते हुए कुछ दूर करबला कब्रिस्तान के पास पहुंचे तो भूख और थकान के कारण अचेत हो कर गिर पड़े। एक फकीर ने उन्हें खीरा खिलाया, जिससे वह चेतना में लौटे।

धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद का ऐतिहासिक भाषणः 11 सितंबर 1893…यह वह दिन है, जब स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका में ऐतिहासिक भाषण दिया था। दरअसल अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित हुए धर्म संसद में भारत की ओर से स्वामी स्वामी विवेकानंद शामिल हुए थे। इस धर्म सम्मेलन में विवेकानंद ने हिंदी में भाषण की शुरुआत करते हुए कहा ‘अमेरिका के भाइयों और बहनों’। उनके भाषण के बाद पूरा हॉल दो मिनट तक तालियों से गूंजता रहा। स्वामी विवेकानंद ने कहा, अमेरिका के मेरे भाइयों और बहनों, मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के सताए लोगों को शरण में रखा है। मैं आपको अपने देश की प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से भी धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है।”

मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है।हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं।

मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं, जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी। मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इसराइल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं, जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है।

मैं इस मौके पर वह श्लोक सुनाना चाहता हूं जो मैंने बचपन से याद किया और जिसे रोज़ करोड़ों लोग दोहराते हैं। ”जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग-अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है। ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं।

उन्होंने कहा कि मौजूदा सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, वह अपने आप में गीता में कहे गए इस उपदेश इसका प्रमाण है: ”जो भी मुझ तक आता है, चाहे कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं. लोग अलग-अलग रास्ते चुनते हैं, परेशानियां झेलते हैं, लेकिन आखिर में मुझ तक पहुंचते हैं।”

सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है। उन्होंने इस धरती को हिंसा से भर दिया है और कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हो चुकी है। न जाने कितनी सभ्याताएं तबाह हुईं और कितने देश मिटा दिए गए।

यदि ये ख़ौफ़नाक राक्षस नहीं होते तो मानव समाज कहीं ज़्यादा बेहतर होता, जितना कि अभी है. लेकिन उनका वक़्त अब पूरा हो चुका है. मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन का बिगुल सभी तरह की कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का विनाश करने वाला होगा. चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम से.

 

Shobha Ojha

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