रांचीः झारखंड स्थित सम्मेद शिखर को लेकर अब नया संग्राम शुरू हो गया है। दरअसल झारखंड के आदिवासी संथाल समुदाय ने दावा किया है कि पूरा पहाड़ उनका है। आदिवासियों का कहना है कि यह उनका मरांग बुरु यानी बूढ़ा पहाड़ है। ये उनकी आस्था का केंद्र है। यहां वे हर साल आषाढ़ी पूजा में सफेद मुर्गे की बलि देते हैं। इसके साथ छेड़छाड़ उन्हें मंजूर नहीं होगी।
इस मामले को लेकर जैन समाज और आदिवासियों के साथ जिला प्रशासन ने रविवार को बैठक की। आम राय बनाने के लिए कमेटी बना दी, जिसमें प्रशासनिक अफसर, जनप्रतिनिधि, जैन समाज और आदिवासियों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
इसके बावजूद आदिवासी समाज अब भी अड़ा हुआ है। बड़े आंदोलन की तैयारी भी चल रही है। विरोध और आंदोलन का मोर्चा सत्ताधारी दल झामुमो के विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने संभाला हुआ है। हेम्ब्रम का कहना है कि लड़ाई आर-पार की होगी। आदिवासी समाज के लोग वर्षों से इस इलाके में रह रहे हैं, अब उन्हें ही बलि देने से रोका जा रहा है। जमीन हमारी, पहाड़ हमारे और कब्जा किसी और का, हम कब्जा नहीं करने देंगे।
उनका कहना है कि सरकार को पारसनाथ को मरांग बुरु स्थल घोषित करना होगा। उन्होंने कहा कि सरकार को पारसनाथ को मरांग बुरु स्थल घोषित करना होगा। अगर 25 जनवरी तक हमारी मांग पूरी नहीं हुई तो 30 जनवरी को उलिहातू में उपवास पर बैठेंगे। केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया जाएगा
इस मुद्दे को लेकर संथाल समुदाय 10 जनवरी से राज्य में बड़े आंदोलन की तैयारी कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय संथाल परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष नरेश कुमार मुर्मू ने बताया है कि हम बड़े आंदोलन की रणनीति तैयार कर रहे हैं। इसमें ओडिशा, बंगाल, असम सहित देश के अलग राज्यों से संथाल समुदाय के लोग पारसनाथ पहुंचेंगे।
अगर सरकार मरांग बुरु को जैनियों के कब्जे से मुक्त करने में विफल रही तो पांच राज्यों में विद्रोह होगा। हमारा संगठन कमजोर नहीं है, उन्होंने दावा किया कि परिषद की संरक्षक स्वयं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू हैं और अध्यक्ष असम के पूर्व सांसद पी मांझी हैं।
उधर, अंतरराष्ट्रीय संथाल परिषद ने यह भी कहा कि हम जिला प्रशासन या सरकार की पहल का स्वागत करते हैं। जब तक राज्य सरकार स्पष्ट फैसला नहीं लेती, तब तक हम आंदोलन खत्म नहीं करेंगे। हमारे जो अधिकार हैं, उन्हें हम हासिल करके रहेंगे। हम देखेंगे सरकार हमारी हिस्सेदारी दे रही है या नहीं।
वहीं, पड़हा सरना प्रार्थना सभा ने राजधानी रांची में रविवार को महासम्मेलन सह सरना प्रार्थना सभा का आयोजन किया। इस आयोजन में पारसनाथ पर चर्चा हुई। राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा के अजय तिर्की ने कहा, पारसनाथ आदिवासियों का है। वहां पूर्व की स्थिति बहाल रखी जाए।
आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय संयोजक सालखन मुर्मू ने भी इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि संथालों के लिए पारसनाथ पहाड़ पूजा स्थल, तीर्थस्थल और पहचान का स्थल है। जैसे हिंदुओं के लिए अयोध्या में राम मंदिर बन रहा है, ईसाइयों के लिए रोम है, उसी प्रकार भारत, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश आदि जगहों के संथाल आदिवासियों के लिए पारसनाथ पर्वत है। उनके मंत्र की शुरुआत ही ‘मरांग बुरु’ से होती है। सरकार इसे किसी और को सौंप रही है। इसके खिलाफ बड़ा आंदोलन होगा।
क्या है जैस समाज का पक्षः इस पूरे मामले नाम नहीं छापने की शर्त पर एक बड़े जैन मुनि ने बताया कि उन्हें पहाड़ पर किसी के आने-जाने से कोई आपत्ति नहीं है। आदिवासी समाज यहां साल में एक बार सरना पूजा भी करते हैं। इसका वे खुद स्वागत करते हैं। उनकी मांग बस इतनी है कि उनकी आस्था का सम्मान किया जाए। पहाड़ी पर मांस-मदिरा का सेवन प्रतिबंधित हो। जांच के बाद लोगों को ऊपर जाने दिया जाए।
उधर, पार्श्व नाथ मंदिर के पुजारी अशोक कुमार जैन ने इस मसले पर कहा कि सम्मेद शिखर हमारा तीर्थ राज है। यह तीर्थ स्थल था, है, और तीर्थ स्थल ही रहेगा। संपन्नता के कारण ये तीर्थ स्थल नहीं है। हमारे भगवान ने यहां तपस्या की है। मुनिवर ने तपस्या की है। इस भूमि को पावन किया है।
क्या है पूरा मामलाः दरअसल सम्मेद शिखर के विवाद की शुरुआत 2022 में तब हुई थी, जब यहां से शराब पीते युवक का एक वीडियो वायरल हुआ था। सम्मेद शिखर के आसपास के इलाके में मांस-मदिरा की खरीदी-बिक्री और सेवन प्रतिबंधित है। इसके बाद भी लोग यहां इसका सेवन कर रहे थे। जैन समाज का मानना है कि इसका प्रचलन 2019 के बाद बढ़ा है। इसका कारण वे राज्य सरकार की तरफ से पारस नाथ पहाड़ को पर्यटन क्षेत्र घोषित करना बता रहे हैं।
मांस-मदिरा के सेवन को रोकने के लिए वे सम्मेद शिखर को पर्यटन मुक्त क्षेत्र घोषित करने की मांग कर रहे हैं। इसके लिए वे देशभर में आंदोलन और विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इस विरोध में दो जैन-मुनि देह भी त्याग चुके हैं।
वहीं, जैन समाज की विवाद को देखते हुए राज्य सरकार की अनुशंसा पर केंद्र सरकार ने उस नोटिफिकेशन में संशोधन कर दिया है, जिसमें पहाड़ के आसपास के इलाके को इको टूरिज्म क्षेत्र घोषित किया गया था। केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद जैन समाज में तो खुशी है, लेकिन अब आदिवासी समाज बड़े आंदोलन की तैयारी में जुट गया है।