दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें कोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को माओवादियों से कनेक्शन के आरोप से बरी कर दिया था। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने कहा कि इस मामले में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है, इसलिए अभी साईबाबा जेल से बाहर नहीं निकल पाएंगे।

सुनवाई के दौरान साईबाबा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश सीनियर एडवोकेट आर बसंत ने कहा कि पूर्व प्रोफेसर 8 साल से जेल में बंद हैं। उनकी उम्र 55 साल है और उनके शरीर का 90 प्रतिशत हिस्सा काम नहीं करता है। साईबाबा व्हीलचेयर पर चलते हैं, इसलिए उन्हें जेल में अब न रखा जाए। इस पर कोर्ट ने कहा कि आतंकी और नक्सली गतिविधि में शामिल होने के लिए शरीर की नहीं ब्रेन की जरूरत होती है।

आपको बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने 14 अक्टूबर को साईबाबा को बरी कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि तुरंत साईबाबा को जेल से रिहा कर दिया जाए। हाईकोर्ट से जीएन साईबाबा के बरी होने के बाद महाराष्ट्र सरकार की ओर से तुषार मेहता जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में गए।

मेहता ने कहा कि टेक्निकल आधार पर साईबाबा को रिहा किया गया है। वे अगर जेल से बाहर आते हैं तो देश के लिए ये खतरनाक होगा। साईबाबा का माओवादियों से कनेक्शन है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अर्जेंट सुनवाई के लिए आप चीफ जस्टिस के पास जाइए, हम रिहाई पर रोक नहीं लगा सकते हैं।

साईबाबा और पांच अन्य को आरोपियों को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली कोर्ट ने 2017 में UAPA और भारतीय दंड संहिता के तहत दोषी ठहराया। साईबाबा और चार अन्य को आजीवन कारावास की सजा और एक को दस साल की कैद की सजा सुनाई गई थी। गढ़चिरौली कोर्ट के फैसले के खिलाफ साईबाबा ने बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दायर की।

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में पुलिस ने 2013 में माओवाद से जुड़े महेश तिर्की, पी. नरोटे और हेम मिश्रा को गिरफ्तार किया। इन्हीं तीनों से पूछताछ के बाद जीएन साईबाबा के खिलाफ पुलिस कोर्ट गई। माओवाद से कनेक्शन के आरोप में 9 मई 2014 को दिल्ली आवास से साईबाबा को गिरफ्तार किया गया। 2015 में साईबाबा के खिलाफ UAPA के तहत केस दर्ज कर कार्यवाही शुरू की गई।

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