दिल्लीः आज लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है। पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा, “लोकनायक जयप्रकाश नारायण को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि। भारत के लिए उनका योगदान अतुलनीय है। उन्होंने लाखों लोगों को राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पित होने की प्रेरणा दी। लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रहरी के रूप में उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।“  वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार के सारण जिले में जेपी के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण के जन्मस्थान का आज दौरा करेंगे। शाह वहां समाजवादी नेता की 120वीं जयंती के समारोह में शामिल होंगे।

आपको बता दें कि भारत में जब की कभी छात्र आंदोलन की बात होती है, तो जेपी का नाम जरूर याद आता है। जेपी आंदोलन ने केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार तक को सत्ता से बेदखल कर दिया था। तो चलिए आज हम आपको जननायक से एक ऐसा ही साहसिक किस्सा सुना रहे हैं, जो उनके जेल से फरार होने का है। जगह हजारीबाग, जो उस समय संयुक्त बिहार का हिस्सा था। अंग्रेजों के नाक में दम कर देने वाले जयप्रकाश को यहां की जेल में बंद किया गया था।

जयप्रकाश नारायण यानी जेपी का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार में सारन के सिताबदियारा में हुआ था। पटना से शुरुआती पढ़ाई के बाद अमेरिका में पढ़ाई की। 1929 में स्वदेश लौटे और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हुए। तब वे मार्क्सवादी होते थे। सशस्त्र क्रांति से अंग्रेजों को भगाना चाहते थे। हालांकि, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू से मिलने के बाद उनका नजरिया बदला। जेपी नेहरू की सलाह पर कांग्रेस से जुड़े।

1942 में भारत छोड़ो आंदोलन अपने चरम पर था। इसी दौरान जेपी ब्रिटीश हुकूमत के खिलाफ लगातार मुहिम छेड़े हुए थे। तंग आकर अंग्रेजों ने जेपी को गिरफ्तार कर लिया। उन्हें पहले मुंबई की आर्थर जेल ले जाया गया। इसके बाद उन्हें दिल्ली की कैंप जेल में बंद कर दिया गया। आखिरकार जेपी को हजारीबाग की जेल में डाल दिया गया।

देश को जेपी की जरूरत थी। उन्होंने जेल से भागने का प्लान बनाया। इसमें उन्हें 5 लोगों का साथ मिला। बताते हैं कि जेल की दीवार 17 फीट ऊंची थी। इसे पार करने के लिए क्रांतिकारियों ने 56 धोतियों को जोड़कर रस्सा बनाया और वहां से भाग निकले। जेपी के साथ फरार होने वालों में रामानंद मिश्र, शालीग्राम सिंह, सूरज नारायण सिंह, योगेंद्र शुक्ला और गुलाब चंद गुप्‍ता शामिल थे। उस वक्त जेल में बंद क्रांतिकारियों ने दिवाली मनाई थी।

ब्रिटिश हुकूमत इससे बौखला गई। जेल से फरार इन 6 क्रांतिकारियों को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का आदेश जारी हुआ। 10 हजार रुपये का इनाम भी घोषित किया गया। देखते ही गोली मारने का आदेश दे दिया गया था। इन 6 सिपाहियों को तलाशने के लिए ब्रितानी सैनिकों की दो कंपनियां लगाई गईं। इन्होंने उन्हें जंगलों में बहुत ढूंढा, लेकिन नाकाम साबित हुए। आपको बता दें कि हजारीबाग जेल का नाम लोकनायक जयप्रकाश नारायण केंद्रीय कारागार है।

आजादी के बाद वे आचार्य विनोबा भावे के सर्वोदय आंदोलन से जुड़ गए। ग्रामीण भारत में आंदोलन को आगे बढ़ाया और भूदान को सपोर्ट किया। जेपी ने 1950 के दशक में राज्य व्यवस्था की पुनर्रचना नाम से किताब लिखी। इसके बाद ही नेहरू ने मेहता आयोग बनाया और विकेंद्रीकरण पर काम किया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जेपी ने कभी सत्ता का मोह नहीं पाला। नेहरू चाहते थे, लेकिन कैबिनेट से जेपी दूर ही रहे।

1975 में निचली अदालत में इंदिरा गांधी पर चुनावों में भ्रष्टाचार का आरोप सही साबित हुआ, तो जेपी ने उनसे इस्तीफा मांगा। उन्होंने इंदिरा गांधी के खिलाफ एक आंदोलन खड़ा किया, जिसे जेपी आंदोलन भी कहते हैं। उन्होंने इसे संपूर्ण क्रांति नाम दिया था। इससे घबरा कर इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी और जेपी के साथ ही अन्य विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया।

जेपी की गिरफ्तारी के खिलाफ दिल्ली के रामलीला मैदान में एक लाख से अधिक लोगों ने हुंकार भरी थी। उस समय रामधारी सिंह “दिनकर” ने कहा था “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। जनवरी-1977 में इमरजेंसी हटी। लोकनायक के “संपूर्ण क्रांति आंदोलन” के चलते देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी। जेपी को 1999 में भारत सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित किया।

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