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आरएसएस में महिलाएं निभाएंगी अहम जिम्मेदारा, 2025 तक बन सकती हैं सह-कार्यवाह और सह-सरकार्यवाह - Prakhar Prahari
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आरएसएस में महिलाएं निभाएंगी अहम जिम्मेदारा, 2025 तक बन सकती हैं सह-कार्यवाह और सह-सरकार्यवाह

दिल्लीः आरएसएस पर देश की आधी आबादी यानी महिलाओं से कटा हुआ होने के आरोप लंबे समय लगता रहा है। हालांकि यह हकीकत नहीं है। अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में महिलाओं को जल्द ही सह-कार्यवाह और सह-सरकार्यवाह पद की जिम्मेदारी मिल सकती है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक संघ की स्थापना की 100वीं वर्षगांठ (2025) तक राष्ट्र सेविका समिति में शामिल महिलाओं को संघ में लाया जा सकता है। आरएसएस के 97 साल के इतिहास में कोई महिला इस पद पर नहीं रही है।

सूत्रों का कहना है कि महिलाओं को प्रमुख पदों की नियुक्ति देने पर संघ में सहमति बन चुकी है। इसी के मद्देनजर पहली बार नागपुर में संघ के दशहरा कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर पर्वातारोही संतोष यादव को आमंत्रित किया गया है। आपको बता दें कि संतोष यादव पहली महिला होंगी, जो इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि होंगी।

आरएसएस के समक्ष कई बार यह प्रश्न उठता रहा है कि संगठन के ढांचे में शीर्ष स्थानों पर महिलाएं क्यों नहीं हैं। लिहाजा संघ में सहमति बनी है कि सह कार्यवाह और सह सरकार्यवाह की जिम्मेदारी महिलाओं को दिया जाना चाहिए। आने वाले समय में राष्ट्र सेविका समिति से जुड़ी स्वयं सेविकाओं को संघ में आने का मौका मिलेगा।

उधर, आरएसएस से जुड़े एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि लंबे समय से आरोप लगता रहा है कि संघ देश की आधी आबादी से कटा हुआ है, लेकिन, ऐसा नहीं है। संघ की स्थापना के 11 साल बाद 1936 से संघ में महिलाएं अहम भूमिका निभा रही हैं। महिलाओं के लिए बाल शाखा, तरुण शाखा और राष्ट्र सेविका समिति है। देशभर में राष्ट्र सेविका समिति की 3500 से अधिक शाखाएं हैं। वर्तमान में शांतक्का इसकी प्रमुख हैं।

आपको बता दें कि गत वर्ष दिल्ली में विदेशी प्रतिनिधियों ने बातचीत के दौरान संघ प्रमुख भागवत से इस संबंध में कई सवाल किए थे। इसके बाद ही महिला स्वयंसेविकाओं को जिम्मेदारी देने को लेकर गंभीरता से मंथन शुरू हुआ। संघ के सदस्य जब दशहरा कार्यक्रम के लिए संतोष यादव को बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित करने के लिए गए तो वहां भी महिलाओं को लेकर संघ की सोच पर बात हुई थी। इसके बाद ही संघ इस फैसले पर पहुंचा।

आरएसएस से जुड़े लोगों का कहना है कि संघ की जब स्थापना हुई थी, उस वक्त संघ के विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए घर के पुरुष सदस्यों से ही बातचीत होती है। अब महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी कर रही हैं। ऐसे में अगर पुरुष पदाधिकारियों के बराबर महिला पदाधिकारी भी संघ की जिम्मेदारी निभाएं तो अच्छी पहल होगी।

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