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सचिन मारेंगे बाजी, पार्टी आलाकमान को मंजूर नहीं है गहलोत गुट की शर्तों - Prakhar Prahari
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सचिन मारेंगे बाजी, पार्टी आलाकमान को मंजूर नहीं है गहलोत गुट की शर्तों

दिल्लीः कांग्रेस के नए अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है। पार्टी को अगले महीने नया अध्यक्ष मिल जाएगा। इससे पहले राजस्थान कांग्रेस एक बार फिर दो फाड़ होती दिख रही है। अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने से ठीक पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गुट ने बवाल खड़ा कर दिया है। राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के अध्यक्ष पद की दावेदारी के बीच सचिन पायलट को राजस्थान की गद्दी सौंपने के आलाकमान के फैसले के खिलाफ बगावती तेवर दिखा दिए हैं। गहलोत गुट का कहना है कि पायलट को छोड़कर कोई भी चलेगा। गहलोत गुट के 80 से अधिक विधायकों ने यह मांग रखते हुए रविवार रात अपना इस्तीफा विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी को सौंप दिया। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक गहलोत गुट ने पायलट को सत्ता से दूर रखने समेत 3 शर्तें पार्टी नेतृत्व के सामने रखी हैं। हालांकि, हाईकमान भी झुकने को तैयार नहीं है।

सीएम गहलोत करीबी एवं राज्य के मंत्री प्रताप खाचरियावास ने 92 विधायकों के इस्तीफे के बात कही। उन्होंने कहा कि आलाकमान ने विधायकों की राय के बिना अपना फैसला सुनाने का फैसला किया है,  जो ठीक नहीं है। उन्हें एक लाइन का यह प्रस्ताव पास करने को कहा गया था कि मुख्यमंत्री का फैसला आलाकमान करेगा। हालांकि, जब उनसे यह सवाल किया गया कि क्या सरकार गिरने वाली है,  तो उन्होंने इस बात से इनकार किया। उन्होंने कहा कि सरकार ऐसे नहीं गिर जाती है।

खाचरियावास की इस बात में गहलोत कैंप का गेमप्लान छिपा हुआ है। दरअसल, गहलोत अपनी सरकार नहीं गिराना चाहते हैं, बल्कि वह कांग्रेस आलाकमान पर इस बात का दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि राजस्थान का फैसला उनकी सहमित के आधार पर ही हो। वह चाहते हैं कि 2020 में बगावती तेवर दिखा चुके पायलट और उनके करीबी विधायकों को छोड़कर अन्य किसी को सत्ता दी जाए, जिनमें स्पीकर सीपी जोशी सबसे आगे हैं। गहलोत गुट के सभी विधायकों ने स्पीकर को इस्तीफा जरूर सौंपा है, लेकिन उनकी सदस्यता तब तक खत्म नहीं होती, जब तक स्पीकर इन्हें मंजूर नहीं कर लेते। स्पीकर अभी इस्तीफों पर कोई फैसला नहीं करने जा रहे हैं।

राज्‍य विधानसभा में मुख्‍य स‍चेतक महेश जोशी ने रविवार देर रात कहा, ”हमने इस्‍तीफे दे द‍िए हैं और आगे क्या करना है इसका फैसला अब विधानसभा अध्‍यक्ष करेंगे। इससे पहले राज्‍य के आपदा प्रबंधन और राहत मंत्री गोविंद राम मेघवाल ने मीडियाकर्मियों से कहा, ”हम अभी अपना इस्‍तीफा देकर आए हैं।” यह पूछे जाने पर कि कितने विधायकों ने इस्‍तीफा दिया, उन्‍होंने कहा, ”लगभग 100 विधायकों ने इस्तीफा दिया है।”

इसके साथ ही मेघवाल ने कहा कि कांग्रेस का राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष पद का चुनाव होने तक (राज्‍य में मुख्‍यमंत्री गहलोत के उत्तराधिकारी को लेकर) कोई बात नहीं होगी। जोशी के निवास से निकलते हुए कांग्रेस प्रदेश अध्‍यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा, ”सब कुछ ठीक है।”  कांग्रेस के मुख्‍य सचेतक जोशी ने कहा, ”हमने अपनी बात आलाकमान तक पहुंचा दी है… उम्‍मीद करते हैं कि आने वाले जो फैसले होंगे उनमें उन बातों का ध्‍यान रखा जाएगा। विधायक चाहते हैं कि जो कांग्रेस अध्‍यक्ष और आलाकमान के प्रति न‍िष्‍ठावान रहे हैं उनका पार्टी पूरा ध्‍यान रखे।”

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी भी पायलट के नाम पर सहमत हैं। ऐसे में गहलोत कैंप के तेवर को आलाकमान को सीधी चुनौती के रूप में भी देखा जा रहा है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो यदि गहलोत कैंप ने अपना फैसला नहीं बदला तो हाईकमान ऐक्शन पर भी मजबूर हो सकता है, जो गहलोत को उलटा पड़ सकता है। गहलोत ने अध्यक्ष बनने से पहले ही गांधी परिवार के प्रभुत्व को चुनौती दे दी है। यह उनके खिलाफ जा सकता है।

भले ही गहलोत अपनी सरकार नहीं गिराना चाहेंगे और प्रेसर पॉलिटिक्स के तहत उनके विधायकों ने इस्तीफा दिया है, लेकिन यह दांव उलटा भी पड़ सकता है। जिस तरह का रुख और खुला विरोध पायलट का हो रहा है, उससे संभव है कि सचिन का ‘सब्र’ भी टूट जाए। यदि आलाकमान स्थिति को संभालने में नाकाम रहा तो पायलट का खेमा भी मोर्चा खोल सकता है। पायलट के पास करीब 25 विधायक हैं, जो उनके एक इशारे पर पार्टी छोड़ सकते हैं। ऐसा हुआ तो भी सरकार का बचना मुश्किल हो जाएगा।

गहलोत गुट की क्या हैं शर्तें- गहलोत कैंप ने आलाकमान के सामने तीन शर्तें रखी हैं। उनमें पहली शर्त यह है कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री ना बनाया जाए। उन्होंने 2020 में सरकार से बगावत की थी। मुख्यमंत्री उन 102 विधायकों में से किसी को बनाया जाए जो संकट के समय सरकार के साथ थे। दूसरी शर्त यह है कि नए मुख्यमंत्री का फैसला गहलोत के अध्यक्ष बन जाने के बाद यानी 19 अक्टूबर के बाद ही हो। इसके बाद ही वह इस्तीफा देंगे। तीसरी शर्त है कि अशोक गहलोत को भी मुख्यमंत्री बने रहने का विकल्प दिया जाए।

पार्टी आलाकमान को मंजूर नहीं हैं शर्तें-
गहलोत गुट की शर्तों से आलाकमान की ओर से जयपुर भेजे गए अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे भी हैरान हैं। माकन ने ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ से कहा कि 19 अक्टूबर (कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव परिणाम का दिन) से पहले सीएम की घोषणा नहीं करने से हितों के टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। गहलोत कैंप के तीनों शर्तों पर गहलोत ने कहा, ”हम विधायक दल की बैठक के लिए आए थे, जिसे मुख्यमंत्री ने ही तय किया था। समय और दिन उनकी पसंद का था। बहुत हैरानी की बात है कि विधायक नहीं आए। हम सभी विधायकों से अलग-अलग बात करना चाहते थे, ताकि वह खुलकर बोल सकें।”

आपको बता दें कि 200 सीटों वाली राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस के 108 विधायक हैं। सरकार को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के 2, भारतीय ट्राइबल पार्टी के 2, राष्ट्रीय लोकदल के एक और 13 निर्दलीय का समर्थन प्राप्त है। कांग्रेस के 108 विधायकों में करीब 80-90 गहलोत कैंप में है और करीब 25 विधायक पायलट गुट में हैं। विपक्ष की बात करें तो भाजपा के पास 71 विधायक हैं और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के पास 3 सदस्य हैं।

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