मुंबईः उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना को बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को बड़ी राहत दी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) को शिवाजी पार्क में दशहरा रैली (Shivaji Park Dussehra Rally) की इजाजत दे दी। अदालत ने इस संबंध में शिंदे गुट की याचिका को भी खारिज करते हुए उद्धव ठाकरे गुट को दो से छह अक्टूबर के लिए दशहरा रैली की इजाजत दे दी। अदालत के इस फैसले को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट के लिए झटका माना जा रहा है।
आपको बता दें कि शिंदे गुट के विधायक सदा सरवणकर की तरफ से अदालत में याचिका दायर की गयी थी, जिसमें शिवाजी पार्क में दशहरा रैली के आयोजन की अनुमति मांगी गई थी। अदालत ने उद्धव गुट के पक्ष में फैसला देते हुए कहा कि बीएमसी (BMC Shivaji Park Verdict) की दलील में कोई तथ्य नहीं है।
बॉम्बे हाई कोर्ट में आज इस मुद्दे पर सुनवाई हुई, जिसमें उद्धव, शिंदे और बीएमसी के वकीलों ने अपनी- अपनी दलीलें दीं। एक तरफ जहां ठाकरे गुट ने 50 साल पुरानी शिवसेना की परंपरा का हवाला देते हुए मंजूरी की मांग की थी। वहीं दूसरी तरफ बीएमसी ने बताया कि कोई व्यक्ति या संगठन मैदान में रैली के लिए अपना अधिकार नहीं जता सकता। उन्हें हर साल आवेदन करना होगा। साथ ही लॉ एंड आर्डर की समस्या को देखते हुए आवेदन को ख़ारिज किया जा सकता है। बीएमसी ने इसी आधार पर किसी भी गुट को इजाजत नहीं दी थी।
वहीं, उद्धव ठाकरे गुट की तरफ से एसपी चिनॉय ने बहस करते हुए हाई कोर्ट में कहा कि शिवसेना साल 1966 से शिवाजी पार्क में दशहरा रैली का आयोजन करती आई है। सिर्फ कोरोना काल के दौरान यह दशहरा रैली नहीं आयोजित हो पाई थी। अब कोरोना के बाद सभी त्यौहार मनाए जा रहे हैं। ऐसे में इस वर्ष हमको दशहरा रैली का आयोजन करना है, जिसके लिए हमने अर्जी की है। इस मामले में बीएमसी ने इजाजत देने से इनकार कर दिया है। हालांकि, दशहरा रैली शिवसेना की कई दशक पुरानी परंपरा है, जिसे कायम रखना हमारी जिम्मेदारी है। चिनॉय ने कहा कि हैरत वाली बात यह है कि अचानक एक और दूसरी अर्जी दशहरा रैली के लिए बीएमसी के पास आई है, जो गलत है। पिछले 50 सालों से हम उसी जगह पर दशहरा रैली का आयोजन करते रहे हैं। हर बार हमें इजाजत दी जाती थी।
हाईकोर्ट का यह फैसला उद्धव गुट के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है। इसी साल एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में विधायकों की बगावत के बाद महाराष्ट्र की सत्ता गंवाने वाले उद्धव ठाकरे के लिए कोर्ट का एक फैसला कई मायनों में बड़ी राहत है। ठाकरे के पास सियासत और विरासत दोनों जीतने का मौका है। शिवसेना इसी जगह से निकली है। ऐसे में सरकार गंवाने के बाद अपनी पहली रैली से उद्धव ठाकरे इमोशनल कार्ड खेल सकते हैं। कहते हैं कि बाल ठाकरे इसी जगह से हर साल पार्टी की आगे की दिशा तय करते थे। संकट की घड़ी में उद्धव ठाकरे के पास भी ऐसा ही मौका है। हर साल दशहरा रैली शिवसेना के लिए किसी बड़े उत्सव की तरह होती है।
आपको बता दें कि शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने शिवाजी पार्क में दशहरा रैलियों में ही बड़ी घोषणाएं कीं थीं। इसी रैली में बाल ठाकरे ने अपने पोते आदित्य ठाकरे को लेकर जनता से अपील की थी। उन्होंने अपने अंतिम दशहरा संबोधन में शिवसैनिकों से अपने संदेश में उद्धव और आदित्य का ख्याल रखने को कहा था। 24 अक्टूबर, 2012 को अपने अंतिम दशहरा संबोधन में, बाल ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी के खिलाफ आवाज उठाई तथा अपने बेटे और पोते के लिए समर्थन मांगा था। उन्होंने कहा था, “आपने मेरा ख्याल रखा। अब, उद्धव और आदित्य का ख्याल रखना।”
क्यों महत्वपूर्ण है शिवाजी पार्क?– उद्धव ठाकरे जब महाराष्ट्र मुख्यमंत्री बने थे, तब उनका शपथ ग्रहण समारोह मुंबई के मराठी बहुल दादर इलाके में 28 एकड़ के ऐतिहासिक शिवाजी पार्क मैदान में ही हुआ था। शिवाजी पार्क शिवसेना का एक बेशकीमती गढ़ है। 1995 में भी, जब शिवसेना-बीजेपी गठबंधन ने पहली बार राज्य का चुनाव जीता था, तब भी इसी स्थान पर शिवसेना नेता मनोहर जोशी ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। पांच दशकों से अधिक समय से, मुंबई का शिवाजी पार्क वार्षिक दशहरा रैली के लिए शिवसेना का स्थल रहा है। जब बाल ठाकरे ने 1966 के दशहरे पर पार्क में अपनी पहली आधिकारिक रैली की, तो उसमें भारी भीड़ उमड़ी और एक परंपरा की शुरुआत हो गई। तब से हर साल शिवसेना ने दशहरा रैली शिवाजी पार्क में ही की है।
शिवसेना और दशहरा रैली- बाल ठाकरे ने 1966 में शिवसेना का गठन किया और इसी साल बाल ठाकरे ने शिवाजी पार्क में अपनी पहली रैली की थी। तब से वह हर साल दशहरा के दिन शिवाजी पार्क में रैली करते रहे। इस पार्क ने स्थानीय जनता के समर्थन को आकर्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसकी वजह यह भी रही क्योंकि दादर का यह इलाका मराठों का गढ़ है। तेजतर्रार नेता को देखने के लिए बड़ी भीड़ उमड़ती थी। इस दिन उनका भाषण महत्वपूर्ण हो जाता था क्योंकि यही भाषण पार्टी की आगे की दिशा तय करता था। इन वर्षों में, ठाकरे अन्य राजनीतिक हस्तियों को दशहरा रैली में शामिल करते रहे, जिनमें बीजेपी नेता अटल बिहारी वाजपेयी और प्रमोद महाजन, समाजवादी जॉर्ज फर्नांडीस तथा शरद पवार शामिल हैं। 2010 में, जब बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई नगर निकाय को शिवाजी पार्क को साइलेंट जोन के रूप में अधिसूचित करने का निर्देश दिया, तो ठाकरे ने शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में आदेश पर जमकर निशाना साधा। हालांकि अदालत ने बाद में वार्षिक सभा की अनुमति दे दी थी।
पांच दशक से अधिक समय के बाद भी दशहरा रैली की परंपरा अभी भी जारी है। ठाकरे के पुत्र व उत्तराधिकारी उद्धव हर साल यहां रैली को संबोधित करते आ रहे हैं। शिवसेना मुख्यालय जिसे सेना भवन कहते हैं वह भी इसके पास में ही स्थित है। बाल ठाकरे कई वर्षों तक इसी पार्क के आसपास रहे। मनसे प्रमुख राज ठाकरे भी इसी इलाके के रहने वाले हैं। पार्क में बाल ठाकरे को समर्पित एक स्मृति स्थल है। यही नहीं, 2018 में बीएमसी ने मुंबई के मेयर बंगले को एक बड़ा स्मारक बनाने के लिए एक ट्रस्ट को सौंप दिया था।
शिवाजी पार्क का इतिहास- शिवाजी पार्क का इतिहास 1925 से शुरू होता है। 1925 में इसे माहिम पार्क के रूप में स्थापित किया गया था, लेकिन स्वतंत्रता सेनानी और तत्कालीन बीएमसी पार्षद अवंतिकाबाई गोखले के प्रयासों के कारण 1927 में इस खुली जगह का नाम बदलकर शिवाजी पार्क कर दिया गया। जनता के पैसों से यहां शिवाजी की एक प्रतिमा का भी निर्माण किया गया था। 1930 और 1940 के दशक में, इसी पार्क ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता रैलियों की मेजबानी की, और स्वतंत्रता के बाद संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन का भी गढ़ यही पार्क बना। आंदोलन के नेताओं में शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के पिता समाज सुधारक केशव सीताराम उर्फ प्रबोधंकर ठाकरे भी शामिल थे।
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