जयपुरः राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंगलवार को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ तथा पश्चिम बंगाल की तल्खी को लेकर खूब चुटकी ली। जगह थी… राजस्थान विधानसभा और मौका था… उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अभिनंदन समारोह का। गहलोत ने कार्यक्रम के दौरान धनखड़ से पूछा कि ममता बनर्जी के साथ इतनी तल्खियों के बाद भी आपने टफ लेडी पर ऐसा कौन सा जादू कर दिया कि उपराष्ट्रपति के चुनाव के वोटिंग के दौरान उन्होंने अपने सांसदों को ही अनुपस्थित करवा दिया।

पश्चिम बंगाल का राज्यपाल रहते हुए जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच की तल्खी जगजाहिर रही हैं। इसी तल्खी को लेकर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चुटकी ली। उन्होंने धनखड़ से तीन साल के तल्ख रिश्तों के बावजूद उपराष्ट्रपति चुनावों में ममता बनर्जी के मदद का राज के बारे में पूछ लिया।

गहलोत ने कार्यक्रम के दौरान धनखड़ से पूछा कि ममता बनर्जी के साथ इतनी तल्खियों के बाद भी आपने टफ लेडी पर ऐसा कौन सा जादू कर दिया कि राष्ट्रपति चुनाव के वोटिंग के दौरान उन्होंने अपने सांसदों को ही अनुपस्थित करवा दिया।

उन्होंने कहा, “मेरा 50 साल से आपसे रिश्ता है। मैं जब एनएसयूआई में था, तब से कुछ परिवारों से मेरे संबंध हैं। इनमें से एक धनखड़ परिवार भी है। मैं एक बात आपसे समझना चाहता हूं। गवर्नर के रूप में आपकी भूमिका की खूब चर्चा रही। पश्चिम बंगाल के गवर्नर जब तक आप रहे, तब तक वहां की मुख्यमंत्री और आपकी चर्चा रही।“

सीएम गहलोत ने कहा कि तीन साल में कोई दिन नहीं गया, जब धनखड़ साहब की और ममता बनर्जी की चर्चा नहीं हुई हो। इसके बाद आपने कौन सा जादू किया कि वही ममता बनर्जी आपको चुनाव जितवाने के लिए अपने सांसदों को अनुपस्थित करवा दिया। आपने ममता बनर्जी जैसी ‘टफ लेडी’ पर क्या जादू किया। जादूगर तो मैं हूं। मुझसे बड़ा जादूगर कोई है क्या हिंदुस्तान में।

उन्होंने कह,  “जब ममता बनर्जी ने कहा कि हम एबसेंट रहेंगे तो पूरे देश को अचंभा हुआ। गहलोत ने तंज कसते हुए कहा- अरे भाई कल तक तो आप ‘प्यार-मोहब्बत’ की बातें करते थे। सारी हदें पार करके भी आपके सियासी संबंध अच्छे रहे। आप आराम से चुनाव जीत गए। केवल यही राज बता दीजिए।“

मुख्यमंत्री ने कहा कि जब आपका चुनाव हुआ,  तब मैंने ही सबसे पहले बधाई दी। मैं और सीपी जोशी उस वक्त साथ बैठे थे। मैंने उस वक्त जो ट्वीट किया था। वही भावना मेरी अब भी है। भैरो सिंह शेखावत के बाद धनखड़ दूसरे नेता हैं, जो इस पद पर आए हैं। आपने राज्यपाल के तौर पर भी राजस्थान वासियों के लिए दरवाजे हमेशा खुले रखे। आपने हमेशा राजस्थान वासियों का मान-सम्मान बढ़ाया है। हमारे लंबे संबंध हैं। आप तो केवल ममता बनर्जी वाला राज ही बता दीजिए, बाकी तो सब जानते हैं।

वहीं उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि मुख्यमंत्री जी ने पूछा है कि वह कौन सा जादू है, जिसकी वजह से ममता बनर्जी ने वह निर्णय लिया। मैं राजनीति से परे हूं। राजनीतिक निर्णय कैसे और किस आधार पर लेते हैं, इस पर अशोक गहलोत, वसुंधरा राजे ही प्रकाश डाल सकते हैं।

उन्होंने कहा, “मैंने उनसे (ममता बनर्जी से) कहा कि अब मैं आपके राज्य का राज्यपाल नहीं हूं। आप दिल पर हाथ रखकर सोचिए। क्या कभी भी मैंने कोई भी काम कानून और संविधान के दायरे के खिलाफ किया है? क्या कभी भी मैंने, चाहे उन्होंने कुछ भी कहा हो, कुछ भी हालात रहे हों, एक भी शब्द उनकी मर्यादा पर कटाक्ष करते हुए कहा है? जो कुछ मैंने किया, खुली किताब की तरह किया। लिखित में किया। फिर भी मैं इस सदन के माध्यम से पहली बार उनके प्रति उनके कदम के लिए आभार प्रकट करता हूं।“

उपराष्ट्रपति ने कहा कि मैं सफल वकील रहा। मैंने सियासी जीवन में सफलता के ट्रेड सीक्रेट दो महापुरुषों से लिया। ताऊ देवीलाल और भैरोसिंह शेखावत। उन दोनों ने मुझे कहा कि ये ट्रेड सीक्रेट है। किसी को बताना मत। मैंने गहलोतजी की बात कभी टाली नहीं है, लेकिन उन दो महापुरुषों में से कोई है नहीं, इसलिए वह ट्रेड सीक्रेट मैं नहीं बताऊंगा। मुझे यहां सदन में दिल की बात कहनी पड़ेगी।

धनखड़ ने कहा कि मैंने राज्यपाल बनने के बाद वसुंधरा राजे से मदद मांगी कि मेरी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं। मुझे कोई न कोई जादूगरी का टोना बताएं। मुझे आज भी याद है कि विधानसभा चुनाव के वक्त चूरू से राजेंद्र राठौड़ उम्मीदवार थे। उस वक्त मैंने ऐसा जादू किया कि आज तक राठौड़ चुनाव नहीं हारे हैं। इस बात पर खूब ठहाके लगे।

उन्होंने कहा, “संसद और विधानसभा बहुत सशक्त माध्यम हैं। संविधान बनाते समय इन्हें ताकत दी गई। लेकिन आज के हालात चिंताजनक हैं। अमर्यादित आचरण हो रहा है। जनप्रतिनिधि संसद और विधानसभा में इस तरह का आचरण कैसे कर सकते हैं कि हास्य का विषय बन गया। ये आचरण लोकतंत्र की जड़ें हिला देंगे। कोई कसर बाकी नहीं रही है। विचित्र और भयावह सीन संसद विधानसभाओं में दिख रहे हैं। जिन मुद्दों पर संसद विधानसभाओं में चर्चा करनी है, वो सड़क पर होती है। सांसद-विधायक सचेत हो जाएं। उन्होंने जनता से जुड़े मुद्दे नहीं उठाए तो वह काम फिर सड़क पर होगा।“

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