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तीस्ता मामले में सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणीः सीजेआई बोले, न पोटा, न UAPA, फिर एक महिला दो महीने से कस्टडी में क्यों?

दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को गुजरात दंगों से जुड़े साजिश के मामले में एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ की अंतरिम राहत वाली याचिका पर सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने तीस्ता की हिरासत को लेकर तल्ख टिप्पणी की और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि तीस्ता के खिलाफ न तो UAPA और न ही POTA का केस दर्ज है, फिर भी 2 महीने से आपने उन्हें कस्टडी में रखा है? कोर्ट शुक्रवार को दोपहर 2 बजे फिर इस मामले में सुनवाई करेगा।

वहीं, मेहता ने तीस्ता की जमानत का विरोध करते हुए कहा कि मामला हाईकोर्ट में है, इसलिए आप वहीं सुनवाई होने दें। मेहता ने इस दौरान कहा कि सुप्रीम कोर्ट पूरी तरह आंखें बंद करके ना रखे, लेकिन आंखें पूरी खोले भी नहीं। इस सुनवाई चीफ जस्टिस यूयू ललित की बेंच में हुई। सुनवाई के दौरान तीस्ता की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल तो गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल मेहता पेश हुए। अब चलिए आपको बताते हैं कि कोर्ट में सुनवाई के दौरान किसने क्या कहा-

कपिल सिब्बल: तीस्ता के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने 24 जून को टिप्पणी की और 25 जून को उसे गुजरात पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। बिना जांच और सबूत के।

जस्टिस यूयू ललित: 2 महीने में क्या आपने चार्जशीट दाखिल कर दी है या आप अभी भी जांच ही कर रहे हैं? आपको अब तक क्या-क्या मिला है?

तुषार मेहता: राज्य सरकार नियमानुसार कार्रवाई कर रही है। जांच और उसके बारे में हम हाईकोर्ट में बताएंगे। आप इस मामले को हाईकोर्ट को ही सुनने दीजिए।

जस्टिस यूयू ललित: हाईकोर्ट में 3 अगस्त को जमानत याचिका दाखिल की गई। सुनवाई की तारीख 19 सितंबर है। 6 हफ्ते बाद किसी की जमानत पर सुनवाई होगी? गुजरात हाईकोर्ट की यही स्टैंडर्ड प्रैक्टिस है? मान लीजिए हम तीस्ता को अंतरिम राहत दे देते हैं और मामले की सुनवाई होने देते हैं, तो?

तुषार मेहता: मैं इसका विरोध करूंगा। गुजरात दंगों के बाद तीस्ता साजिश में शामिल थी और ये IPC की धारा 302 से भी ज्यादा गंभीर है।

आपको बता दें कि गुजरात सरकार ने 30 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर तीस्ता की जमानत का विरोध किया था। सरकार ने कहा था कि तीस्ता के खिलाफ FIR न केवल सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आधारित है, बल्कि सबूतों द्वारा समर्थित है।

अब तक की गई जांच में प्राथमिकी (FIR) को सही ठहराने के लिए उस सामग्री को रिकॉर्ड में लाया गया है, जो स्पष्ट करती है कि आवेदक ने राजनीतिक, वित्तीय और अन्य भौतिक लाभ प्राप्त करने के लिए अन्य आरोपियों के साथ मिलकर आपराधिक कृत्य किए थे।

2002 के गुजरात दंगों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने वाली एसआईटी (SIT) रिपोर्ट के खिलाफ याचिका को 24 जून को खारिज कर दिया था। याचिका जकिया जाफरी ने दाखिल की थी। जकिया जाफरी के पति एहसान जाफरी की इन दंगों में मौत हुई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जकिया की याचिका में मेरिट नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि मामले में को-पेटिशनर तीस्ता ने जकिया जाफरी की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया। कोर्ट ने तीस्ता की भूमिका की जांच की बात कही थी। जिसके बाद अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने 25 जून को तीस्ता को मुंबई से गिरफ्तार कर लिया था।

General Desk

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