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चोला चढ़ाने के लिए मंदसौर के चिंताहरण मंदिर में करना पड़ता है चार साल इंतजार, जानें गजानन की क्या है महिमा - Prakhar Prahari
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चोला चढ़ाने के लिए मंदसौर के चिंताहरण मंदिर में करना पड़ता है चार साल इंतजार, जानें गजानन की क्या है महिमा

दिल्लीः आज गणेश चतुर्थी है। आज से गणेशोत्सव शुरू हो रहा है। ऐसे में आज हम आपको द्विमुखी गणेश मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। एक ही पाषाण (पत्थर) पर बनी 8 फीट ऊंची द्विमुखी प्रतिमा संभवतः पूरे विश्व में और कहीं नहीं है। श्री द्विमुखी चिंताहरण गणपति के नाम से यह मंदिर मध्य प्रदेश  के मंदसौर में है।

प्रतिमा ‘गणेश स्थानक’ है। यानी गणेश जी खड़ी अवस्था में हैं। प्रतिमा का आगे का स्वरूप पंचसुंडी (पांच सूंड) तो पीछे की तरफ गणेश भगवान सेठ की मुद्रा में हैं। पीछे के मुख में एक सूंड और सिर पर पगड़ी धारण है। ये गणेश जी को श्रेष्ठीधर सेठ के रूप में अभिव्यक्त करता है।

एक खास बात यह है कि आगे के मुख पर पांच सूंड है, ये विघ्नहर्ता गणेशजी कहलाते हैं। पांच सूंड की दिशा बाईं ओर है, जबकि पीछे के मुख की सूंड दाहिनी दिशा में है।

यह प्रतिमा 9वीं सदी की बताई जाती है। भगवान गणेश की जितनी आलौकिक यह दो रूपी प्रतिमा है, उतनी ही अनोखी इसकी कहानी भी है…

मंदिर के पुजारी सत्यनारायण जोशी ने बताया कि मंदसौर में मूलचंद बसाब सर्राफ हुआ करते थे। उन्हें सपने में गणेश जी ने दर्शन दिए और शहर के नाहर सैयद तालाब से बाहर निकालने के लिए कहा। वे खुद तालाब पर गए और सपने में बताई गई जगह से कीचड़ हटाया, वहां प्रतिमा मिली।

 

यह बात 22 जून 1929 की है। तब शहर में धान मंडी लगा करती थी। मूलचंद जी मंडी आए और यहां जमा व्यापारियों को अपने सपने और प्रतिमा के बारे में बताया। इसके बाद सभी तालाब पर गए और गणेश जी के दर्शन किए। तय हुआ कि शहर के नर्सिंगपुरा में प्रतिमा को स्थापित करेंगे।

 

सभी बैलगाड़ी से प्रतिमा लेकर निकले। अभी जहां मंदिर है, उस जमाने में यहां दो नीम के पेड़ थे। बैलगाड़ी यहां तक आई, लेकिन इसके बाद आगे नहीं बड़ी। लाख जतन के बाद भी बैलगाड़ी को बैल खींच नहीं पाए। सभी ने निर्णय किया कि गणेश जी यहां ही बैठना चाहते हैं। इसके बाद प्रतिमा को यहां ही स्थापित कर दिया गया। तब इस जगह का नाम इलायची चौक हुआ करता था। प्रतिमा के स्थापित हो जाने के बाद नाम गणपति चौक हो गया।
आपको बता दें कि द्विमुखी गणेश जी को चोला चढ़ाने के लिए 4 साल का इंतजार करना पड़ता है। मंदिर ट्रस्ट के सदस्य गोपाल मंडोवरा ने बताया कि गणेश जी को हर बुधवार को चोला चढ़ाया जाता है। चिंताहरण गणेश जी को चोला चढ़ाने के लिए भक्तों को पूरे तीन से चार साल तक इंतजार करना पड़ता है।

गणेश पुराण के अनुसार भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इस साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी की शुरुआत 30 अगस्त को दोपहर के 3 बजकर 34 मिनट पर होगी। यह 31 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 23 मिनट पर खत्म हो जाएगी। पद्म पुराण के अनुसार भगवान गणेश का जन्म स्वाति नक्षत्र में मध्याह्न काल में हुआ था। इस कारण से इसी समय पर गणेश स्थापना और पूजा करना ज्यादा शुभ और लाभकारी माना जाता है।

Delhi Desk

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