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बीजेपी संसदी बोर्ड से गडकरी और शिवराज की विदाई, 24 दिन पहले नितिन ने कहा था कि जी करता है राजनीति छोड़ दूं

दिल्लीः बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पार्टी के संसद बोर्ड से हटा दिया है। पार्टी ने बुधवार को नए संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति का ऐलान किया है। पार्टी के 11 सदस्यों वाले संसदीय बोर्ड से इन दोनों नेताओं को जगह नहीं मिली है। आपको बता दें कि नितिन गडकरी ने 24 जुलाई को यानी 24 दिन पहले नागपुर में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि  मन करता है राजनीति छोड़ दूं।

गडकरी के इस बयान के अभी एक महीना भी पूरे नहीं हुए है कि पार्टी संगठन की सबसे ताकतवर संस्था केंद्रीय संसदीय बोर्ड से उनकी विदाई हो गई। आपको बता दें कि केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले साल भी राजनेताओं पर एक और बयान दिया था जिसकी राजनीतिक गलियारे में काफी चर्चा रही।

गडकरी ने राजस्थान विधानसभा में एक सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा था- आजकल हर किसी की समस्या है, हर कोई दुखी है। जो मुख्यमंत्री बनते हैं, वो इसलिए परेशान रहते हैं कि पता नहीं कब हटा दिया जाए। विधायक इसलिए दुखी हैं, क्योंकि वो मंत्री नहीं बन पाए। मंत्री इसलिए दुखी हैं, क्योंकि उन्हें अच्छा विभाग नहीं मिला। अच्छे विभाग वाले इसलिए दुखी हैं, क्योंकि वो मुख्यमंत्री नहीं बन पाए।

बीजेपी के नए संसदीय बोर्ड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जेपी नड्डा, अमित शाह, राजनाथ सिंह के अलावा सर्वानंद सोनोवाल, बीएस येदियुरप्पा, के लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया और पार्टी सचिव बीएल संतोष को जगह मिली है। पार्टी के संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में एक भी मुख्यमंत्री को भी जगह नहीं मिली है।

बीजेपी ने संसदीय बोर्ड के साथ ही 15 सदस्यों की केंद्रीय चुनाव समिति का गठन किया है। इसमें पीएम मोदी, जेपी नड्डा, अमित शाह, राजनाथ सिंह के अलावा बीएस येदियुरप्पा, के लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया, भूपेंद्र यादव, देवेंद्र फडणवीस, ओम माथुर, बीएल संतोष और वनथी श्रीनिवास को जगह दी गई है। शाहनवाज हुसैन और जुएल उरांव को चुनाव समिति से बाहर किया गया है। अब चलिए आपको बताते हैं कि बीजेपी संसदीय बोर्ड के मायने क्या हैं-

– पहली बार पूर्वोत्तर को प्रतिनिधित्व: नार्थ ईस्ट से सर्बानंद सोनोवाल को स्थान मिला है। वह असम के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं। फिलहाल केंद्र में मंत्री है। नार्थ ईस्ट में उनका प्रभाव भी है। अगले साल नार्थ ईस्ट के कई राज्यों में चुनाव होंगे, जिसका सीधे तौर पर बीजेपी को फायदा मिलेगा। पहली बार नार्थ ईस्ट से किसी व्यक्ति को संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया है।

– सुषमा स्वराज की जगह को सुधा यादव भरने की कोशिश: सुषमा स्वराज के देहांत के बाद बीजेपी संसदीय बोर्ड में महिला की कमी खल रही थी। उस कमी को पूरा करने के लिए बीजेपी ने हरियाणा से आने वाली सुधा यादव को शामिल किया है। सुधा यादव ओबीसी से आती है।

– बीजेपी का निशाना पूरे देश के ओबीसी पर है। इसी के मद्देनजर सुधा यादव को संसदीय बोर्ड में स्थान मिला है। इतना नहीं बल्कि सुधा यादव कारगिल शहीद की पत्नी है। इसके लिए सैनिक परिवारों में भी भाजपा की ओर से एक बड़ा संदेश देने की कोशिश की गई है। सुधा यादव अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के दौरान सांसद रह चुकी है।

– दलित के जरिए सियासी मैसेज देने का प्रयास:  आपको बता दें कि अगले साल मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने है। ऐसे में मध्य प्रदेश से आने वाले राज्यसभा सांसद सत्य नारायण जटिया को बीजेपी ने संसदीय बोर्ड में शामिल करके बड़ा सियासी मैसेज दिया है।

– आपको बता दें कि पहले मध्य प्रदेश से संसदीय बोर्ड में दलित चेहरे के तौर पर थावर चंद गहलोत हुआ करते थे, जिन्हें बीजेपी ने राज्यपाल बना दिया। उनके अलावा मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज चौहान थे, लेकिन उन्हें हटाकर भाजपा ने दलित चेहरे को ज्यादा पंसद किया है।

– अल्पसंख्यक के तौर पर इकबाल: इकबाल सिंह पूर्व आईपीएस (IPS) यानी भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी हैं, जिन्होंने 2012 में बीजेपी जॉइन की। इसके पहले ये नेशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटी के चेयरमैन भी रहे हैं। ये बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रह चुके हैं। जब पंजाब में आतंकवाद का दौर था तब इकबाल सिंह एक्टिव पुलिस अफसर को रूप में सेवाएं दे रहे थे। इकबाल की बीजेपी के संसदीय बोर्ड में एंट्री से बीजेपी पंजाब के वोटर को खुश करना चाहती है। वहीं देशभर में फैले सिख समुदाय के लिए ये मैसेज देने की कोशिश है।

– दक्षिण भारत से येदियुरप्पा और लक्षमण: येदियुरप्पा कर्नाटक के सबसे ज्यादा चार बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। और तीन बार नेता विपक्ष रहे हैं। कर्नाटक के अलावा येदुरप्पा का दक्षिण में अच्छा खासा प्रभाव है। मुख्यमंत्री पद के हटाए जाने के बाद अब येदुरप्पा को संसदीय बोर्ड में लाया गया है। ये उन्हें संतुष्ट करने की कोशिश लगती है। वहीं दूसरी तरफ दक्षिण में पैठ बनाने की कोशिश कर रही बीजेपी के लिए येदुरप्पा का चेहरा काम आ सकता है।

– डॉ. के. लक्ष्मण फिलहाल बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। ये तेलंगाना राज्य से आते हैं और राज्य की इकाई के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। बीजेपी तेलंगाना के चंद्रशेखर राव को चुनौती देना चाहती है और इस काम में के लक्ष्मण अहम भूमिका निभा सकते हैं। इसके अलावा लक्ष्मण ओबीसी वोट बैंक भी साध सकते हैं।

आपको बता दें कि बीजेपी में पार्टी की संसदीय बोर्ड को सबसे ताकतवर माना जाता है। गठबंधन से लेकर हर बड़े फैसले बोर्ड की 11 सदस्यीय टीम लेती है। इसके अलावा राज्यों में मुख्यमंत्री का चेहरा या विधान परिषद का नेता चुनने का काम भी इसी इकाई का होता है।

 

पार्टी में प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश के मुख्यमंत्री और विपक्ष का नेता चुनने का काम संसदीय बोर्ड ही करती है। राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर गठबंधन को लेकर भी संसदीय बोर्ड का ही फैसला अंतिम माना जाता है।

वहीं, संसदीय बोर्ड के बाद चुनाव समिति बीजेपी में दूसरी सबसे ताकतवर संस्था के तौर पर जानी जाती है। चुनाव समिति के सदस्य लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनाव के टिकटों पर फैसला लेते हैं। चुनावी मामलों की सभी शक्तियां पार्टी की चुनाव समिति के पास हैं। 2014 लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार भी केंद्रीय चुनाव समिति ने ही तय किया था। तब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह हुआ करते थे।

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले महीने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि  कभी-कभी मन करता है कि राजनीति ही छोड़ दूं। समाज में और भी काम हैं, जो बिना राजनीति के किए जा सकते हैं। गडकरी ने कहा कि महात्मा गांधी के समय की राजनीति और आज की राजनीति में बहुत बदलाव हुआ है। बापू के समय में राजनीति देश, समाज, विकास के लिए होती थी, लेकिन अब राजनीति सिर्फ सत्ता के लिए होती है।

Delhi Desk

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