दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने मीडिया की कार्यप्रणाली पर सवाल है और जमकर लताड़ लगाई है। जस्टिस रमना ने शनिवार को कहा कि मीडिया कंगारू कोर्ट लगा लेता है। ऐसे में अनुभवी जजों को भी फैसला लेने में मुश्किल आती है। उन्होंने कहा कि प्रिंट मीडिया में अभी भी जवाबदेही है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कोई जिम्मेदारी नहीं दिखती है।
सीजेआई (CJI) ने गलत सूचना और एजेंडा संचालित बहस लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताते हुए कहा कि हम देखते हैं कि किसी भी केस को लेकर मीडिया ट्रायल शुरू हो जाता है। कई बार अनुभवी न्यायाधीशों को भी फैसला करना मुश्किल हो जाता है। न्याय वितरण से जुड़े मुद्दों पर गलत सूचना और एजेंडा संचालित बहस लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो रही है। उन्होंने कहा कि अपनी जिम्मेदारियों से आगे बढ़कर आप हमारे लोकतंत्र को दो कदम पीछे ले जा रहे हैं।
इस दौरान उन्होंने कहा कि आजकल जजों पर हमले बढ़ रहे हैं। पुलिस और राजनेताओं को रिटायरमेंट के बाद भी सुरक्षा दी जाती है, इसी तरह जजों को भी सुरक्षा दी जानी चाहिए। सीजेआई ने कहा कि वे राजनीति में जाना चाहते थे, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। हालांकि, जस्टिस रमना ने कहा कि उन्हें जज बनने का मलाल नहीं है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय की न्यायपालिका के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक निर्णय के लिए मामलों को प्राथमिकता देना है। न्यायाधीश सामाजिक वास्तविकताओं से आंखें नहीं मूंद सकते। सिस्टम को टालने योग्य संघर्षों और बोझ से बचाने के लिए जज को दबाव वाले मामलों को प्राथमिकता देनी होगी।
27 अगस्त, 1957 को आंध्र प्रदेश में कृष्णा जिले के पोन्नावरम गांव में एक किसान परिवार में जन्मे जस्टिस एनवी रमना ने 24 अप्रैल 2021 को भारत के 48वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली थी। वे हैदराबाद में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में केंद्र सरकार के अतिरिक्त स्थायी वकील और रेलवे के वकील भी रहे हैं। वे आंध्र प्रदेश के अतिरिक्त महाधिवक्ता भी रहे हैं।
उन्होंने 10 मार्च, 2013 से 20 मई, 2013 तक आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में काम किया। उन्हें 27 जून, 2000 को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।
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