दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को शिवसेना के 16 विधायकों की अयोग्यता और एकनाथ शिंदे के शपथ ग्रहण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जोरदार बहस हुई। उद्धव ठाकरे गुट की ओर से कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि जिस तरह से सरकार को गिराया गया था, वह लोकतंत्र का मजाक था। उन्होंने कहा कि अयोग्यता की याचिका लंबित होने के बाद भी शपथ ग्रहण का आयोजन किया गया था। सिब्बल ने कहा कि शपथग्रहण के लिए याचिका पर फैसला होने तक इंतजार किया जा सकता था, लेकिन यह जल्दी में करा दिया गया। उन्होंने कहा कि यदि इस मामले को स्वीकार कर लिया गया तो फिर देश की हर चुनी हुई सरकार बेदखल कर दी जाएगी। उन्होंने कहा कि यह सरकार गैरकानूनी है और इसे बने रहने का कोई हक नहीं है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आज कोई भी आदेश देने से इनकार दिया और अगली सुनवाई के लिए एक अगस्त की तिथि तय कर दी। कोर्ट ने सभी पक्षों को एक सप्ताह के अंदर हलफनामा दाखिल कर जवाब देने को कहा है।

चीफ जस्टिस एनवी रमना की बेंच में सुनवाई सुनवाई के दौरान उद्धव गुट की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर शिंदे की याचिका सुनी गई, तो एक चुनी हुई सरकार को गिराई जा सकती है। उन्होंने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा है तो नई सरकार का शपथ नहीं लेनी थी। इस दलील पर एकनाथ शिंदे गुट की ओर से हरीश साल्वे ने कहा कि लोकतंत्र में लोग इकट्ठा हो सकते हैं और प्रधानमंत्री से कह सकते हैं कि सॉरी, अब आप प्रधानमंत्री नहीं रह सकते। साल्वे ने यह भी कहा कि जो लीडर 20 विधायकों का समर्थन भी हासिल नहीं कर सका, वह मुख्यमंत्री कैसे रह सकता है? अब आइए आपको बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान किसने क्या कहा…

शिंदे गुट: हरीश साल्वे ने कहा कि शिवसेना के भीतर लोकतंत्र का डिस्क्वालिफिकेशन प्रोसीडिंग के जरिए गला घोंट दिया गया। अगर पार्टी में भारी संख्या में लोग ये सोचते हैं कि दूसरा आदमी अगुआई करे तो इसमें गलत क्या है। अगर आप पार्टी के भीतर ही पर्याप्त ताकत हासिल कर लेते हैं। पार्टी में ही रहते हैं और लीडर से सवाल करते हैं। आप उससे कहते हैं कि सदन में आप उसे परास्त कर देंगे तो ये दल-बदल नहीं है।

दल-बदल तब है जब आप पार्टी छोड़ते हैं और दूसरों से हाथ मिला लेते हैं। तब नहीं, जब आप पार्टी में ही रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कभी भी किसी राजनीतिक दल की वर्किंग में दखल नहीं दिया है। दल-बदल कानून अपने आप नहीं लागू हो जाता है। इसके लिए भी पिटीशन लगती है।

सुप्रीम कोर्ट: हम आपको सुनेंगे, हालांकि मेरे कुछ संशय हैं। मैं अपना कोई भी नजरिया नहीं जाहिर कर रहा हूं। यह संवेदनशील मामला है। अलग होने का मामला स्पष्ट नहीं हो रहा है। अगर कोई अलगाव नहीं हुआ है, तो इसका नतीजा क्या है?

एकनाथ शिंदे गुट: साल्वे ने कहा कि पैरा 3 के तहत इस पर बहस करना तो भूत को जिंदा करना हुआ। आप पैरा 2 के तहत हमें सुने, जिसमें कहा गया है कि आपको खुद पार्टी की सदस्यता छोड़नी होती है और व्हिप के खिलाफ वोट कर अपनी सदस्या को छोड़ना होता है। खुद-ब-खुद पार्टी छोड़ना तो नजर नहीं आ रहा है।

अगर कोई सदस्य राज्यपाल के पास जाता और कहता कि विपक्ष को सरकार बनानी चाहिए तो ये खुद पार्टी छोड़ना कहलाता। अगर मुख्यमंत्री इस्तीफा देते हैं और दूसरी सरकार शपथ लेती है तो ये दल-बदल नहीं है।

क्या ऐसा इंसान जो 20 विधायकों का सपोर्ट हासिल नहीं कर पा रहा है, उसे मुख्यमंत्री रहना चाहिए… क्या हम सपनों की दुनिया में हैं? मुखिया के खिलाफ आवाज उठाना डिस्क्वालिफिकेशन नहीं है। पार्टी के भीतर रहते हुए आवाज उठाना और लक्ष्मण रेखा क्रॉस न करना.. ये दल-बदल नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट: मैंने आप दोनों से कहा था कि आप दोनों को पहले हाईकोर्ट जाना चाहिए। कर्नाटक के मामले में भी हमने यही कहा था कि पहले हाईकोर्ट के सामने आवाज उठानी चाहिए थी।

शिंदे गुट: साल्वे ने कहा कि हम यहां दूसरी परिस्थितियों में आए हैं। हम डिस्क्वालिफिकेशन की प्रक्रिया को चुनौती देने आए हैं, जो उस वक्त हुई, जब स्पीकर ही सक्षम नहीं था।

उद्धव गुट: कपिल सिब्बल ने कहा कि शिवसेना से अलग होने वाले विधायक अयोग्य हैं। उन्होंने किसी पार्टी के साथ विलय भी नहीं किया। अगर शिंदे गुट की याचिका को सुना गया तो ऐसे में हर चुनी हुई सरकार को गिराया जा सकता है। इससे लोकतंत्र खतरे में आ जाएगा।

राजनीतिक पार्टी का मुद्दा खुद में एक सवाल है। जब अयोग्य मेंबर किसी व्यक्ति को चुनते हैं तो ये चुनाव ही सही नहीं है। लोगों के फैसले का क्या होगा? आप स्पीकर के डिस्क्वालिफिकेशन पर स्टे कर सकते हैं, लेकिन प्रोसीडिंग पर रोक कैसे लगाई जा सकती है।

अब शिंदे गुट कह रहा है कि वो इलेक्शन कमीशन के पास जाएंगे। ये तो कानून का मजाक उड़ाना है। इस अयोग्य सरकार को एक दिन भी नहीं रहना चाहिए।

उद्धव गुट: वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि गुवाहाटी जाने से पहले एक दिन पहले शिंदे गुट ने तब के डिप्टी स्पीकर को एक गैरआधिकारिक मेल से पत्र भेजा और उनको हटाने की मांग की। मैं इसे कोई रिकॉर्ड नहीं मानता, क्योंकि डिप्टी स्पीकर के सामने कोई भी विधायक नहीं आया था,  फिर ये कैसे हो गया?

आप स्पीकर को नहीं रोक सकते हैं और न ही फ्लोर टेस्ट बुला सकते हैं। ये पूरा बहुमत ही अवास्तविक है। अगर हम 4 लोग यहां पर अयोग्य घोषित किए जाते हैं तो फ्लोर टेस्ट में अयोग्य लोग हिस्सा नहीं ले सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के पास ताकत है कि वह अतीत में जाकर जो कुछ भी हुआ है, उसे बदल सके।

आपको बता दें कि उद्धव ठाकरे सरकार के गिरने के बाद एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री और देवेंद्र फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। उनके शपथ ग्रहण के बाद से मंत्रिमंडल विस्तार का कार्यक्रम अटका हुआ है। विधायकों की सदस्यता पर फैसला होने के बाद ही मंत्रिमंडल के विस्तार की अटकले हैं। अगर आज सुनवाई में विधायकों की सदस्यता पर फैसला आता है तो जल्द ही मंत्रिमंडल विस्तार की तारीख का ऐलान हो सकता है।

महाराष्ट्र के सियासी घमासान में अब तक क्या-क्या हुआ…

  • 21 जून को शिवसेना के 30 विधायकों को लेकर एकनाथ शिंदे सूरत निकल लिए। इन विधायकों को ला मैरेडियन होटल में रखा गया। फिर इन्हें गुवाहाटी ले जाया गया।​​​ शिंदे ने 34 विधायकों की पहली सूची जारी की।
  • 24 जून को शिवसेना ने डिप्टी स्पीकर के सामने पहले 12 और फिर 4 यानी 16 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की अर्जी दी। इसी आधार पर 25 जून को डिप्टी स्पीकर ने 16 विधायकों को नोटिस भेजा। बागी विधायक सुप्रीम कोर्ट चले गए।
  • 27 जून को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में सुनवाई हुई। कोर्ट ने यथास्थित बरकरार रखने का निर्देश दिया। साथ ही केंद्र, शिवसेना, महाराष्ट्र पुलिस और डिप्टी स्पीकर को नोटिस जारी किया।
  • 28 जून को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने उद्धव ठाकरे को फ्लोर टेस्ट कराने का निर्देश दिया, जिसके बाद मामला फिर सुप्रीम कोर्ट गया। कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट पर स्टे लगाने से इनकार किया। उद्धव ने 29 जून को इस्तीफा दे दिया।
  • 30 जून को एकनाथ शिंदे बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने। देवेंद्र फडणवीस उपमुख्यमंत्री बने।
  • 3 जुलाई को स्पीकर का चुनाव हुआ, जिसमें बीजेपी के राहुल नार्वेकर जीते। नार्वेकर ने उसी शाम सदन में शिंदे गुट को मान्यता दे दी। उद्धव गुट के 14 विधायकों को स्पीकर ने सदस्यता रद्द का नोटिस भेजा।
  • 11 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस ने कहा कि स्पीकर कोई फैसला ना दें। हम नई बेंच में सुनवाई करेंगे। नई बेंच में चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली हैं।

 

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