संवाददाताः नरेन्द्र कुमार वर्मा, प्रखर प्रहरी
दिल्लीः अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण के साथ ही एक भव्य संग्रहालय के निर्माण की दिशा में भी कार्य चल रहा है। श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास के अध्यक्ष डॉक्टर रामअवतार शर्मा ने यह बीड़ा उठाया है। डॉक्टर शर्मा ने बताया कि प्रभु श्रीराम अपने जीवनकाल में 290 स्थानों पर गए। इन सभी स्थानों को उन्होंने खोजा है और उन-उन जगहों पर श्रीराम से जुड़ी स्मृतियों को अयोध्या में बनने वाले भव्य संग्रहालय में संरक्षित करने की योजना बनाई है।
अगर हम भगवान श्रीराम के जीवनकाल की बात करते हैं कि हमारे मन में केवल उनके वनगमन की बात प्रमुख तौर पर सामने आती है। प्रभु श्रीराम अपने जीवनकाल में भारत, नेपाल और श्रीलंका में कहां-कहां गए इस विषय पर पिछले 48 वर्षों से डॉक्टर राम अवतार ने गहन शोध किया है। हालांकि बीते दिनों केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार ने स्वदेश दर्शन के कार्यक्रम के लिए श्रीरामायण परिपथ (रामसर्किट) योजना की घोषणा की थी। रामायण परिपथ में 9 राज्यों के 15 स्थानों को चिह्नित किया गया है, जिनमें अयोध्या, श्रृंगवेरपुर, प्रयाग, चित्रकूट, (उत्तर प्रदेश), चित्रकूट (मध्यप्रदेश), सीतामढी, बक्सर, दरभंगा, (बिहार), महेंद्रगिरि (ओडिशा), जगदलपुर (छत्तीसगढ), नासिक, नागपुर (महाराष्ट), भद्राचलम (तेलांगना), हंपी (कर्नाटक) और रामेश्वर (तमिलनाडू) शामिल है।
डॉक्टर रामअवतार ने बताया कि प्रभु श्रीराम अपने जीवनकाल में 290 स्थानों पर गए। इन सभी स्थानों को उन्होंने खोजा है और उन-उन जगहों पर श्रीराम से जुड़ी स्मृतियों को अयोध्या में बनने वाले भव्य संग्रहालय में संरक्षित करने की योजना बनाई है। डॉक्टर राम अवतार ने स्वयं उन सभी स्थानों का भ्रमण किया और अब वह राम सर्किट (रामायण परिपथ) से जुड़ी एक फिल्म के माध्यम से लोगों को जागरुक करने का कार्य कर रहे हैं।
डॉ. शर्मा केंद्र सरकार द्वारा गठित रामायण परिपथ के चेयरमैन भी हैं। पिछले दिनों उऩ्होंने दिल्ली के कपिल विहार सत्संग भवन में “जहां-जहां पग धरे राम ने” नाम से निर्मित इस लघु वृतचित्र का प्रदर्शन किया। डॉक्टर शर्मा ने बताया कि आज के परिवेश में प्रभु श्रीराम से जुड़े सभी स्थलों के संरक्षण की नितांत आवश्यकता है, ताकि हम अपनी समृध्द धार्मिक विरासत को सहेज कर रख सकें। उन्होंने कहा कि प्रत्येक भारतवासी को राम सर्किट की यात्रा करनी चाहिए।
डॉ राम अवतार शर्मा के मुताबिक प्रभु श्री राम का वन गमन मार्ग देश के 9 राज्यों से होकर गुजरता है। जबकि भगवान राम नेपाल और श्रीलंका भी गए थे। इन सभी इलाकों के लोग और आदिवासी आज भी राम से जुड़ी ऐसी कई परंपराओं को निभाते आ रहे हैं। ये परंपराएं अपने आप में अनूठी और हैरान करने वाली हैं। जैसे छत्तीसगढ़ में जसतुर की आदिवासी महिलाओं को माता सीता ने बांस की टोकरी बनाना सिखाया था। इसलिए आज भी यहां कि आदिवासी महिलाएं जब बांस की टोकरी बनाना आरंभ करती हैं, तो सबसे पहली टोकरी माता सीता के नाम की बनाती हैं। वहीं मान्यता है कि उड़ीसा में मलसान गिरी की महिलाओं को माता सीता ने श्राप देने के बाद माफ कर दिया था। लेकिन वहां की महिलाओं में इस श्राप को स्वीकारते हुए शादी के बाद अपने बाल कटवाने की परंपरा बनी हुई है। जबकि नेपाल के जनकपुर जैसे क्षेत्रों के लोग रामचंद्र जी को आज ही अपना दामाद मानते हैं।
भगवान श्रीराम अयोध्या का अपना राजपाट छोड़ कर वहां से 20 किमी दूर तमसा नदी पार करके पैदल वन की तरफ निकल पड़े थे। इसके बाद प्रभु जिस भी मार्ग से गुजरे उस मार्ग को आज केंद्र सरकार ने रामायण परिपथ के तौर पर विकसित करने और वहां से श्रीराम से जुड़े अवशेषों को संरक्षित करने का फैसला किया है। अयोध्या में प्रस्तावित श्रीराम संग्रहालय में इन्हीं सभी स्थानों से जुड़े प्रतिरुपों को सहेजा जाएगा। संस्था के संग्रहालय प्रमुख पंकज जैन के अनुसार श्रीराम संग्रहालय अपने आप में एक अनूठा संग्रहालय होगा। जहां प्रभु राम से जुड़ी सभी वस्तुओं को लोग एक बार फिर देख सकेंगे। श्रीरामके जीवन काल में विज्ञान, संस्कृति, युध्दकौशल, अध्ययनशीलता और सामाजिक परिवेश कितना समृध्द था, इस संग्रहालय में इन सभी वस्तुओं पर भी ध्यान केंद्रीत किया जाएगा। इसके अलावा भगवान श्रीराम पर आज तक प्रकाशित साहित्य, मुद्राएं, डाक टिकट इत्यादि सब का संग्रह भी किया जाएगा।
श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास से जुड़े अतुल सिंघल ने बताया कि हम सभी प्रभु श्रीराम के वंशज हैं। क्योंकि सनातन धर्म में आस्था रखने वाले सभी लोगों के इष्टदेव प्रभु श्री राम हैं। उनकी स्मृतियों को संजोने वाले संग्रहालय को विश्वस्तरीय बनाने में कोई कमी नहीं आने दी जाएगी। इस अवसर पर संस्था के पदाधिकारी पंकज जैन, जगदीश राय गोयल, विनोद गर्ग, दिनेश जिंदल, श्रवन कुमार अग्रवाल ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
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