दिल्लीः भारत की स्टार एथलीट अब राज्यसभा की शोभा बढ़ाएंगी। केंद्र सरकार ने उड़न परी के नाम से मशहूर पीटी उषा राज्यसभा के लिए मनोनित की गई हैं। संगीतकार और गायक इलैयाराजा, लेखक वी विजयेंद्र प्रसाद गारू और समाजसेवी वीरेंद्र हेगड़े को राज्यसभा के लिए मनोनीत करने की अनुशंसा की है। राष्ट्रपति इन्हें मनोनीत करेंगे। पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर सभी को बधाई दी है।
पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा, “पीटी उषा हर भारतीय के लिए प्रेरणा हैं। खेलों में उनके योगदान को जाना जाता है। राज्यसभा में मनोनित किए जाने पर बधाई। पीटी उषा ने 1984 ओलंपिक खेलों में चौथा स्थान हासिल किया था। इसके बाद से वह पूरे देश में लोकप्रिय हो गईं। उनकी लोकप्रियता इस कदर बढ़ी की आगे चलकर वह एथलेटिक्स का पर्याय बन गईं। अब उनके योगदान को सम्मान देते हुए उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया है।“
आपको बता दें कि पीटी उषा ने खुद बताया था कि 1980 के दशक में देश के हालात बिल्कुल अलग थे। जब वह खेल की दुनिया में आई थीं, तो उन्होंने नहीं सोचा था कि एक दिन वह ओलंपिक में भी भाग ले पाएंगी।
पीटी उषा का शुरुआती जीवन उनके अपने गांव केरल के पय्योली में बीता था। इसी वजह से बाद के दिनों में पीटी ऊषा को पय्योली एक्सप्रेस के नाम से भी जाना जाता था। पीटी उषा जब चौथी कक्षा में पढ़ती थीं, तब उन्होंने दौड़ना शुरू किया था। उनके शारीरीक शिक्षा के अध्यापक ने उषा को जिले की चैंपियन से मुकाबला करने को कहा। वह लड़की भी पीटी उषा के स्कूल में ही पढ़ती थी। उषा ने उस रेस में जिला चैंपियन को भी हरा दिया था। अगले कुछ वर्षों तक वह अपने स्कूल के लिए जिला स्तर के मुकाबले जीतती रही थीं। लेकिन, पीटी उषा का असल करियर तो 13 साल की उम्र में शुरू हुआ, जब उन्होंने केरल सरकार द्वारा लड़कियों के लिए शुरू किए गए स्पोर्ट्स डिविजन में दाखिला लिया था।
पीटी उषा के चाचा स्कूल में शिक्षक थे। इस वजह से खेल में करियर बनाने के लिए उन्हें अपने माता-पिता को मनाने के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी थी। उषा के परिवार ने उनका पूरा समर्थन किया और ट्रेनिंग के दौरान हौसला भी बढ़ाया। वह कई बार एक धूल भरे रास्ते पर दौड़ने जाती थीं और वहां से गुजरती हुई गाड़ियों के साथ रेस लगाया करती थीं। पीटी उषा को समंदर किनारे दौड़ना भी अच्छा लगता था।
बताया जाता है कि पीटी उषा, राज्य सरकार के प्रशिक्षण अभियान में शामिल थीं। फिर भी उन्हें बहुत कम सुविधाएं मिल पाती थीं। वह बताती हैं, “वहां हम चालीस खिलाड़ी थे, जिनमें एथलीट भी शामिल थे। हमारे लिए गिने-चुने बाथरूम हुआ करते थे। तमाम मुश्किलों के बावजूद हमें सख्त नियमों का पालन करना पड़ता था। मेरा दिन सुबह पांच बजे शुरू होता था। दौड़ने की प्रैक्टिस करने के साथ-साथ हमें पढ़ाई का कोर्स भी पूरा करना होता था।” इसी दौरान उनकी मुलाकात मशहूर कोच ओएम नांबियार से हुई थी। नांबियार को पीटी उषा में एक अलग ही चमक दिखी। उन्होंने ऊषा को और बेहतर करने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्हें प्रशिक्षण देकर एक जबरदस्त एथलीट के रूप में तैयार किया।
महज 16 साल की उम्र में पीटी उषा ने 1980 में मॉस्को में हुए ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में हिस्सा लिया था। चार साल बाद 1984 में वह किसी ओलंपिक खेल के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बन गई थीं, लेकिन, मामूली से फासले से उषा ओलंपिक का मेडल जीतने से चूक गई थीं। पीटी उषा कहती हैं, “मेरा पांव आगे था। लेकिन मैं अपने सीने को आगे नहीं झुका सकी। अगर मैं अपने सीने को आगे की तरफ झुका पाती, तो मैं निश्चित रूप से मेडल जीत लेती।” उस रेस में पीटी उषा चौथे नंबर पर रही थीं। वह कहती हैं, “मुझे बहुत बुरा लग रहा था। मेरी आंखों में आंसू आ गए थे। यहां तक कि नांबियार सर भी रो रहे थे।”
ओलंपिक के बाद पीटी उषा के प्रदर्शन में गिरावट आई और लोगों ने उनकी आलोचना शुरू कर दी। हालांकि, उषा को खुद पर यकीन था। 1986 के सिओल एशियाई खेलों में उन्होंने चार गोल्ड मेडल जीते थे। 400 मीटर की बाधा दौड़, 400 मीटर की रेस, 200 मीटर और 4 गुणा 400 की रेस में उषा ने स्वर्ण पदक जीते। 100 मीटर की रेस में वो दूसरे नंबर पर रहीं। 1983 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड दिया गया था। 1985 में उन्हें देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
उषा ने 1991 में शादी के कुछ ही दिनों बाद एथलेटिक्स से ब्रेक ले लिया था। तभी उन्होंने अपने बेटे को जन्म दिया। पीटी उषा के पति वी श्रीनिवासन की खेलों में दिलचस्पी थी। वह खुद एक खिलाड़ी थे। वो पहले कबड्डी खेला करते थे। उन्होंने हर काम में उषा का हौसला बढ़ाया। पीटी उषा खेलों की दुनिया में दोबारा आईं और 1997 में अपने खेलों के करियर को अलविदा कहा। उन्होंने भारत के लिए 103 अंतरराष्ट्रीय मेडल जीते हैं।