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दिल्लीः पहले एयर इंडिया और अब एनआईएनएल। जी हां टाटा समूह ने एयर इंडिया के बाद एक और सरकारी कंपनी का अधिग्रहण कर लिया है। पब्लिक सेक्टर की कंपनी एनआईएनएल (NINL) यानी नीलाचल इस्पात निगम लिमिटेड के प्राइवेटाइजेशन की प्रक्रिया सोमवार को पूरी हो गई। अब इसका कंट्रोल टाटा ग्रुप (Tata group) की कंपनी टीएसएलपी (TSLP) यानी टाटा स्टील लॉन्ग प्रोडक्ट्स को सौंप दिया गया है। यह जानकारी वित्त मंत्रालय ने सोमवार को दी।

वित्त मंत्रालय ने कहा, ‘‘एनआईएनएल का रणनीतिक विनिवेश संबंधी सौदा रणनीतिक खरीदार टीएसएलपी को 93.71 प्रतिशत शेयरों का हस्तांतरण होने के साथ ही आज पूरा हो गया है।’’ आपको बता दें कि एनआईएनएल सार्वजनिक क्षेत्र की चार कंपनियों एमएमटीसी, एनएमडीसी, बीएचईएल और मेकॉन के अलावा ओडिशा सरकार की दो इकाइयों ओएमसी और इपिकॉल का संयुक्त उद्यम है।

इस इस्पात कंपनी में एमएमटीसी के पास सर्वाधिक 49.78 प्रतिशत हिस्सेदारी थी जबकि एनएमडीसी के पास 10.10 प्रतिशत, बीएचईएल के पास 0.68 प्रतिशत और मेकॉन के पास 0.68 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। वहीं ओडिशा सरकार की कंपनियों के पास क्रमशः 20.47 प्रतिशत एवं 12 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। एनआईएनएल के लिए लगाई गई बोली में टाटा समूह की कंपनी के विजेता बनकर उभरने के बाद 10 मार्च को शेयर खरीद समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। मंत्रालय ने कहा कि इस समझौते के हिसाब से परिचालन लेनदार, कर्मचारियों और विक्रेताओं के बकाया संबंधी शर्तों को पूरा कर लिया गया है। हालांकि, इस कंपनी में सरकार के पास कोई हिस्सेदारी नहीं होने से इस बिक्री से सरकारी खजाने में कोई वृद्धि नहीं होगी।

इस बीच, बीएचईएल की ओर से बीएसई को दी गई सूचना में कहा कि उसने एनआईएनएल में अपनी 0.68 प्रतिशत हिस्सेदारी टीएसएलपी को बेच दी है और इसे स्थानांतरित कर दिया है। एनआईएनएल के ओडिशा के कलिंगनर स्थित संयंत्र की सालाना उत्पादन क्षमता 11 लाख टन रही है। हालांकि, यह संयंत्र लगातार घाटे में रहने की वजह से मार्च, 2020 से ही बंद पड़ा है।

आपको बता दें कि मोदी सरकार के कार्यकाल में संपन्न हुआ यह दूसरा सफल प्राइवेटाइजेशन है। इसके पहले एयर इंडिया को टाटा समूह के ही हाथों में सौंपा गया था। NINL के लिए आमंत्रित की गई बोलियों में टीएसएलपी को जनवरी में विजेता घोषित किया गया था। टाटा ग्रुप की इस स्टील कंपनी ने घाटे में चल रही एनआईएनएल के लिए 12,100 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी। यह बोली 5,616.97 करोड़ रुपये के आरक्षित मूल्य से करीब दोगुनी थी।

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