मुंबईः मौजूदा समय में महाराष्ट्र में जिस शख्स का नाम सबसे ज्यादा चर्चा है, वे हैं सूबे के नए मुखिया यानी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे। महाराष्ट्र की राजनीतिक में मचे उथल-पुथल के बीच शिंदे ने सबको चौकाते हुए गुरुवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके साथ ही ठाणे के ठाकरे कहे जाने वाले एकनाथ शिंदे ने पूरे राज्य की बागडोर अपने हाथ में थाम ली।

आपको बता दें कि ठाणे की कोपरी-पछपाखाड़ी विधानसभा सीट से विधायक और उद्धव सरकार में नगर विकास एवं सार्वजनिक निर्माण मंत्री रहे हैं। ठाणे को शिंदे का गढ़ मना जाता है। यहां पर एकनाथ एक नाम नहीं बल्कि अपने आप में एक पार्टी हैं। ठाणे की जनता शिंदे को शिवसेना के संस्थापकों में से एक आनंद चिंतामणि दिघे के प्रतिबिंब के रूप में देखती है। यही वजह है कि यहां के लोग आंख बंद करके शिंदे के फैसले के साथ खड़े हैं। शिंदे के सीएम बनने के बाद पूरे ठाणे में शिवसेना में जश्न का माहौल है।

मौजूदा समय में शिंदे के पीछे न सिर्फ ठाणे की जनता खड़ी है, बल्कि दो तिहाई से अधिक यानी शिवसेना के 40 विधायक भी हैं। शिंदे ने उद्धव के खिलाफ बगावती सुर क्या बुलंद किए, पूरे ठाणे जिले में उनके समर्थन में बैनर और पोस्टर लग गए। इन पोस्टर्स में बाला साहब तो थे, लेकिन मौजूदा शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की तस्वीर गायब हो गई।

09 फरवरी 1964 को मुंबई  में जन्मे एकनाथ शिंदे का बचपन ठाणे के किसन नगर वागले स्टेट 16 नंबर में बीता। आज भी यहां उनका एक फ्लैट है। इसमें वे अपने माता-पिता और तीन भाई-बहनों के साथ रहते थे। उनके बचपन के दोस्त जगदीश पोखरियाल बताते हैं कि एकनाथ शुरू से ही लोगों के लिए खड़े होने वालों में से थे। यहां पीने के पानी की भारी समस्या थी।

महिलाओं को दूर से पानी लाना पड़ता था। इस परेशानी को देखते हुए शिंदे को उनके एक दोस्त ने पॉलिटिक्स में उतरने की सलाह दी। शुरू में शिंदे ने मना किया, लेकिन बाद में वे आरएसएस (RSS) यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा से जुड़ गए।

शिंदे का कद ठाणे में कुछ ऐसा है कि शिवसेना का मूल कैडर यानी हिंदू ही नहीं, मुस्लिम भी उनके साथ खड़ा है। यही वजह है कि शिंदे के नाम पर दोनों समुदायों के लोगों ने उनके बेटे श्रीकांत शिंदे को चुन कर लोकसभा में भेजा। एकनाथ के पीए  रह चुके इम्तियाज शेख उर्फ ‘बच्चा’ ने बताया कि शिवसेना से जुड़ने से पहले शिंदे आरएसएस शाखा प्रमुख थे और ऑटो रिक्शा चलाते थे।

इम्तियाज बताते हैं कि आनंद दिघे एक दिन उनके इलाके में आए और उन्होंने लोगों से पूछा कि वे अपने पार्षद (नगर सेवक) के रूप में किसे देखना चाहते हैं। इस पर इम्तियाज समेत सैकड़ों मुसलमानों ने एक सुर में एकनाथ शिंदे का नाम आगे कर दिया। इसके बाद ही शिंदे की सक्रिय रूप से शिवसेना में एंट्री हुई।

शिंदे 1997 में ठाणे नगर निगम में पार्षद चुने गए। वह 2004, 2009, 2014 और 2019 के लिए महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य चुने गए। आज भले ही शिंदे महाराष्ट्र के नए सीएम बन गए हैं, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब उनके घर की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी। 1990-92 के बीच एकनाथ शिंदे की गाड़ी चला चुके हलीम शेख ने बताया कि उनके पिता संभाजी शिंदे एक गत्ते की कंपनी में और मां घरों में काम किया करती थीं। इतनी गरीबी के बावजूद शिंदे ने कभी कोई गलत रास्ता नहीं चुना और हमेशा अपनों की मदद के लिए तैयार रहते थे।

2 जून 2000 को एकनाथ शिंदे अपने 11 साल के बेटे दीपेश और 7 साल की बेटी शुभदा के साथ सतारा गए थे। बोटिंग करते हुए एक्सीडेंट हुआ और शिंदे के दोनों बच्चे उनकी आंखों के सामने डूब गए। उस वक्त शिंदे का तीसरा बच्चा श्रीकांत सिर्फ 14 साल का था।

इस हादसे के बाद शिंदे इस कदर टूट गए कि उन्होंने राजनीति से संन्यास का ऐलान कर दिया। शिंदे के साथ पिछले 40 सालों से रह रहे देविदास चालके ने बताया कि बच्चों की मौत के बाद एकनाथ ने खुद को एक कमरे में कैद कर लिया। वे किसी से नहीं मिलते थे और न ही किसी से बात करते थे। फिर उनके राजनीतिक गुरु और शिवसेना के कद्दावर नेता आनंद दिघे ही उन्हें वापस राजनीति में लाए थे।

परिवार को आर्थिक तंगी से उबारने के लिए एकनाथ शिंदे ऑटो चलाने के साथ-साथ लेबर कॉन्ट्रैक्टर के रूप में भी काम किया। कई बार ऐसा हुआ कि काम ज्यादा आ गया और मजदूर कम होते थे। ऐसे वक्त में खुद शिंदे ने बतौर लेबर काम किया। शिंदे अपने हाथों से मछलियां भी साफ करते थे।

शिंदे के बचपन के तीन दोस्त, जिन्होंने तमाम वाकयों का जिक्र कर बताया कि शिंदे जनता के बीच कैसे लोकप्रिय हुए। शिंदे की लाइफ में एक वक्त ऐसा भी आया, जब उनकी आवाज तकरीबन 15 दिनों के लिए चली गई थी। यह वक्त 2014 के लोकसभा चुनावों का था।

शिंदे ने पूरे महाराष्ट्र में इतना प्रचार किया कि उनकी आवाज ही चली गई थी। हालांकि डॉक्टर्स के प्रयास से उसे फिर से वापस लाया गया।

एकनाथ शिंदे के मित्र और सुख-दुःख के साथी रहे मिलिंद झांडे ने एक पुराने किस्से को याद करते हुए बताया कि एक बार किसन नगर इलाके से गुजरने वाली वाटर पाइपलाइन फट गई और इलाके में पानी भरने लगा। निगम के कर्मचारियों को आने में देर हो रही थी।

यह जानकारी जैसे ही एकनाथ शिंदे को मिली, वे मौके पर पहुंचे और पानी में कूद गए। निगम के कर्मचारियों के आने से पहले ही उन्होंने टूटी हुई पाइपलाइन ठीक कर दी और इलाके को डूबने से बचा लिया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here