दिल्लीः 12 जून 1975 को पूरे देश की निगाहे इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा पर टिकी थीं। इस दिन जस्टिस सिन्हा इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण मामले में अपना फैसला सुनाने वाले थे। ये मामला साल 1971 के चुनावों से जुड़ा था। इस चुनाव में इंदिरा गांधी ने रायबरेली से राजनारायण को हराया था। हारने के बाद राजनारायण ने चुनावी नतीजों को कोर्ट में चुनौती दी थी।
उन्होंने इंदिरा गांधी पर सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग, चुनाव में घोटाले और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था और मांग की थी कि ये चुनाव रद्द किया जाए। 12 जून की सुबह करीब 10 बजे जस्टिस सिन्हा अपने चैंबर से कोर्ट रूम में आए और अपना फैसला सुनाने लगे।
उन्होंने अपने फैसले में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली का दोषी करार दिया और चुनाव रद्द कर दिया। इसके साथ ही जस्टिस सिन्हा ने ये भी कहा कि आने वाले 6 सालों तक इंदिरा गांधी चुनाव नहीं लड़ सकेंगी। ऐसा पहली बार हुआ था कि भारत के प्रधानमंत्री का चुनाव ही रद्द कर दिया गया।
उधर, इंदिरा गांधी किसी भी कीमत पर प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं थी। उन्होंने हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया। 23 जून को इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को रोकने के लिए याचिका दायर की।
अगले ही दिन जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने याचिका पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि वे हाईकोर्ट के फैसले पर पूरी तरह रोक नहीं लगाएंगे, लेकिन इंदिरा प्रधानमंत्री पद पर बनीं रह सकती हैं। साथ ही ये भी कहा कि इस दौरान वे संसद की कार्यवाही में भाग तो ले सकती हैं, लेकिन वोट नहीं कर सकेंगी।
सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा को थोड़ी राहत जरूर दी, लेकिन इंदिरा गांधी के लिए ये काफी नहीं थी। इंदिरा गांधी के पास ये विकल्प था कि वे किसी और को प्रधानमंत्री बना सकती थीं, लेकिन कहा जाता है कि संजय गांधी इस बात के लिए राजी नहीं थे।
एक तरफ इंदिरा गांधी को कोर्ट से राहत नहीं मिली थी, दूसरी तरफ लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में पूरा विपक्ष सड़कों पर उतर कर इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग कर रहा था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद तो विपक्ष और आक्रामक हो गया था। 24 जून को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और 25 जून को जयप्रकाश नारायण ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली का आयोजन किया।
इस रैली में लाखों की तादाद में भीड़ जुटी, जिसे संबोधित करते हुए जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने रामधारी सिंह दिनकर की कविता का अंश पढ़ते हुए कहा – ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’। जेपी ने इंदिरा गांधी को स्वार्थी और महात्मा गांधी के आदर्शों से भटका हुआ बताते हुए उनसे इस्तीफे की मांग की।
इंदिरा गांधी अब चौतरफा घिर चुकी थीं। इधर जेपी की रैली खत्म हुई और उधर इंदिरा गांधी राष्ट्रपति भवन पहुंचीं। 25-26 जून की दरमियानी रात को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी के आदेश पर दस्तखत करा लिए। 26 जून सुबह 6 बजे कैबिनेट की आपातकालीन बैठक बुलाई गई। अभी तक देश को इस फैसले की भनक तक नहीं थी। इंदिरा गांधी ने ये फैसला लेने से पहले अपने मंत्रिमंडल से सलाह तक नहीं ली थी।
कैबिनेट की बैठक करीब आधे घंटे चली।
इसके बाद इंदिरा गांधी ने आकाशवाणी पर देश में इमरजेंसी लगाने की घोषणा की। इसके साथ ही आजाद भारत के इतिहास के सबसे बुरे दौर की शुरुआत हो गई। विपक्षी नेताओं समेत कांग्रेस के नेताओं को भी जेल में डाल दिया गया, प्रेस पर पाबंदी लगा दी गई, नागरिकों के सारे अधिकार छीन लिए गए और देश में लोकतंत्र खत्म हो गया।
अगले दिन देश में अखबार नहीं छप पाए क्योंकि सरकार ने अखबार के दफ्तरों की बिजली काट दी थी, जो अखबार छप रहे थे, उन पर सख्त पाबंदिया लगाई गईं। अखबारों में क्या छपेगा क्या नहीं, इसके लिए सरकार ने अखबारों के दफ्तर में अफसरों को तैनात कर दिया।
इमरजेंसी के दौरान इंदिरा के छोटे बेटे संजय गांधी ने नसबंदी प्रोग्राम चलाया, जिसमें पकड़-पकड़कर लोगों की नसबंदी की गई। लाखों लोगों को जेल में डाल दिया गया। पूरा देश एक बड़ी जेल बन गया। इस दौरान इंदिरा गांधी ने नए-नए कानून लाकर संविधान को कमजोर करने की कोशिश भी की।
इस भयंकर त्रासदी को पूरा देश 21 महीनों तक झेलता रहा। जनवरी 1977 में घोषणा की गई कि 16 मार्च को देश में चुनाव होंगे। देश में चुनाव हुए और इंदिरा गांधी को जनता ने इमरजेंसी का सबक सिखा दिया। इंदिरा और संजय गांधी दोनों चुनाव हार गए। इसके बाद 21 मार्च 1977 को आपातकाल खत्म हो गया, लेकिन ये देश का सबसे काला वक्त साबित हुआ, जिसका दर्द लोगों के दिलों में आज भी जिंदा है। आइए एक नजर डालते हैं देश और दुनिया में 25 जून को घटित हुईं महत्वपूर्ण घटनाओं-
1529- मुगल शासक बाबर बंगाल पर विजय प्राप्त कर आगरा लौटा।
1788- वर्जीनिया अमेरिका के संविधान को अपनाने वाला 10वां राज्य बना।
1868- अमेरिका के राष्ट्रपति एंड्रयू जॉनसन ने सरकारी कर्मचारियों के लिये दिन में आठ घंटे काम करने का कानून पारित किया।
1900- भारत में आखिरी ब्रिटिश वायसराय रहे लुई माउंटबेटन का जन्म हुआ।
1903-प्रसिद्ध लेखक जॉर्ज ओरवेल का मोतीहारी में जन्म हुआ। इनका असली नाम एरिक ऑर्थर ब्लेयर था।
1931- भारत के पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में जन्म।
1932- भारतीय क्रिकेट टीम ने ब्रिटेन के लॉर्ड्स मैदान पर अपना पहला टेस्ट मैच खेला।
1941- फिनलैंड ने सोवियत संघ पर हमले की घोषणा की।
1947- ‘द डायरी ऑफ ए यंग गर्ल’ का पहला संस्करण प्रकाशित हुआ। इसे एना फ्रैंक ने लिखा था जो मात्र 16 साल की उम्र में हिटलर के कंसंट्रेशन कैंप में मार दी गई थीं।
1951- अमेरिकी टेलीविजन एवं रेडियो नेटवर्क सीबीएस ने चार शहरों में पहले रंगीन टीवी कार्यक्रम का प्रसारण किया।
1960- मेडागास्कर फ्रांस से स्वतंत्र हुआ।
1974- बॉलीवुड अभिनेत्री करिश्मा कपूर का जन्म।
1975- राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आंतरिक आपातकाल लगाने के सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी दी।
1983- भारत ने वेस्टइंडीज को 43 रनों से हरा कर पहली बार क्रिकेट विश्व कप का खिताब अपने नाम किया।
1993- किम कैंपबेल कनाडा की 19वीं प्रधानमंत्री बनीं।
1994- जापान के प्रधानमंत्री सुतोमु हाता ने अपने पद से इस्तीफा दिया।
2005- ईरान के राष्ट्रपति चुनाव में अति कट्टरपंथी माने जाने वाले महमूद अहमदी नेजाद की जीत की घोषणा हुई ।
2009- संगीत एवं नृत्य की नयी परिभाषा लिखने वाले माइकल जैक्सन का निधन।
2010- ऑस्ट्रिया में दुनिया का सबसे बड़ा सोने का सिक्का 40 लाख डालर में नीलाम हुआ।
2011- ह्यूस्टन के उद्यमी एवं खरपतवार हटाने की मशीन के आविष्कारक जॉर्ज सी बैलस सीनियर का निधन।
2013- उत्तराखंड में बाढ़ के दौरान रेस्क्यू मिशन में लगा वायुसेना का एक हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। हादसे में क्रू मेंबर्स समेत 20 लोग मारे गए।
2014- उरुग्वे के फुटबॉल खिलाड़ी लुईस सुआरेज पर फीफा 2014 विश्वकप के दौरान विपक्षी टीम के खिलाड़ी को दांत से काटने का आरोप लगा।
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