दिल्लीः मुंबई का छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (CST) आज 135 साल का हो गया है। बेहद खूबसूरत और व्यस्त रेलवे स्टेशन छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के बारे में कहा जाता है कि भारत में ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा फोटो इसी इमारत की खींची जाती हैं। मुंबई के फोर्ट एरिया में स्थित इस रेलवे स्टेशन से रोजाना करीब 30 लाख से भी ज्यादा यात्री यात्रा करते हैं। टर्मिनस के 18 प्लेटफॉर्म पर रोजाना 1200 से भी ज्यादा ट्रेनें आती-जाती हैं।
समुद्र किनारे बसा होने की वजह से मुंबई अंग्रेजों के लिए एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था। रोजाना हजारों लोगों का आना-जाना और माल का आयात-निर्यात होता था। आपको बता दें कि छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से पहले यहां बोरी बंदर रेलवे स्टेशन था। इसी बोरी बंदर रेलवे स्टेशन से ठाणे के लिए भारत की पहली ट्रेन चली थी।
जब बोरी बंदर रेलवे स्टेशन पर जगह कम पड़ने लगी तो अंग्रेजों ने एक बड़ा स्टेशन बनाने का फैसला लिया। ब्रिटिश सरकार ने स्टेशन के निर्माण के लिए 16 लाख की राशि जारी की और स्टेशन की डिजाइनिंग की जिम्मेदारी फ्रेडरिक विलियम स्टीवंस को सौंपी गई। साल 1878 में स्टेशन बनाने का काम शुरू हुआ। स्टीवंस ने लक्ष्य रखा कि 1887 तक स्टेशन का काम पूरा हो जाए क्योंकि इसी साल ब्रिटेन की क्वीन विक्टोरिया को रानी बने हुए 50 साल पूरे हो रहे थे।
इस बिल्डिंग में भारत, ब्रिटेन और इटली तीनों देशों की स्थापत्य कला नजर आती है। मेन बिल्डिंग को बनाने में बलुआ और चूना पत्थर का इस्तेमाल किया गया है, वहीं खूबसूरती के लिए इटैलियन मार्बल और भारतीय ब्लू स्टोन लगाए गए हैं।
स्टेशन के सेंट्रल हॉल में एक सितारे के आकार की डिजाइन बनाई गई है, इसीलिए इस हॉल को स्टार चैंबर कहा जाता है। फिलहाल यहीं पर मुख्य टिकट घर है। विक्टोरियन गोथिक स्टाइल में बनी इस बिल्डिंग के बीचोंबीच महारानी विक्टोरिया की प्रतिमा भी लगाई गई थी, लेकिन जब भारत आजाद हुआ तो उस प्रतिमा को हटा दिया गया।
आज ही के दिन यानी 20 जून 1887 को स्टेशन का काम पूरा हुआ था और इसे रेल यातायात के लिए शुरू किया गया। ब्रिटेन की महारानी के नाम पर स्टेशन का नाम विक्टोरिया टर्मिनस रखा गया लेकिन साल 1996 में तत्कालीन रेलमंत्री सुरेश कलमाड़ी ने स्टेशन का नाम बदलकर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस कर दिया। 2 जुलाई 2004 को इस स्टेशन को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।
फिलहाल स्टेशन पर 18 प्लेटफॉर्म हैं जिनमें से 7 लोकल ट्रेन के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। 2008 में हुए मुंबई आतंकी हमले में आतंकियों ने इस स्टेशन को भी निशाना बनाया था। यहां फायरिंग में 50 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे।
जब मोबाइल और टेलीफोन नहीं थे तो लोग एक-दूसरे को खत लिखा करते थे। खत के साथ परेशानी ये थी कि इन्हें एक जगह से दूसरी जगह पहुंचने में ज्यादा टाइम लगता था, लेकिन जब सैमुएल मोर्स ने टेलीग्राफ बनाया तो एक जगह से दूसरी जगह तुरंत मैसेज जाने लगे। आज ही के दिन सैमुएल मोर्स को टेलीग्राफ के लिए पेटेंट मिला था।
कहा जाता है कि मोर्स को टेलीग्राफ बनाने का आइडिया एक जहाज में यात्रा करने के दौरान आया था। साल 1832 में मोर्स यूरोप से अपनी पढ़ाई पूरी कर जहाज से अमेरिका लौट रहे थे, तभी उनका ध्यान जहाज में सवार यात्रियों की बातों पर गया।
जहाज के यात्री हाल ही में फैराडे द्वारा इलेक्ट्रोमैग्नेट की खोज पर बात कर रहे थे। जब मोर्स ने इलेक्ट्रोमैग्नेट के बारे में पढ़ा तो उन्होंने सोचा कि इसका इस्तेमाल एक जगह से दूसरी जगह मैसेज भेजने में भी किया जा सकता है। मोर्स ने अपने इस आइडिया पर काम करना शुरू किया जिसमें न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के उनके दोस्त लैनर्ड गेल और अल्फ्रेड वेल ने उनकी मदद की।
आखिरकार सालों की मेहनत के बाद मोर्स टेलीग्राफ का एक प्रोटोटाइप बनाने में कामयाब हुए। उन्होंने अंग्रेजी के हर अक्षर के लिए छोटी-बड़ी लाइन और डॉट्स का कॉम्बिनेशन बनाया जिसे मोर्स कोड नाम दिया गया। मैसेज भेजने के लिए हर अक्षर के लिए अलग-अलग खांचे बनाए गए। एक-एक अक्षर को जमाकर शब्द बनाया जाता था और इसी तरह पूरा मैसेज लिखा जाता था।
इन खांचों के ऊपर से एक इलेक्ट्रिक पट्टी को गुजारा जाता था जो खांचों के आकार के हिसाब से इलेक्ट्रिक सर्किट को बंद चालू कर देती थी। जब सर्किट चालू होता तो रिसीवर एंड पर लाइन और डॉट बनने लगते। इसी तरह एक-एक अक्षर लाइन और डॉट्स के जरिए एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाता।
अब बात करते हैं जर्मनी से जुड़ी एक महत्वपूर्ण घटना की। 1989 में बर्लिन की दीवार ढहा दी गई। ये दीवार पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी को एक-दूसरे से अलग करती थी। दीवार गिरने से जर्मनी एक तो हुआ, लेकिन एक नई समस्या ये थी कि अब जर्मनी की राजधानी किसे बनाया जाए। इससे पहले पश्चिमी जर्मनी की राजधानी बोन और पूर्वी जर्मनी की राजधानी बर्लिन थी। आखिरकार फैसला लिया गया कि इस बारे में संसद में वोटिंग करवाई जाए और दोनों में से जिसे ज्यादा वोट मिलेंगे वह जर्मनी की राजधानी होगी।
आपको बता दें कि आज ही के दिन 20 जून साल 1991 में संसद में वोटिंग हुई। बर्लिन के पक्ष में 337 वोट और बोन के पक्ष में 320 वोट पड़े। बहुमत के आधार पर फैसला हुआ कि बर्लिन ही नए जर्मनी की राजधानी बनेगा। उसके बाद से आज तक बर्लिन ही जर्मनी की राजधानी है। आइए एक नजर डालते हैं 20 जून को देश और दुनिया में घटित हुईं महत्वपूर्ण घटनाओं परः
1837: क्वीन विक्टोरिया मात्र 18 साल की उम्र में ब्रिटेन की महारानी बनी। 1901 तक वे इस पद पर रहीं।
1858: ग्वालियर पर ब्रिटिश सेना का कब्जा और इसके साथ ही सिपाही विद्रोह का अंत हुआ।
1873: भारत में वाई.एम.सी.ए. की स्थापना।
1887: मुंबई स्थित विक्टोरिया टर्मिनस (छत्रपति शिवाजी टर्मिनस) लोगों के लिए खुला। आज यह देश के सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशनों में से एक है।
1895: कैरोलिना विलर्ड बाल्डविन ने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से पीएचडी की। किसी अमेरिकी यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने वाली वे पहली महिला हैं।
1916: पुणे में एस.एन.डी.टी. महिला विश्विविद्यालय की स्थापना।
1990: ईरान में आये भूकंप से लगभग 40 हजार लोग मोर गए थे।
1994: ईरान की मस्जिद में बम विस्फोट में 70 की मौत
1998: विश्वनाथन आनंद ने ब्लादिमीर कैमनिक को हराकर पाचवां फ़्रैकफ़र्ट क्लासिक शतरंज टूर्नामेंट जीता।
1999: ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट वर्ल्ड कप का फाइनल खेला गया। ऑस्ट्रेलिया ने पाकिस्तान को 8 विकेट से हराकर वर्ल्ड कप जीता।
2000: काहिरा में समूह-15 देशों का दसवां शिखर सम्मेलन सम्पन्न।
2001: जनरल परवेज मुशर्रफ़ पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने।
2002: पाकिस्तान ने अशरफ जहांगीर काजी को अमेरिका में अपना नया राजदूत नियुक्त किया।
2002: अमेरिकी कोर्ट ने मानसिक रूप से बीमार अपराधियों की फांसी की सजा पर रोक लगाई।
2005: रूस मालवाहक यान एम-53 अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पहुंचा।
2006: जापान ने अपनी सेनाओं को इराक से वापस बुलाने का निर्णय लिया।
2014: प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह को ज्ञानपीठ पुरस्कार की घोषणा।
2019: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उत्तर कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जोंग उन से मुलाकात की।
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