नागपुरः उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद को लेकर संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने बड़ा बयान दिया है। आरएसएस (RSS) कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन समारोह को संबोधित करते हुए डॉ. भागवत ने कुछ हिन्दू संगठनों का जिक्र करते हुए कहा कि हर दूसरे दिन मस्जिद-मंदिर विवादों को उठाना और विवाद पैदा करना अनुचित है। इन मुद्दों के सौहार्दपूर्ण समाधान की जरूरत है। दोनों पक्षों को एक साथ बैठकर शांति से एक-दूसरे से बात करनी चाहिए। यदि आवश्यक हो तो अदालत के फैसले को स्वीकार करें। उन्होंने कहा कि संघ अब कोई और मंदिर आंदोलन नहीं करेगा।
डॉ. भागवत ने कुछ हिंदू संगठनों की निंदा की। कहा कि हर दूसरे दिन मस्जिद-मंदिर विवादों पर विद्वेष फैलाना और विवाद पैदा करना अनुचित है। इससे बेहतर यह है कि मुस्लिम भाइयों के साथ बैठकर विवादों को सुलझाया जाए।
उन्होंने काशी-ज्ञानवापी मस्जिद का जिक्र किए बिना हाल में हुए सर्वेक्षण की ओर इशारा करते हुए कहा कि हिंदू हो या मुसलमान इस मुद्दे पर ऐतिहासिक हकीकत और तथ्यों को स्वीकार करें। मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने और शाही ईदगाह के अंदर कृष्ण की मूर्ति स्थापित करने की भी मांग की गई। कुछ उग्रवादी हिंदू संगठनों ने भी अन्य मस्जिदों के स्थान पर मंदिर बनाने की मांग की क्योंकि उन्हें लगा कि ये विवादित हैं। उन्होंने कहा कि आरएसएस इस तरह के किसी भी आंदोलन में शामिल नहीं होगा।
संघ प्रमुख ने आगे कहा,”हमने 9 नवंबर को ही कह दिया था कि राम मंदिर के बाद हम कोई आंदोलन नहीं करेंगे, लेकिन मुद्दे मन में हैं तो उठते हैं। ऐसा कुछ है तो आपस में मिलकर-जुलकर मुद्दा सुलझाएं।”
डॉ. भागवत ने कहा कि प्राचीन भारत में मुसलमानों के पूर्वज हिंदू थे और एक अलग धार्मिक पद्धति का पालन करते थे। हिंदुओं ने अखंड भारत के विभाजन को स्वीकार कर लिया था और एक मुस्लिम देश पाकिस्तान के लिए मार्ग प्रशस्त किया था। उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि बड़ी संख्या में मुसलमान जो भारत में रह गए और पाकिस्तान को नहीं चुना, वे हमारे भाई हैं।
उन्होंने कहा, ‘विश्व में भारत माता की विजय करानी है, क्योंकि हमको सबको जोड़ना है न कि जीतना है। हम किसी को जीतना नहीं चाहते लेकिन दुनिया में दुष्ट लोग हैं जो हमें जीतना चाहता है। आपस में लड़ाई नहीं होनी चाहिए। आपस में प्रेम चाहिए। विविधता को अलगाव की तरह नहीं देखना चाहिए। एक-दूसरे के दुख में शामिल होना चाहिए। विविधता एकत्व की साज-सज्जा है, अलगाव नहीं है।
संघ प्रमुख ने अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर बोलते हुए कहा कि जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो भारत बहुत कुछ नहीं कर सका। शक्तिशाली चीन भी इस मुद्दे पर अडिग रहा। यदि भारतीय पर्याप्त रूप से शक्तिशाली होता, तो वह युद्ध को रोक देता, लेकिन ऐसा नहीं कर सकता था, क्योंकि उसकी शक्ति अभी भी बढ़ रही है, लेकिन यह पूर्ण नहीं है। चीन उन्हें क्यों नहीं रोकता? क्योंकि उसे इस युद्ध में कुछ दिखाई देता है। इस युद्ध ने भारत जैसे देशों के लिए सुरक्षा और आर्थिक मुद्दों को बढ़ाया है। उन्होंने कहा, “हमें अपने प्रयासों को और मजबूत करना होगा। हमें शक्तिशाली बनना होगा। अगर भारत के हाथ में इतनी ताकत होती तो दुनिया के सामने ऐसी घटना नहीं आती।”
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