उदयपुरः राजस्थान के उदयपुर में इस समय कांग्रेस पार्टी का चिंतन चल रहा है। आपको बता दें कि यह पहला मौका नहीं है, जब कांग्रेस चिंतन शिविर का आयोजन कर रही है। इससे पहले पार्टी तीन बार और चिंतनशिविर आयोजित कर चुकी है। यानी सोनिया गांधी के पार्टी अध्यक्ष रहते हुए यह चौथा चिंतनशिविर है। उदयपुर में आयोजित शिविर में वन फैमिली, वन टिकट का फॉर्मूला लागू करने की घोषणा की गई है। इसके अलावा प्रदेश अध्यक्षों और जिलाध्यक्षों का टर्म भी फिक्स्ड किया जाएगा। अनुशासन को लेकर भी सख्त फैसले लिए जाएंगे।
दिलचस्प बात है कि गांधी परिवार को इन दोनों सख्त नियमों के दायरों से बाहर रखा गया है। सोनिया ने शुरुआती भाषण में कहा है कि यह कर्ज चुकाने का वक्त है और नेता अपनी इच्छाओं को छोड़कर पार्टी के लिए काम करें। सोनिया की स्पीच के बाद उदयपुर से लेकर दिल्ली तक सियासी गलियारों में अब एक ही सवाल तैर रहा है, क्या उदयपुर में शिविर लगाकर सत्ता में कांग्रेस उदय कर पाएगी?
उदयपुर में आयोजित कांग्रेस के चिंतनशिविर में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का भी पोस्ट लगाया गया है। आपको बता दें कि यह पहली बार है, जब कांग्रेस के किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में नरसिम्हा राव का पोस्टर लगाया गया है। 2004 में उनके निधन के बाद से यह पहला मौका है, जब पार्टी ने नरसिम्हा राव को फिर से जगह दी है। आपको बता दें कि 2011 में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में गांधी परिवार के करीबी मणिशंकर अय्यर ने दावा किया था कि बाबरी विध्वंस में राव की भूमिका के बाद पार्टी हाईकमान उनसे असहज महसूस कर रही थी।
कांग्रेस के कार्यक्रम में नरसिम्हा राव के पोस्टर लगाए जाने को पार्टी के सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर बढ़ने के नजरिए से देखा जा रहा है। राव अयोध्या में बाबरी विध्वंस के वक्त भारत के प्रधानमंत्री थे। पिछले कुछ सालों से इस स्ट्रैटजी पर राहुल गांधी भी बढ़ते दिख रहे हैं। राहुल अक्सर हिंदू और हिंदुत्व को लेकर बयान देते रहे हैं।
22 राज्यों की विधानसभा और 2 लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद पार्टी में घमासान मचा हुआ है। वहीं शिविर में G-23 समेत कांग्रेस के सभी नेता एकजुट हुए हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि शिविर के बाद फिर से गांधी परिवार कांग्रेस की सत्ता के केंद्र में रहेगा। शिविर में राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनाए जाने की भी मांग उठ सकती है। इसी साल कांग्रेस में नए अध्यक्ष का चुनाव होना है।
इस चिंतन शिविर का कांग्रेस ने नवसंकल्प नाम दिया है। इसमें खेती-किसानी, रोजगार, राष्ट्रीय सुरक्षा, दलित-आदिवासियों पर अत्याचार रोकना समेत 6 मुद्दों पर प्रस्ताव पेश किया जाएगा। इन प्रस्तावों को जमीन पर उतारने के लिए शिविर में कांग्रेसी संकल्प लेंगे।
चलिए अब आपको बताते हैं कि कांग्रेस का चिंतन शिविर कब-कब आयोजित किया गया है। 2013 में केंद्र की सत्ता में रहते हुए कांग्रेस ने जयपुर में चिंतन शिविर लगाया था। अन्ना आंदोलन, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब सहित कई राज्यों के असेंबली इलेक्शन में करारी हार के बाद पार्टी ने यह चिंतन शिविर लगाया था, लेकिन शिविर में चिंतन के बजाय राहुल गांधी के प्रमोशन पर ही अधिक फोकस रहा। शिविर में महासचिव पद पर काम कर रहे राहुल गांधी को उपाध्यक्ष बनाने का निर्णय लिया गया। वहीं, कांग्रेस ने इस शिविर में फैसला किया कि प्रदेश अध्यक्ष और जिलाध्यक्ष लोकसभा या विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे।
वहीं, 2004 के लोकसभा चुनाव से एक साल पहले कांग्रेस ने शिमला में चिंतन शिविर का आयोजन किया। इस शिविर में कांग्रेस ने पहले शिविर में तय की गई नीति को पलटकर समान विचारधारा के दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने का फैसला किया। शिविर में यूपीए (UPA) बनाने का ऐलान किया गया। कांग्रेस को इस निर्णय का फायदा भी मिला और 2004 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने शाइनिंग इंडिया के रथ पर सवार अटल-आडवाणी की जोड़ी को पछाड़कर केंद्र में सरकार बनाई।
पूर्व राजीव गांधी की हत्या के 7 साल बाद कांग्रेस संगठन में गांधी परिवार की वापसी हुई और सीताराम केसरी को हटाकर सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान संभाली। 1998 में सोनिया ने मध्यप्रदेश के पचमढ़ी में कांग्रेस नेताओं को एकजुट कर चिंतन शिविर का आयोजन किया। इस शिविर में गठबंधन से त्रस्त कांग्रेस ने एकला चलो की नीति तय की। शिविर में पंचायती राज को लेकर 14 सूत्रीय योजना, खेती से जुड़ी आठ सूत्रीय योजना, सांप्रदायिकता के बढ़ते खतरे और बीजेपी के तेजी से बढ़ते असर से निपटने के लिए विस्तृत योजना पेश की गई थी।
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