दिल्लीः फिलहाल राजद्रोह की धारा के तहत देश में कोई नया केस दर्ज नहीं होगा। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति सूर्यकांत तथा न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने बुधवार को राजद्रोह कानून पर अंतरिम आदेश देते हुए इसे निलंबित कर दिया। अब इस मामले में अगली सुनवाई जुलाई में होगी।
केंद्र सरकार ने बुधवार को देशद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट में जवाब दायर किया। इसके बाद कोर्ट ने केंद्र सरकार को IPC की धारा 124ए के प्रावधानों पर पुनर्विचार करने की अनुमति देते हुए कहा कि जब तक री-एग्जामिन प्रोसेस पूरी नहीं हो जाती, तब तक 124ए के तहत कोई मामला दर्ज नहीं होगा। अब आइए आपको कोर्ट में राजद्रोह के मुद्दे पर सरकार और इसके विरोध करने वालों की दलीलों के बारे में बताते हैं।
- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि संज्ञेय अपराध को दर्ज करने से रोका नहीं जा सकता है, केंद्र सरकार इसे मद्देनजर एक दिशानिर्देश जारी कर सकती है। उन्होंने बताया कि मसौदा तैयार कर लिया गया है। इस तरह के अपराध पर सरकार या कोर्ट का अंतरिम आदेश के जरिए स्टे लगाना उचित अप्रोच नहीं हो सकता है। इसलिए हमने कहा है कि एक जिम्मेदार अधिकारी होगा, जो इसकी जांच करेगा। केंद्र ने कहा कि FIR से पहले SP स्क्रूटनी करेंगे और पेंडिंग केस के बेल जल्द निपटाने का ऑर्डर हो सकता है।
- इसके बाद जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आपके (तुषार मेहता) अनुसार मामला दर्ज करने से पहले SP जांच करेंगे। आपके (याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल) हिसाब से किसे करनी चाहिए। इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि कोई नहीं, इसे खत्म कर देना चाहिए। बीच की अवधि में इस पर रोक लगनी चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि प्लीज हवा में बहस मत कीजिए। क्या हम इसे आज खत्म कर सकते हैं? इसके जवाब में सिब्बल ने कहा कि मेरा यह कहना है कि आप प्रथमदृष्टया इस पर रोक लगा सकते हैं।
- इसके बाद सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कोई भी आरोपी कोर्ट नहीं पहुंचा है। PIL के जरिए इस पर विचार करना खतरनाक नजीर बनेगा।
- इस पर कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार भी कोर्ट की राय से सहमत है कि सेक्शन 124ए के प्रावधान आज के सामाजिक परिवेश के अनुरूप नहीं हैं। इसके बाद आदेश पढ़ते हुए CJI ने कहा कि हमें उम्मीद और भरोसा है कि केंद्र और राज्य सेक्शन 124ए के तहत कोई FIR दर्ज करने से बचेंगे। CJI ने साफ कहा कि जब तक पुनर्विचार की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती इस कानून के प्रावधानों का इस्तेमाल उचित नहीं होगा।
- जस्टिस रमना ने स्पष्ट तौर पर कहा कि जिन लोगों पर पहले से आईपीसी की धारा 124ए के तहत मुकदमा दर्ज है और जेल में हैं तो वे जमानत के लिए कोर्ट का रुख कर सकते हैं।
आपको बता दें कि राजद्रोह मामलों में धारा 124A से जुड़ी 10 से ज्यादा याचिकाओं को कोर्ट में चुनौती दी गई है। ये याचिका एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा सहित पांच पक्षों की ओर से दायर की गई हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आज के समय में इस कानून की जरूरत नहीं है।
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार से पूछा था कि इस एक्ट में नए केस दर्ज होंगे या नहीं? कोर्ट ने यह भी पूछा था- देश में अभी तक जितने आईपीसी (IPC) भारतीय दंड संहिता की धारा 124-A एक्ट के तहत केस हैं, उनका क्या होगा? वह राज्य सरकारों को निर्देश क्यों नहीं दे रहा है कि जब तक इस कानून को लेकर पुनर्विचार प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक 124ए के तहत मामलों को स्थगित रखा जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने गत गुरुवार को देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की थी। इस दौरान केंद्र की ओर से यह दलील दी गई थी कि इस कानून को खत्म न किया जाए, बल्कि इसके लिए नए दिशा-निर्देश बनाए जाएं।
कैसा है कानून का मौजूदा स्वरूप
देशद्रोह कानून पर याचिकाएं दायर करने वालों में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी, मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा, छत्तीसगढ़ के कन्हैयालाल शुक्ला शामिल हैं। इस कानून में गैर-जमानती प्रावधान हैं। यानी भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ नफरत, अवमानना, असंतोष फैलाने को अपराध माना जाता है। आरोपी को सजा के तौर पर आजीवन कारावास दिया जा सकता है।