दिल्लीः मशहूर सितार वादक पंडित शिवकुमार शर्मा अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका मंगलार को 84 साल के उम्र में निधन हो गया। शिवकुमार शर्मा का जन्म जम्मू में हुआ था। उन्होंने संतूर की लोकप्रियता को घर-घर पहुंचाया था। पंडित शर्मा ने संतूर के बड़ी पहचान बनाई थी। खबरों के अनुसार शिवकुमार शर्मा का निधन दिल का दौरा पड़ने से हुआ। पीएम नरेंद्र मोदी ने पंडित शिवकुमार शर्मा को श्रद्धांजलि दी है।
प्रख्तात संतूर वादक एवं पद्म विभूषण पंडित शिवकुमार शर्मा पांच वर्ष की आयु में ही तबला और गायन की शिक्षा प्राप्त करने लगे थे और 13 वर्ष की उम्र में ही संतूर पर अपनी उंगलियां चलाना शुरू कर दिया था।
पंडित शर्मा 1955 में मुंबई में अपनी पहली सार्वजनिक प्रस्तुति देकर भारतीय शास्त्रीय संगीत को संतूर पर बजाने वाले पहले भारतीय बन गये थे। उनके पिता शास्त्रीय गायक उमादत्त शर्मा ने उन्हें बचपन से ही संगीत की ओर उन्मुख करवा दिया था और उन्होंने अपने पिता की अपेक्षाओं पर खरा उतरते हुए दुनिया में अपना नाम रोशन कर दिया।
संगीत के क्षेत्र में उनके अप्रतिम योगदान को देखते हुए उन्हें 1986 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 1991 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया। पंडित शर्मा 2001 में पद्म विभूषण से नवाजे गये थे। वर्ष 1985 में अमेरिका के मैरीलैंड राज्य के सबसे बड़े शहर बाल्टिमोर ने उन्हें मानद् नागरिकता प्रदान की थी।
पंडित शर्मा का जन्म जम्मू में शास्त्रीय गायक उमा दत्त शर्मा के घर 1938 में हुआ था। उनकी पत्नी का नाम मनोरमा है, उनके दो पुत्र हैं। उनके एक पुत्र राहुल ने भी 13 वर्ष की आयु में संगीत सीखना शुरू कर दिया था और वह भी एक संतूर वादक हैं। पिता-पुत्र 1996 से एक साथ वादन करते आये हैं।
पंडित शर्मा ने 1999 में एक साक्षात्कार में बताया कि उन्होंने अपने पुत्र राहुल को अपना शिष्य इसलिए चुना क्योंकि राहुल के पास ‘भगवान का आशीर्वाद’ है।
संतूर को शास्त्रीय वाद्य के रूप में लोकप्रिय करने वाले पंडित शर्मा की पहली एकल एल्बम 1960 में दुनिया के सामने आई।
उन्होंने इस एल्बम में संतूर को घाटी से लाकर पूरे विश्व के सामने प्रस्तुत करने की अहम भूमिका निभाई। 1955 में इन्होंने निर्देशक वी शांताराम की हिन्दी फ़िल्म ‘झनक-झनक पायल बाजे’ में संगीत भी दिया था। साल 1967 में श्री शर्मा ने प्रसिद्ध बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया और पंडित बृजभूषण काबरा की संगत से एल्बम ‘कॉल ऑफ़ द वैली’ दुनिया के सामने प्रस्तुत की, जिसे भारतीय शास्त्रीय संगीत की सबसे यादगार रचनाओं में गिना जाता है।
इसके बाद उन्होंने हरिप्रसाद चौरसिया के साथ मिलकर फिल्म सिलसिला (1981) से शुरू कर कई हिन्दी फ़िल्मों के लिये कालजयी संगीत दिया। उन्हें शिव-हरि के नाम से जाना जाने लगा। दोनों ने मिलकर फ़ासले (1985), चांदनी (1989), लम्हे (1991) और डर (1993) जैसी कई हिट फ़िल्मों के लिये संगीत दिया।
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