देहरादूनः उत्तराखंड में 6 महीने बाद बाबा केदारनाथ के कपाट खुल गए हैं। शुभ मुहूर्त के मुताबिक शुक्रवार को 6.25 बजे वैदिक मंत्रोच्चार के साथ मंदिर के कपाट खोले गए, जिसके बाद रावल (मुख्य पुजारी) ने बाबा की डोली लेकर मंदिर में प्रवेश किया। इस मौके पर 10 हजार श्रद्धालुओं के साथ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी मौजूद रहे।
Uttarakhand: The portals of #KedarnathDham opened this morning.
Chief Minister @pushkardhami offered prayers on the occasion.
The portals of #Badrinath shrine will open on Sunday. pic.twitter.com/fhL4Owd6cA
— Prasar Bharati News Services पी.बी.एन.एस. (@PBNS_India) May 6, 2022
मंदिर प्रांगण को 10 क्विंटल फूलों से सजाया गया है। इससे पहले, गुरुवार को ही केदारनाथ में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा था। आपको बता दें कि 2020 में कोरोना महामारी फैलने के बाद से यहां भक्तों को दर्शन की इजाजत नहीं थी। हालांकि हर साल कपाट खुलते थी और बाबा की पूजा-आरती की जाती थी।
हजारों की संख्या में श्रद्धालु गुरुवार सुबह गौरीकुंड से केदारनाथ धाम की तरफ बढ़े। भक्तों ने यहां से करीब 21 किलोमीटर की दूरी पैदल, घोड़े या पिट्ठू से पूरी की। सुबह 6 बजे शुरू हुई यात्रा शाम 4 बजे केदारनाथ धाम पर पूरी हुई। क्षमता से ज्यादा श्रद्धालु पहुंचने से अफरा-तफरी का माहौल बन गया, जिसके बाद हजारों श्रद्धालुओं को गौरीकुंड पर रोक दिया गया। हालांकि, शुक्रवार सुबह सभी को केदारनाथ जाने की अनुमति दे दी गई।
ऐसी मान्यता है कि बाबा केदारनाथ जगत कल्याण के लिए 6 महीने समाधि में रहते हैं। मंदिर के कपाट बंद होने के अंतिम दिन चढ़ावे के बाद सवा क्विंटल भभूति चढ़ाई जाती है। कपाट खुलने के साथ ही बाबा केदार समाधि से जागते हैं। इसके बाद भक्तों को दर्शन देते हैं।
बाबा केदारनाथ का मंदिर भारतीयों के लिए केवल श्रद्धा और आस्था का केंद्र नहीं है, बल्कि उत्तर और दक्षिण भारत की धार्मिक संस्कृति का संगम स्थल भी है। उत्तर भारत में पूजा पद्धति अलग है, लेकिन बाबा केदारनाथ में पूजा दक्षिण की वीर शैव लिंगायत विधि से होती है। मंदिर के गद्दी पर रावल विराजते हैं, जिन्हें प्रमुख भी कहा जाता है। मंदिर में रावल के शिष्य पूजा करते हैं। रावल यानी पुजारी, जो कर्नाटक से ताल्लुक रखते हैं।
उत्तराखंड के चार धामों में केदारनाथ तीसरे नंबर पर है। ये मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। महाभारत काल में यहां शिवजी ने पांडवों को बेल के रूप में दर्शन दिए थे। ये मंदिर आदिगुरु शंकराचार्य ने बनवाया था। मंदिर करीब 3,581 वर्ग मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और गौरीकुंड से करीब 16 किमी दूरी पर है। मान्यता है कि 8वीं-9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।