दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट की ओर से तीन तलाक पर फैसला आने के बाद अब तलाक-ए-हसन का मुद्दा सामने आया है। गाजियाबाद की बेनजीर हिना ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर मांग की है कि तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-अहसन को भी तलाक-ए-बिद्दत (तीन तलाक) की तरह अपराध घोषित करार दिया जाए।
आपको बता दें कि शीर्ष अदालत ने 22 अगस्त 2017 को केवल तीन तलाक बोल कर शादी तोड़ने को असंवैधानिक करार दिया था। तलाक-ए-बिद्दत कही जाने वाली इस प्रक्रिया पर अधिकतर मुस्लिम उलेमाओं ने भी कहा था कि यह कुरान के मुताबिक नहीं है।
हिना ने वकील अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से याचिका दायर की है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक बेनजीर की शादी 25 दिसंबर 2020 को दिल्ली के युसुफ नकी से मुस्लिम रीति-रिवाज के तहत हुई थी और उसका एक लड़का भी है। पिछले साल दिसंबर में घरेलू विवाद के बाद युसुफ ने उसे घर से बाहर कर दिया। पिछले 5 महीने से बिना किसी संपर्क के युसुफ ने अपने वकील के जरिए डाक से एक चिट्ठी भेज दी, जिसमें लिखा है कि वह तलाक-ए-हसन के तहत पहला तलाक दे रहे हैं।
बेनजीर ने बताया कि उसके माता-पिता को दहेज देने के लिए मजबूर किया गया था और बाद में एक बड़ी रकम न देने के लिए उसे प्रताड़ित किया गया। उसने यह भी दावा किया कि पति और परिवार के सदस्यों ने न केवल शादी के बाद बल्कि प्रेग्नेंसी के दौरान भी उसे शारीरिक-मानसिक रूप से प्रताड़ित किया, जिससे वह गंभीर रूप से बीमार हो गई। बेनजीर ने कहा कि तलाक-ए-हसन इस्लाम के मौलिक सिद्धांत में शामिल नहीं है। चलिए अब आपको इस्लाम में तलाक देने के तीन तरीकों के बारे में बताते हैं-
- पहला तलाक-ए-अहसन- इस्लामिक विद्वानों के मुताबिक इसमें पति, बीवी को तब तलाक दे सकता है, जब उसके पीरियड्स न चल रहे हों। इस तलाक के दौरान 3 महीने एक ही छत के नीचे पत्नी से अलग रहता है, जिसे इद्दत कहते हैं। यदि पति चाहे तो 3 महीने बाद तलाक वापस ले सकता है। अगर ऐसा नहीं होता तलाक हमेशा के लिए हो जाता है, लेकिन पति-पत्नी दोबारा शादी कर सकते हैं।
- दूसरा तलाक-ए-हसन- इसमें पति तीन अलग-अलग मौकों पर बीवी को तलाक कहकर/लिखकर तलाक दे सकता है। वह भी तब, जब उसके पीरियड्स न हों। लेकिन इद्दत खत्म होने से पहले तलाक वापसी का मौका रहता है। तीसरी बार तलाक कहने से पहले तक शादी लागू रहती है, लेकिन बोलने के तुरंत बाद खत्म हो जाती है। इस तलाक के बाद भी पति-पत्नी दोबारा शादी कर सकते हैं, लेकिन पत्नी को हलाला (दूसरी शादी और फिर तलाक) से गुजरना पड़ता है।
- तीसरा तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत- इसमें पति किसी भी समय, जगह, फोन पर, लिखकर पत्नी को तलाक दे सकता है। इसके बाद शादी तुरंत टूट जाती है और इसे वापस नहीं लिया जा सकता है।
बेनजीर ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में मांग की है कि कोर्ट तलाक-ए-हसन और अदालती तरीके से न होने वाले दूसरे सभी किस्म के तलाक को असंवैधानिक करार दे। शरीयत एप्लिकेशन एक्ट, 1937 की धारा 2 को रद्द करने के साथ डिसॉल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एक्ट 1939 को भी पूरी तरह निरस्त करने का आदेश दे। क्योंकि ये सभी पूरी तरह से अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 और संयुक्त राष्ट्र समिट्स के फैसलों के खिलाफ हैं।