दिल्लीः  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि हमें कोर्ट में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। इससे देश के आम नागरिकों का न्याय प्रणाली में भरोसा बढ़ेगा, वे उससे जुड़ा हुआ महसूस करेंगे। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी में दिए फैसले आम लोग समझ नहीं पाते, कोर्ट लोकल लैंग्वेज को बढ़ावा दें।

पीएम मोदी ने यह बातें दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और चीफ जस्टिस की जॉइंट कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कही। इस कार्यक्रम में इसमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, केंद्रीय कानून मंत्री और सभी 25 हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस भी मौजूद थे।

उन्होंने जेलों में न्याय के इंतजार में पड़े कैदियों के मामलों पर संवेदनशील रूख अपनाए जाने पर बल देते हुए कहा कि जहां तक संभव हो विचाराधीन कैदियों के मामले में मानवीय संवेदनाओं और कानून के आधार पर प्राथमिकता से फैसले किए जाए और संभव हो,  तो ऐसे कैदियों को जमानत पर छोड़ा जाए।
पीएम मोदी ने मुख्यमंत्रियों से यह भी अपील की कि वे काल विगत हो चुके कानूनों को खत्म कर लोगों को अऩावश्यक कानूनों के जंजाल से छुट्टी दिलाने की पहल करें।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने 2015 में ऐसे 1,800 कानूनों को चिह्नित किया था, जो अप्रासंगिक हो चुके थे। उन्होंने कहा कि ऐसे 1450 कानून केंद्र ने समाप्त कर दिये हैं लेकिन राज्यों की तरफ से केवल 75 कानून ही खत्म किए गए हैं।

उन्होंने ने विचाराधीन कैदियों की दुर्दशा का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए कहा कि इस समय देश में करीब साढ़े तीन लाख कैदी ऐसे हैं, जिनपर मुकदमें की कार्रवाई लंबित है, जिनमें अधिकांश गरीब या सामान्य परिवार के हैं।
उन्होंने कहा,”मैं सभी मुख्यमंत्रियों, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों से अपील करूंगा कि वे मानवीय संवेदनाओं और कानून के आधार पर इन मामलों को प्राथमिकता दें।”

प्रधानमंत्री मोदी ने इसी संदर्भ में कहा कि हर जिले में जनपद न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति होती है, जो ऐसे मामलों की समीक्षा करती है। उन्होंने कहा कि जहां तक संभव हो, विचाराधीन कैदियों को जमानत पर रिहा करने का विचार किया जा सकता है।

उन्होंने न्यायालयों में स्थानीय भाषाओं के प्रोत्साहन पर बल देते हुए कहा, “इससे देश के सामान्य नागरिकों का न्याय प्रणाली में भरोसा बढ़ेगा और वे इससे जुड़ा हुआ महसूस करेंगे।” उऩ्होंन कहा कि किसी भी देश में स्वराज का आधार न्याय होता है। न्याय जनता की भाषा में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भाषा भी सामाजिक न्याय का मुद्दा है। उन्होंने कहा कि न्यायिक निर्णयों को भाषा के कारण न समझ पाने की वजह से ही आम जन अदालतों की निर्णयों और शासन के आदेश में फर्क नहीं कर पाते।

उन्होंने कहा, “सामाजिक न्याय के लिए न्यायपालिका के तराजू तक जाने की जरुरत नहीं होती, कई बार भाषा भी सामाजिक न्याय का माध्यम हो जाती है।” उन्होंने कहा कि हमें खुशी है कि कई राज्यों ने तकनिकी और चिकित्सा शिक्षा को मातृभाषा में प्रदान करने की पहल की है।

मोदी ने न्यायपालिका में टेक्नोलॉजी के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा,”भारत सरकार भी न्याय प्रणाली में प्रौद्योगिकी के संभावनाओं को डिजिटल इंडिया मिशन का एक आवश्यक अंग मानती है।” उन्होंने कहा कि ई-न्यायालय परियोजना को आज एक अभियान की तरह ही लागू किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री ने भारत में हो रही डिजिटल क्रांति का उल्लेख करते हुए कहा कि छोटे कस्बों और यहां तक कि गांवों में भी डिजिटल लेन देने आम हो गयी है। पूरे विश्व में जितने डिजिटल लेन-देन हुए, उसमें से 40 प्रतिशत लेन-देन भारत में हुए। उन्होंने इसी संदर्भ में कानूनी पाठ्यक्रमों में भी बदलती प्रौद्योगिकी के अऩुसार नयी पहल की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा,”आजकल कई देशों में विधि विश्वविद्यालयों में ब्लॉक चेन, इलेक्ट्रोनिक डिसकवरी, साइबर सिक्योरिटी, रोबोटिक्स, क़ृत्रिम मेघा और बायो इथिक्स जैसे विषय पढ़ाए जाने लगे हैं।”

प्रधानमंत्री ने कहा,”हमारे देश में भी विधिक शिक्षा अंतरराष्ट्रीय मानकों के अऩुसार हो, यह हमारी जिम्मेदारी है।” उन्होंने कहा कि भारत में मामलों के समाधान के लिए मध्यस्थता महत्वपूर्ण है, देश में मध्यस्थता के जरिए विवादों का समाधान किए जाने की पुरानी परंपरा रही है। यह न्याया की एक अलग मानवीय धारणा है और देश में यह परंपरा आज भी बनी हुई है। देश ने इन परंपराओं को खोया नहीं है, हमें इसे और मजबूत बनाने की जरुरत है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि मध्यस्थता के माध्यम से न्याय सस्ता और सुलभ होता है और समय से मिलता है। इससे मानवीय संबंधों की भी रक्षा होती है।
उन्होंने संसद में प्रस्तुत मध्यस्थ विधेयक का उल्लेख करते हुये कहा कि भारत दुनिया में मध्यस्थता का केंद्र बन सकता है। उन्होंने कहा कि आज का सम्मेलन हमारी संवैधानिक खूबसूरती का सजीव चित्रण है। हमें उम्मीद है कि मुख्यमंत्रियों और प्रधान न्यायाधीशों का यह सम्मेलन देश में प्रभावी और समयबद्ध न्याय व्यवस्था के लिए आगे का खाका प्रस्तुत करेगा। उन्होंने कहा कि सरकार न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने के लिए बुनियादी ढ़ांचा में सुधार करने की कोशिश कर रही है और आईटी के इस्तेमाल की शुरुआत हो चुकी है। उन्होंने कहा कि सभी स्तर पर न्यायाधीशों की रिक्तियां पूरी करने की कोशिश चल रही है, इसमें राज्यों की बड़ी भूमिका है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे देश में न्यायपालिका की भूमिका संविधान के संरक्षक की है और विधायकाएं जन आकांक्षाएं का प्रतिनिधित्व करती है। आजादी के अमृतकाल में हमें एक ऐसे न्याय व्यवस्था का सपना देखना चाहिए, जिसमें न्याय त्वरित हो और सबके लिए हो। मुझे विश्वास है कि संविधान की इन दो धाराओं का यह संगम, यह संतुलन देश में प्रभावी औऱ समयबद्ध न्याय व्यवस्था का भविष्य का मानचित्र तैयार करेगा। आजादी के पिछले 75 सालों में न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों की ही भूमिकाएं औऱ दायित्व स्पष्ट किए हैं। जब भी जरुरी हुआ है, दोनों के संबंधों में लगातार इस तरह का विकास हुआ है कि देश को सही दिशा मिलती रहे।

उन्होंने कहा,”ये प्रश्न हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए कि हम कैसे अपनी न्यायिक प्रणाली को इतना समर्थ बनाएं कि वह 2047 के आकांक्षाओं को पूरा कर सकें और उसपर प्रणाली खड़ी उतर सकें।”

उन्होंने कहा कि देश में 3.5 लाख कैदी अंडर ट्रायल हैं, इनके मसले को निपटाने पर जोर दिया जाए। मैं सभी मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट के जजों से इस पर ध्यान देने की अपील करता हूं।

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