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खत्म हुआ 66 साल का इंतजार, माकपा में पहली बार दलितों को मिला प्रतिनिधित्व, राम चंद्र डोम बने पोलित ब्यूरो सदस्य - Prakhar Prahari
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खत्म हुआ 66 साल का इंतजार, माकपा में पहली बार दलितों को मिला प्रतिनिधित्व, राम चंद्र डोम बने पोलित ब्यूरो सदस्य

दिल्लीः आखिरकार 66 साल का इंतजार खत्म हो गया और पहली बार मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) में दलितों को प्रतिनिधित्व मिला। पार्टी ने रविवार को सीताराम येचुरी को तीसरे कार्यकाल के लिए पार्टी के महासचिव के रूप में फिर से चुना। येचुरी को माकपा के 23वें सम्मेलन में 85 सदस्यीय नई केंद्रीय समिति के नेता के रूप में चुना गया। इसके साथ ही पार्टी के सम्मेलन में पोलित ब्यूरो के 17 सदस्यों और केंद्रीय समिति के 85 सदस्यों का भी चुनाव किया गया, जो अगले तीन साल तक कार्य करेंगे।

आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ नेता राम चंद्र डोम को पदोन्नति देकर केंद्रीय समिति के सदस्य से पोलित ब्यूरो का सदस्य बनाया गया है। इसके साथ ही वह 6 दशकों का इंतजार खत्म करते हुए पोलित ब्यूरो में पहले दलित प्रतिनिधि बन गए हैं।

माकपा के पोलित ब्यूरो में दो नए चेहरों को जगह मिली है जिनमें केरल से वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) के संयोजक ए विजयराघवन और ऑल इंडिया किसान सभा के अध्यक्ष अशोक धवले शामिल हैं।

आपको बता दें कि माकपा के गठन के बाद से डोम पोलित ब्यूरो में पहली बार दलित प्रतिनिधि बने, लेकिन पेशे से डॉक्टर 63 वर्षीय राम चंद्र डोम ने कहा कि उनका चयन वाम दल में नेताओं के चुनाव की स्वाभाविक प्रक्रिया का हिस्सा है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह नेताओं को चुनने की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और इसमें कुछ भी नया नहीं है। यह धारणा सही नहीं है कि माकपा ने अभी अभी एक दलित नेता को पोलित ब्यूरो में शामिल किया है, क्योंकि दलित, आदिवासी पिछड़े समुदायों के सैकड़ों साथी माकपा के साथ काम कर रहे हैं और वे हमारी पार्टी की नींव हैं। वे मजदूर वर्ग के हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह अब मेरे लिए एक बड़ी जिम्मेदारी है।’’ पश्चिम बंगाल में पार्टी की स्थिति के बारे में बात करते हुए डोम ने कहा कि वाम दल को लोगों के साथ काम करने और वहां फासीवादी ताकतों से लड़ने की जरूरत है।

इस मौके पर माकपा के 23वें सम्मेलन में पार्टी के शीर्ष पद पर निर्वाचित होने के बाद प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए येचुरी ने कहा कि माकपा का प्रधान लक्ष्य भाजपा को अलग-थलग कर हराना है जो ‘फासीवादी’ आरएसएस के ‘हिंदुत्व के सांप्रदायिक एजेंडे’ को बढ़ा रही है।

उन्होंने कहा कि भगवा पार्टी को अलग-थलग करना और हराना न केवल मानव आजादी को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी है,  बल्कि भारत को धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्रिक गणतंत्र के तौर पर बचाने के लिए भी आवश्यक है।

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