श्रीनगरः वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण पवित्र अमरनाथ यात्रा दो साल बाद फिर से शुरू हो रही है। श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड ने बताया कि इस साल यात्रा 30 जून से शुरू होगी और 43 दिनों बाद 11 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन संपन्न होगी। ये फैसला प्रदेश के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की अध्यक्षता में हुई श्राइन बोर्ड की बैठक में लिया गया।
आपको बता दें कि 2019 में जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने से ठीक पहले अमरनाथ यात्रा बीच में ही रद्द कर दी गई थी। उस समय जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य होने का दर्जा खत्म करके उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया गया था। इसके बाद कोरोना महामारी की वजह से दो साल से यात्रा स्थगित रही है। 2021 में 56 दिनों की यात्रा की घोषणा हुई थी, लेकिन कोरोना की वजह से बाद में उसे स्थगित कर दिया गया था।
अमरनाथ यात्रा से जुड़ी अहम बातें
अमरनाथ धाम और उसका महत्व?
श्री अमरनाथ धाम जम्मू-कश्मीर में हिमालय की गोद में स्थित एक पवित्र गुफा है, जो हिंदुओं का सबसे पवित्र स्थल है।
कहां स्थित है पवित्र अमरनाथ की पवित्र गुफा?
श्री अमरनाथ गुफा जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले में 17 हजार फीट से ज्यादा ऊंचाई वाले अमरनाथ पर्वत पर स्थित है। श्री अमरनाथ गुफा श्रीनगर से 141 किलोमीटर दूर दक्षिण कश्मीर में है। यह गुफा लिद्दर घाटी के सुदूर छोर पर एक संकरी घाटी में स्थित है। ये पहलगाम से 46-48 किमोमीटर और बालटाल से 14-16 किलोमीटर दूर है।
गुफा समुद्र तल से 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां केवल पैदल या टट्टू द्वारा ही पहुंचा जा सकता है। तीर्थयात्री पहलगाम से 46-48 किलोमीटर या बालटाल से 14-16 किलोमीटर की दूरी की खड़ी, घुमावदार पहाड़ी रास्ते से गुजरने हुए यहां पहुंचते हैं।
अमरनाथ गुफा से जुड़ी कथा?
सबसे पहले कब शुरू हुई थी अमरनाथ यात्रा?
इस बात का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है कि अमरनाथ यात्रा कब से शुरू हुई। हालांकि 12वीं सदी में लिखी गई कल्हण की पुस्तक राजतरंगिणी में अमरनाथ का जिक्र मिलता है।
माना जाता है कि 11वीं सदी में रानी सूर्यमती ने अमरनाथ मंदिर को त्रिशूल, बाणलिंग समेत कई अन्य पवित्र चीजें दान की थीं।
एक मान्यता के अनुसार, अमरनाथ गुफा की खोज सबसे पहले ऋषि भृगु ने की थी। दरअसल, जब एक बार कश्मीर घाटी पानी में डूब गई थी तो ऋषि कश्यप ने नदियों और नालों के जरिए पानी बाहर निकाला था। पानी निकलने के बाद ऋषि भृगु ने सबसे पहले अमरनाथ में शिव के दर्शन किए थे।
आधुनिक रिसर्चर्स के मुताबिक, 1850 में बूटा मलिक नामक एक मुस्लिम गडरिए ने अमरनाथ गुफा की खोज की थी।
वहीं, सिस्टर निवेदिता ने ‘नोट्स ऑफ सम वांडरिंग विद स्वामी विवेकानंद’ में 1898 में स्वामी विवेकानंद के अमरनाथ गुफा जाने का जिक्र किया है।
श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड का गठन कब हुआ
लंबे समय तक बूटा मलिक के परिजन, दशनामी अखाड़ा के पंडित और पुरोहित सभा मट्टन इस तीर्थस्थल के पारंपरिक सरंक्षक रहे।
2000 में जम्मू कश्मीर की फारूख अब्दुल्ला सरकार ने यात्रा की सुविधा को बढ़ाने के लिए श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड का गठन किया, जिसका मुखिया राज्यपाल को बनाया गया। श्राइन बोर्ड से मलिक के परिवार और हिंदू संगठनों को हटा दिया गया।
अमरनाथ यात्रा कब होती है
आमतौर पर अमरनाथ यात्रा जुलाई-अगस्त के दौरान होती है, जब हिंदुओं का पवित्र महीना सावन पड़ता है। शुरू में तीर्थयात्रा 15 दिन या एक महीने के लिए आयोजित होती थी। 2004 में, श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड ने तीर्थयात्रा को लगभग 2 महीनों तक आयोजित करने का फैसला किया।
उदाहरण के लिए 1995 में अमरनाथ यात्रा 20 दिनों तक चली थी। 2004 से 2009 के दौरान यात्रा 60 दिनों तक चली थी। इसके बाद के वर्षों में यात्रा 40 से 60 दिन तक चली थी।
2019 में ये यात्रा 1 जुलाई से शुरू होकर 15 अगस्त तक चलनी थी, लेकिन आर्टिकल- 370 हटाए जाने से कुछ दिनों पहले सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए रद्द कर दी गई थी।
अमरनाथ यात्रा का पुराना और नया रास्ता क्या है?
दरअसल अमरनाथ यात्रा का मार्ग समय के साथ बदलता रहा है। इस इलाके में सड़कों के निर्माण के साथ ही यात्रा मार्ग में भी बदलाव हुआ है। अब अमरनाथ की यात्रा के लिए दो रास्ते हैं।
एक रास्ता पहलगाम से शुरू होता है, जो करीब 46-48 किलोमीटर लंबा है। इस रास्ते से यात्रा करने में 5 दिन का समय लगता है।
वहीं दूसरा रास्ता बालटाल से शुरू होता है, जहां से गुफा की दूरी 14-16 किलोमीटर है, लेकिन खड़ी चढ़ाई की वजह से इससे जा पाना सबके लिए संभव नहीं होता, इस रास्ते से यात्रा में 1-2 दिन का समय लगता है।
अब तक अमरनाथ यात्रा पर हुए हैं 36 आतंकी हमले
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