बेंगलुरुः कर्नाटक हाई कोर्ट सोमवार को हिजाब पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं से कई सवाल पूछे, जिनमें से एक महत्वपूर्ण सवाल यह था कि क्या कुरान के सभी आदेश अनुल्लंघनीय हैं।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति कृष्ण एस. दीक्षित ने पूछा कि क्या पवित्र कुरान में जो कुछ कहा गया है वह आवश्यक धार्मिक प्रथाओं के बराबर है और क्या कुरान के सभी आदेश अनुल्लंघनी हैं।
इसके जवाब में याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कहा कि मौजूदा मामले में, हिजाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है। उन्होंने तर्क दिया, “इस मामले में बड़ा सवाल यह नहीं उठता है कि क्या कुरान के सभी आदेश आवश्यक धार्मिक प्रथाएं हैं।”
अधिवक्ता ने पीठ को आगे बताया कि चूंकि पवित्र कुरान ही हिजाब पहनने का संदर्भ देता है, इसलिए किसी अन्य प्राधिकरण को संदर्भित करना आवश्यक नहीं है और तदनुसार इस तरह की प्रथा को संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित किया जाना चाहिए।
सुनवाई के एक बिंदु पर, मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी ने मलेशियाई उच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए श्री कामत से पूछा कि क्या किसी अन्य इस्लामी देश या धर्मनिरपेक्ष देश के न्यायालय के किसी भी निर्णय में अलग विचार है कि हिजाब पहनना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है। इसके जवाब में कामत ने कहा कि उनकी जानकारी के अनुसार इसके विपरीत कोईनिर्णय नहीं है।
एक अन्य बिंदु पर, मुख्य न्यायाधीश अवस्थी ने श्री कामत से अनुच्छेद 25 को पूर्ण रूप से प्रस्तुत करने के बाद कहा कि क्या राज्य सरकार की ओर से पांच फरवरी को जारी सरकारी आदेश संविधान के अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है और आवेदन को ध्यान में रखे बिना पारित किया गया है। इसके जवाब में श्री कामत ने कहा कि सरकारी आदेश सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, स्वास्थ्य आदि जैसे प्रतिबंधों को लेकर है।
इस बिंदु पर मुख्य न्यायाधीश अवस्थी ने फिर पूछा, “सार्वजनिक व्यवस्था क्या है? हम यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या इस सरकारी आदेश से राज्य सरकार ने अनुच्छेद 25 को प्रतिबंधित किया है या नहीं।”
इसके जवाब में वरिष्ठ अधिवक्ता कामत ने कहा, “यह सुनिश्चित करना राज्य का सकारात्मक कर्तव्य है कि लोग अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग कर सकें। अगर समाज के कुछ वर्ग नहीं चाहते हैं कि अन्य वर्गों के मौलिक अधिकारों का हनन हो, तो उस वर्ग के मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित करने का कोई आधार नहीं है।” उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने कॉलेजों में प्रवेश के समय निर्धारित ड्रेस के समान रंग के हिजाब पहने हुए हैं।
सुनवाई के दौरान श्री कामत ने केरल, बॉम्बे और मद्रास उच्च न्यायालयों के फैसले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि कोई आधिकारिक घोषणा नहीं है कि हिजाब पहनना इस्लाम का आवश्यक प्रथा नहीं है। इस पर न्यायमूर्ति दीक्षित ने श्री कामत से पूछा कि क्या आवश्यक धार्मिक प्रथाएं राज्य सरकार के विनियमन के अधीन हैं। इसके जवाब में श्री कामत ने कहा, “अनुच्छेद 25 (2) राज्य को धार्मिक अभ्यास, आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या अन्य धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों को विनियमित करने की अनुमति देता है, मुख्य धार्मिक प्रथा को नहीं … एक मुख्य धार्मिक प्रथा को राज्य द्वारा तभी नियंत्रित किया जा सकता है, जब उससे सार्वजनिक व्यवस्था को ठेस पहुंचाती हो।”
उन्होंने आगे कॉलेज विकास समिति के अधिकार पर सवाल उठाया और कहा, “सार्वजनिक आदेश एक कार्यकारी कार्य है, विधायक समिति का नहीं … मैं यह तो समझ सकता हूं कि राज्य सरकार यह कर रही है, लेकिन क्या कोई समिति इसे कर सकती है।”
इस पर मुख्य न्यायाधीश अवस्थी ने कहा कि सरकारी आदेश केवल सीडीसी द्वारा निर्धारित की जाने वाली वर्दी के बारे में बात करता है। वहीं श्री कामत ने कहा कि सरकारी आदेश में यह भी कहा गया है कि हिजाब इस्लाम के लिए जरूरी नहीं है। उन्होंने तर्क देते हुए कहा, “आज ऐसा कौन सी स्थिति है, जो राज्य सरकार को मुझे धार्मिक स्वतंत्रता का प्रयोग करने की अनुमति देने से रोकती है? वे कहते हैं कि सार्वजनिक व्यवस्था।”
इस पर श्री अवस्थी ने कहा, “आप मान रहे हैं कि … राज्य सरकार ने अभी तक कोई स्टैंड नहीं लिया है।” इसके जवाब में श्री कामत ने कहा, “अगर ऐसा है, तो वे इसे सार्वजनिक व्यवस्था तक सीमित नहीं रख सकते। मुझे खुशी होगी अगर राज्य सरकार कहती है कि कोई सार्वजनिक व्यवस्था का मुद्दा नहीं है।”
उल्लेखनीय है कि इससे पहले कोर्ट ने 10 फरवरी को एक अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसमें मामले का फैसला होने तक छात्रों द्वारा हिजाब, भगवा शॉल (भगवा) पहनने या कर्नाटक के कॉलेजों की कक्षाओं में भाग लेने के दौरान किसी भी धार्मिक झंडे के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई थी।
सुनवाई मंगलवार अपराह्न 2:30 बजे तक टाल दी गयी है।
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