मुंबईः स्वर कोकिला लता मंगेशकर अब हमारे बीच नहीं है, लेकिन आज भी उन्हें उनके चाहने वाले याद करते हैं। आज भी लोग इस कदर महसूस करते हैं, जैसे लताता दीदी उनके पास मौजूद हैं। भारत रत्न लता दीदी आवाज ही नहीं शख्सियत का जादू सरहद पार भी बोल रहा है। पाकिस्तानी सूफी सिंगर आबिदा परवीन के नाम से कौन वाकिफ नहीं है? इस पाकिस्तानी सिंगर ने लता दीदी को अपने अंदाज में याद किया। आबिदा ने कहा कि मैं तो उनके कदमों में गिर पड़ी थी। उन्हें देखने के बाद मेरी आंखों से आंसू नहीं रुक रहे थे। उस आत्मा को तो खुद खुदा ने हमारे लिए बनाया था। खुदा का यह तोहफा दीदी ने दुनिया में तकसीम (बांट) कर दिया।
आबिदा के साथ ही पाकिस्तान की कई मशहूर हस्तियों ने लता दीदी को याद किया। चाहे वह सियासतदान हो, व्यापारी हों या फिर फिल्मों से जुड़े लोग हों। हर पाकिस्तानी के लिए लता दीदी उतनी ही अहम थीं, जितनी हिंदुस्तानियों के लिए। यह शब्द पाकिस्तान के मशहूर अभिनेता हुमायूं सईद ने कहे हैं। आतिफ असलम और माहिरा खान जैसी सेलिब्रिटीज ने भी लता दीदी को दिल से याद किया है।
सूफी सिंगर आबिदा परवीन ने लता दीदी को याद किया तो बरबस आंखें छलक उठीं। बहुत रूंधे गले से वह अपने जज्बात जाहिर कर पाईं।
एक खरिया चैनल को दिए गए साक्षात्कार में आबिदा बमुश्किल ही बात कर पाईं। उनकी आंखें छलक रहीं थीं। उन्होंने कहा, “लताजी की आत्मा को तो खुद खुदा ने सिलेक्ट किया था। उनके गीत और उनकी आवाज जैसी दूसरी कोई हो ही नहीं सकती। उनकी आवाज खुदा का तोहफा था, उन्होंने उसे पूरी दुनिया के साथ शेयर किया। क्या नहीं था उनके पास? इसके बावजूद इतनी सादगी और इतना अपनापन? वो खुद को कुछ नहीं मानतीं थीं।“
आबिदा ने बताया कि एक बार किसी ने लता दीदी से पूछा, क्या आपको अपने गीत पसंद हैं? दीदी ने जवाब दिया, “अगर मुझे एक और जीवन मिले तो मैं इन्हीं गीतों को फिर गाना चाहूंगी ताकि उनमें जो कमियां रह गई हैं, उन्हें दूर कर सकूं। उनके जैसे महान लोग कभी अपने काम से संतुष्ट नहीं होते। उनका हर गीत जैसे एक स्कूल का सबक है, हम जैसे लोग उनसे सीखते हैं।“
उन्होंने बताया कि एक बार मैं रिकॉर्डिंग के सिलसिले में भारत आईं थीं। मुंबई में जिस स्टूडियो में मेरी रिकॉर्डिंग चल रही थी, वहीं दीदी भी आईं थीं। अचानक किसी ने आबिदा परवीन को बताया कि लता जी इसी स्टूडियो में मौजूद हैं। फिर क्या था। आबिदा ने कहा, “मैंने अपनी रिकॉर्डिंग ही छोड़ दी। भागी-भागी लताजी के पास पहुंची और बेसाख्ता उनके कदमों में गिर पड़ी। मेरी आंखों से आंसू बरस रहे थे, मैंने खुद को रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन आंखों की मनमानी नहीं थमी। दीदी ने उठाकर मुझे गले से लगा लिया। वह तो आत्माओं को जीत लेने वाली शख्सियत थीं। इस दुनिया और इसके बाहर भी उनके चाहने वाले होंगे।“