प्रखर प्रहरी, नई दिल्लीः सांच को आंच नहीं! यदि कोई व्यवसायी, जो ईमानदारीपूर्वक माल या सेवा का लेन-देन कर रहा है और वह नकली आईटीसी चेन पर पकड़ा जाता है, तो उसे डरना नहीं बल्कि उसका कानूनी रूप से सामना करना चाहिए। यह कहना है इनडाइरेक्ट टैक्स कंसलटेंट आशुतोष शर्म का, जो प्रखर प्रहरी के साथ एक खास बातचीत में इस विषय से जुड़ी खास जानकारी दे रहे थे।
उन्होंने बताया कि कई व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को नोटिस मिल रहे हैं कि उन्होंने जिन विक्रेताओं से सामान खरीदा था या सेवाएं प्राप्त की थीं, वे नकली और गैर-मौजूद हैं। इन नोटिसों में व्यवसायों पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि उन्होंने -ऐसे आपूर्तिकर्ताओं के साथ किसी भी लेनदेन में प्रवेश करने से पहले उक्त विक्रेताओं की वास्तविकता और पहचान को सत्यापित नहीं किया था। कुछ मामलों में आपूर्तिकर्ता का पंजीकरण पूर्वव्यापी प्रभाव से रद्द कर दिया गया है तथा जीएसटी विभाग करदाताओं से अपने आईटीसी को रिवर्स करने के लिए कह रहा ।
आशुतोष शर्मा के अनुसार, आईटीसी के रिवर्सल की मांग करने वाली इस तरह की नोटिस मिलने पर एक वास्तविक करदाता को दुख होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उसने एक वैध कर चालान/अन्य प्रासंगिक दस्तावेजों के तहत माल की खरीद/सेवाएं प्राप्त की थी और उक्त विक्रेताओं को भुगतान किया था। इसके अलावा, आपूर्तिकर्ताओं की पहचान सरकारी पोर्टल पर उपलब्ध थी, जो लेनदेन के समय उनके पंजीकरण को वैध एवं मौजूदा के रूप में दर्शा रहा था। इससे अधिक, करदाता से किसी अन्य सत्यापन की अपेक्षा नहीं की जाती है। यदि विक्रेता बाद में नकली पाए जाते हैं, तो करदाता को दंडित नहीं किया जाना चाहिए।
उन्होंने यह भी बताया कि करदाताओं को राहत प्रदान करने के एक मामले में, कलकत्ता हाईकोर्ट ने मैसर्स एलजीडब्ल्यू इंडस्ट्रीज लिमिटेड एवं अन्य, मैसर्स अनमोल इंडस्ट्रीज एवं अन्य आदि के मामलों में एक समेकन निर्णय में स्थिति का संज्ञान लिया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि विभाग को प्रासंगिक दस्तावेजों के माध्यम से लेनदेन की वास्तविकता पर विचार करने की जरूरत है तथा यह देखना चाहिए कि क्या आपूर्तिकर्ताओं को जीएसटी के साथ भुगतान किया गया था।
इसके साथ ही, जीएसटी विभाग को यह जांचने की जरूरत है कि क्या यह आपूर्तिकर्ताओं के पंजीकरण को रद्द करने से पहले या बाद में किया गया था और क्या आपूर्तिकर्ता की पहचान का सत्यापन संभव सीमा तक किया गया है। साथ ही, विभाग को करदाताओं को अपने दावे को सही ठहराने के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करने की आवश्यकता है। यदि यह पाया जाता है कि वैध सहायक दस्तावेजों के साथ सभी क्रय एवं लेनदेन वास्तविक हैं, तो इन प्राप्तकर्ताओं को इनपुट टैक्स क्रेडिट के लाभ से इनकार नहीं किया जा सकता है।
वास्तव में, यह उन करदाताओं के लिए यह एक स्वागत योग्य राहत है, जो विभाग की कार्यवाही के बाद खुद को असहाय महसूस करते है। यह निर्णय यदि जीएसटी विभाग के अधिकारियों के समक्ष उद्धृत किया जाता है तो इसका कुछ प्रेरक प्रभाव हो सकता है। हालांकि इसके बाद भी, करदाताओं को सभी आधारों के साथ कानूनी उत्तर का उचित प्रारूपण सुनिश्चित करना चाहिए कि क्यों न उन्हें आईटीसी से वंचित किया जाए। इस साथ ही, इस तरह की आपूर्ति में पूर्ववर्ती विधि शासन तथा अन्य न्यायालयों के प्रासंगिक मामले के कानूनों को पर्याप्त रूप से उजागर किया जाना चाहिए। यह भी आवश्यक है कि करदाता के पास अपनी की गई खरीदारी की वास्तविकता को साबित करने के लिए सभी दस्तावेज तैयार हों। वे दस्तावेज जो माल के मामले में दावा स्थापित करने में उनकी मदद करेंगे, उनमें डिलीवरी चालान, माल रसीद नोट, टोल रसीदें, प्राप्त होने वाले माल की सीसीटीवी फुटेज, वैध ई-वे बिल, खरीद ऑर्डर आदि शामिल हैं। इसके अलावा, ऐसे माल की प्राप्ति और खपत/बिक्री को दर्शाने वाले स्टॉक रजिस्टर का भी दावे के औचित्य में कुछ प्रभाव पड़ेगा। सेवाओं की प्राप्ति के मामले में, उचित अनुबंध समझौता, ईमेल एक्सचेंज, सेवाओं की प्राप्ति का प्रमाण आदि दस्तावेज है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि डॉक्यूमेंटेशन आईटीसी दावे के औचित्य में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आशुतोष शर्मा कहते हैं कि यदि प्रथमदृष्टया निर्णय स्तर पर मामला सुलझता नहीं है तो भी करदाताओं को निराश नहीं होना चाहिए। प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर, वे अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील या हाईकोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर करने पर विचार कर सकते हैं। बेशक, यह निर्णय संबद्ध राशि, मामले की मजबूती, दस्तावेजों की उपलब्धता, दावे की वैधता आदि के आधार पर लिया जाना चाहिए।