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अंतरराष्ट्रीय

दुनिया के 59 देशों में पहुंचा ओमिक्रॉन, डब्ल्यूएचओ ने बताया, क्यों है इससे खतरा

दिल्लीः पूरी दुनिया कोरोना वायरस के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन को लेकर चिंतित है। यह काफी तेजी से पैर पसार रहा है। इस वैरिएंट का पहला मामला साउथ अफ्रीका में 24 नवंबर को सामने आया था। तब से यह वैरिएंट भारत समेत दुनिया के 59 देशों में फैल चुका है। ओमिक्रॉन को लेकर डब्ल्यूएसओ (WHO) यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नई चेतावनी जारी की है। डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि यदि इस वैरिएंट के खिलाफ लापरवाही बरती गई तो यह जानलेवा साबित हो सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी साप्ताहिक महामारी विज्ञान रिपोर्ट में कहा है कि ओमिक्रॉन दुनिया के 55 से अधिक देशों में पहुंच चुका है और इसके तेजी से और भी देशों में फैलने की आशंका है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक ओमिक्रॉन के मामले बढ़ने से पूरी दुनिया में इसके मरीजों की हॉस्पिटलाइजेशन की दर भी बढ़ने की आशंका है। डब्ल्यूएचओ  का कहना है कि शुरुआती आंकड़ों में भले ही मौत का खतरा कम दिख रहा है, लेकिन ओमिक्रॉन के ज्यादा तेजी से फैलने से दुनियाभर में ही हॉस्पिटलाइजेशन रेट भी बढ़ेगा।

आपको बता दें कि 24 नवंबर को साउथ अफ्रीका में सामने आने के बाद डब्ल्यूएचओ  ने 26 नवंबर को ओमिक्रॉन को वैरिएंट ऑफ कंसर्न (VoC) घोषित करते हुए पूरी दुनिया को इस नए वैरिएंट से अलर्ट रहने को कहा था।

डब्ल्यूएचओ  ने वैश्विक समुदाय को आगाह करते हुए कहा है कि इस वैरिएंट को लेकर किसी भी तरह की लापरवाही से अब जान जाने का खतरा है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक जिन लोगों की इस वैरिएंट से मौत नहीं भी होगी, उन्हें भी लंबे समय तक कोविड से जूझना पड़ सकता है, या कोविड के बाद होने वाली समस्याओं से दो-चार होना पड़ सकता है।

ओमिक्रॉन वैरिएंट के संक्रमितों में कोविड से उबरने के बाद भी इसकी वजह से ऐसी बीमारी होती है, जिसके लक्षण तो माइल्ड रहते हैं, लेकिन इसमें इंसान को कमजोर करने की क्षमता होती है। अभी इस बीमारी को लेकर स्टडी शुरुआती चरण में ही है।

डब्ल्यूएचओ का कहना है कि साउथ अफ्रीका से सामने आ रहे शुरुआती डेटा से पता चलता है कि ओमिक्रॉन से री-इंफेक्शन का खतरा ज्यादा है, हालांकि इस पर अभी पूरी रिपोर्ट आनी बाकी है। ओमिक्रॉन के अब तक के केसों की स्टडी से पता चलता है कि डेल्टा की तुलना में इससे बीमार पड़ने वालों में गंभीर लक्षण कम हैं। हालांकि, इसे भी अभी निश्चित तौर पर कह पाना मुश्किल है। पूरी स्टडी सामने आने में कुछ हफ्ते और लगेंगे।

डब्ल्यूएचओ ने कहा, ”शुरुआती आकलन दिखाते हैं कि ओमिक्रॉन में मौजूद म्यूटेशन की वजह से एंटीबॉडी बनने की गतिविधि कम हो सकती है, जिसकी वजह से नैचुरल इम्यूनिटी से होने वाली सुरक्षा घट सकती है।”

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक ओमिक्रॉन के स्पाइक प्रोटीन में 30 से अधिक म्यूटेशन हो चुके हैं। ऐसे में इस पर मौजूदा वैक्सीन के बेअसर होने की आशंका है। डब्ल्यूएचओ ने ओमिक्रॉन पर वैक्सीन के असर को लेकर कहा कि इस बात को जानने के लिए और डेटा के आंकलन की जरूरत है कि क्या ओमिक्रॉन वैरिएंट के म्यूटेशन की वजह से वैक्सीन से मिलने वाली इम्यूनिटी घट सकती है?

विश्व स्वास्थ्य  संगठन का कहना है कि ओमिक्रॉन के खिलाफ मौजूदा वैक्सीन के प्रभावों का भी आंकलन किए जाने की जरूरत है। इसी के आधार पर ये भी तय होगा कि क्या ओमिक्रॉन से लड़ने के लिए किसी अतिरिक्त वैक्सीन डोज की जरूरत पड़ेगी।

आपको बता दें कि दक्षिण अफ्रीका में ओमिक्रॉन के मामलें तेजी से बढ़ रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका में हर दिसंबर के पहले हफ्ते में डेली केसेज का एवरेज 15 हजार से अधिक रहा है, जो  यह पिछले हफ्ते से करीब 73 फीसदी ज्यादा है। दक्षिण अफ्रीका में ओमिक्रॉन का खतरा बच्चों में भी बढ़ा है। वहां ओमिक्रॉन सामने आने के बाद 5 साल के कम उम्र के बच्चों की हॉस्पिटलाइजेशन की दर बढ़ी है।

डब्ल्यूएचओ  के मुताबिक, न केवल साउथ अफ्रीका, बल्कि इस्वातिनी, जिम्बाब्वे, मोजाम्बिक, नामीबिया और लेसोथो जैसे अफ्रीका देशों में भी ओमिक्रॉन के मामले बढ़ रहे हैं।

डब्ल्यूएचओ ने क्या दी है सलाह

 

  • सभी देशों की सरकारों से ज्यादा जोखिम वाली आबादी में वैक्सीनेशन की प्रक्रिया तेज करें
  • ओमिक्रॉन को फैलने से रोकने के प्रयासों के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को सख्ती से लागू करना चाहिए, जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क और सैनिटाइजर का प्रयोग करना शामिल है।
  • सभी सरकारों को सर्विलांस, टेस्टिंग और सीक्वेंसिंग को बढ़ाना चाहिए और सैंपल्स को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ साझा करना चाहिए।
  • लोग भीड़-भाड़ वाली जगहों से बचें, मास्क पहनें, हाथ को साबुन से धोएं, और अगर संभव हो तो हवादार जगहों में ही लोगों से मुलाकात करें या घर में भी ऐसी जगहों पर रहें जहां वेंटीलेशन अच्छा हो।
  • लोग जितना जल्दी हो वैक्सीनेशन अवश्य कराएं।

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक ओमिक्रॉन से जुड़े नए डेटा हर दिन सामने आ रहे हैं, लेकिन वैज्ञानिकों को स्टडी पूरी करने और एनालिसिस के लिए कुछ और हफ्तों का समय चाहिए।

Shobha Ojha

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