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पद्मश्री से सम्मानित प्रसिद्ध शिक्षाविद नंद किशोर प्रुस्टी का निधन, 104 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

दिल्लीः पद्मश्री से सम्मानित प्रसिद्धि शिक्षाविद नंद किशोर प्रुस्टी का निधन मंगलवार को यहां निधन हो गया। नंदा सर के नाम से प्रसिद्ध प्रुस्टी ने अपराह्न 1 बजकर 30 मिनट पर भुवनेश्वर के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह 104 वर्ष के थे। पिछले महीने ही यानी नौ नंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था।

नंदा प्रुस्टी के निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित विभिन्न दलों के नेताओं शोक जताया है।

कोविंद ने ट्विटर अपने शोक संदेश में कहा, “श्री नंदा प्रुस्टी के निधन के बारे में जानकर दुख हुआ। ‘नंदा सर’ ने लगन से शिक्षा का आनंद फैलाया। पिछले महीने जब मैंने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था, तब मुझे आशीर्वाद देने का उनका भाव मेरी याद में बना रहेगा। उनकी समृद्ध विरासत कायम रहे! उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना।“

वेंकैया ने अपने शोक संदेश में कहा, “शिक्षा के लिए समर्पित वयोवृद्ध समाजसेवी श्री नंदा प्रुस्टी जी का निधन समाज की क्षति है। आपने दशकों तक प्रौढ़ और बच्चों को निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए अथक, अनुकरणीय प्रयास किया। शोक की इस घड़ी में उनके परिजनों और विद्यार्थियों के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त करता हूं।“

वहीं, मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए ट्वीट किया, “नंद किशोर प्रुस्टी जी के निधन से आहत हूं। ओडिशा में शिक्षा की खुशियों को फैलाने के उनके प्रयासों के कारण बहुत सम्मानित नंदा सर को पीढ़ियों तक याद किया जाएगा। उन्होंने कुछ हफ्ते पहले पद्म पुरस्कार समारोह में देश का ध्यान और स्नेह आकर्षित किया था।“

शाह ने श्री प्रुस्टी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए लिखा, “नन्द किशोर प्रुस्टी जी के निधन से गहरा दुख हुआ। उन्हें हाल ही में ओडिशा में बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करने में उनके अग्रणी योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। राष्ट्र इस महान आत्मा को उनकी निस्वार्थ सेवा के लिए हमेशा याद रखेगा।“

आपको बता दें कि नंदा प्रुस्टी ओडिशा के जाजपुर जिले के कंतिरा गांव के रहने वाले थे। वह रोज सुबह अपने आसपास के बच्चों को पढ़ाते थे। वह एक गैर पारंपरिक स्कूल चलाते थे, जिसे ओडिशा में चटशाली परंपरा के नाम से जाना जाता है। उन्होंने 70 साल से ज्यादा समय को बिना एक पैसा लिए बच्चों और बुजुर्गों को शिक्षित करने का काम किया।

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