संवाददाताः संतोष कुमार दुबे
दिल्लीः देश में आजादी के बाद 75 सालों में जितना विकास होना चाहिए था, उतना नहीं हुआ, लेकिन कोई बात नहीं हमें अपने देश को आगे लेकर जाना है और सही रास्ते पर चलेंगे, तो हम जरूर आगे बढ़ेंगे। यह कहना है आरएसएस ((RSS) यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का।
डॉक्टर भागवत ने नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में संत ईश्वर फाउंडेशन तथा राष्ट्रीय सेवा भारती द्वारा आयोजित संत ईश्वर सेवा सम्मान 2021 के मौके पर लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया के सारे देश मिलाकर अब तक जितने महापुरुष हुए होंगे उतने हमारे देश में पिछले 200 वर्षों में ही हो गए। एक-एक का जीवन सर्वांगीण जीवन की राह उजागर करता है।
आरएसएस प्रमुख जब लोगों को संबोधित करने के लिए उठे, तो पूरा हॉल तालियों का गड़गड़ाहट और जन श्रीराम के नारे से गूंज उठा। इस पर डॉक्टर भागवत ने लोगों को टोकते हुए कहा कि यह समारोह निःस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करने वाले लोगों को सम्मानित करने के लिए आयोजित किया गया है। जहां नारा लगानी चाहिए, वहां नारा लगाइएगा। वैसे जय श्रीराम बोलने में कोई बुराई नहीं है। उन्होंने कहा कि हम जय श्रीराम का नारा जोर से लगाते हैं, लेकिन हमें उनके जैसा बनना भी चाहिए। हम सोचते हैं कि वे तो भगवान थे। भरत जैसे भाई पर प्रेम करना तो भगवान ही कर सकते हैं, हम नहीं कर सकते। ऐसी सोच सामान्य आदमी की रहती है। इसलिए वे उस राह पर नहीं चल पाते। अपना स्वार्थ छोड़कर लोगों की भलाई करने का काम कठिन होता है।
उन्होंने कहा, “हमारे समाज में बहुत विविधता है। कई देवी-देवता हैं। सभी को एक साथ आगे बढ़ाना है, जो वर्षों से चला आ रहा है। हमारा धर्म हिंदू है। इसे दुनिया को देने की जरूरत है। हमें धर्म परिवर्तन कराने की जरूरत नहीं है।”
डॉक्टर भागवत ने कहा कि दुनियाभर में अब तक जितने महापुरुष हुए होंगे, उतने हमारे देश में पिछले 200 वर्षों में ही हो गए। एक-एक का जीवन सर्वांगीण जीवन की राह उजागर करता है। उन्होंने कहा कि सेवा मनुष्यता का स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। यह सिर्फ मानव में होता है, जानवरो में नहीं होता है। मानव बुद्धि और कबुद्धि के जाल में उलझा रहता है। आहार और व्यवहार मानव जीवन के अहम अंग है। अहंकार पतन की ओर ले जाती है। धर्म बिना मनुष्य पशु के समान है। धर्म का मतलब मानव धर्म तथा हिंदू धर्म होता है।
उन्होंने अपने संबोधन के दौरान लोगों से समझे सत्य तथा धर्म को समझने की अपील की और कहा कि सत्य और धर्म को समझना बहुत जरुरी है। सत्य में सभी सुख है। भौतिक सुख में कई प्रकार के कष्ट है। आध्यात्म का मतलब ज्ञान, बुद्धि और अनुसंधान है। सत्य के कई प्रकार है।
संघ प्रमुख ने कहा कि केवल सत्य के साथ करुणा भाव जरुरी है ..हालाँकि पश्चिम की सोच अलग है। संयम, सदाचार, संवेदना, करुणा ..ये सत्य व धर्म के अंग है। मजबूरी में भी कई सेवा कार्य हो जाते है। उन्होंने कहा कि दीपों के कई रूप हैं। कुछ दीपों में तेल की ज़रूरत नहीं होती। जिसने रत्नदीप महत्वपूर्ण है। ऐसे समाज के रत्न अपने कर्मों से समाज को प्रज्वलित करते रहते हैं। समाज को जगाते रहते हैं। सेवा बड़ी या छोटी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। शुद्ध अन्तकरण से किया गया निष्काम कार्य सेवा है। सेवा का क्षेत्र असीमित है। अभाव को दूर करना, दुःख को दूर करना, पर्यावरण को शुद्ध करना, ज़रूरत मंदो की मदद ..। 130 करोड़ वाले देश है। उन्होंने डायनासोर का उदाहरण देते हुए कहा कि डायनासोर लुप्त हो गया, कई सभ्यताएं मिट गईं, लेकिन कुछ बात तो है ऐसी…कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। पूरे भारत का वर्णन महाभारत तथा रामायण में है। संवेदना भूमि तथा भूमि पुत्रों के लिए है। सभी भूमि पुत्र है। सबसे ऊपर उठकर। एक अनूठे भारत के लिए सबको एकजुट होकर कार्य करना जरुरी है।
उन्होंने युवा पीढ़ी का उल्लेख करते हुए कहा कि युवा पीढ़ी को लेकर चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। युवा पीढ़ी सक्षम है, बस उसे सही मार्गदर्शन की ज़रूरत है। उन्होंने कहा,“आज लोग इस बात की चिंता करते दिखाई देते हैं कि भारत की नई पीढ़ी का क्या होगा, वह क्या करेगी। उन्हें इसकी चिंता करने की जगह खुद एक अच्छा और आदर्श आचरण उनके सामने रखकर उन्हें प्रेरित करना चाहिए। उस आचरण को देखकर वे खुद-ब-खुद वैसे ही बनते जाएंगे। अलग से उन्हें कुछ सिखाने की कोई ज़रूरत ही नहीं है। वे स्वयं काफी सक्षम हैं।”
संत ईश्वर सम्मान समिति महासचिव वृंदा ने संत ईश्वर सम्मान की जानकारी देते हुए बताया कि वर्ष 2015 से प्रारंभ होकर में संत ईश्वर सम्मान द्वारा प्रति वर्ष ऐसे संगठनों एवं व्यक्तियों को सम्मानित किया जाता है, जो समाज की नजरों से दूर निस्वार्थ भाव से समाजसेवा का कार्य कर रहे हैं। यह सम्मान व्यक्तिगत व संस्थागत रूप में मुख्यतः चार क्षेत्र-जनजातीय कल्याण, ग्रामीण विकास, महिला-बाल कल्याण एवं विशेष योगदान (कला, साहित्य, पर्यावरण,स्वास्थ्य और शिक्षा) में तीन श्रेणियों एक विशेष सेवा सम्मान, चार विशिष्ट सेवा सम्मान एवं 12 सेवा सम्मान में दिया जाता है।
इस मौके पर जनजाति क्षेत्र- सुकुमार रॉय चौधर, शांताराम बुदना सिद्धि, ग्रामीण क्षेत्र में-डॉ. निरुपमा सुनीन देश पांडे, आशीष कुमार, महिला एवं बाल विकास क्षेत्र- साध्वी कमलेश भारती, रुरल हेल्थ और हम, विशेष योगदान क्षेत्र- विवेकानंद सेवा मंडल तथा आत्म निर्भर -एक चैलेंज सहित कई अन्य समाज सेवियों को उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए सम्मानित किया गया।
इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, डॉ. जितेंद्र सिंह, अश्विनी चौबे, मीनाक्षी लेखी सहित संघ, समाज सेवा और राजनीति इसे जुड़े कई गणमान्य लोग उपस्थि थे। कार्यक्रम का आयोजन सन्त ईश्वर फाउंडेशन ने राष्ट्रीय सेवा भारती संस्था के साथ मिलकर किया। इस पुरस्कार की शुरुआत 2015 में कई गयी थी। इस पुरस्कार के तहत निःस्वार्थ भाव से सेवा करने वाले लोगों को चार श्रेणियों जनजातीय कल्याण, ग्रामीण विकास, महिला एवं बाल-कल्याण तथा विशेष योगदान में दिया जाता है। विशेष योगदान के तहत कला, साहित्य, पर्यावरण, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले लोगों को सम्मानित किया जाता है। इसके तहत संस्थाओं को पांच लाख और निजी व्यक्तियों को एक लाख रुपये की धनराशि, शॉल, सर्टिफिकेट और ट्रॉफी दी जाती है।