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लोक आस्था का महापर्व छठः न मुहूर्त, न पुजारी, न कोई भेदभाव, जानें छठ से जुड़ी रोचक बातें, जो बनाती हैं इसे सबसे अलग और विशेष - Prakhar Prahari
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लोक आस्था का महापर्व छठः न मुहूर्त, न पुजारी, न कोई भेदभाव, जानें छठ से जुड़ी रोचक बातें, जो बनाती हैं इसे सबसे अलग और विशेष

दिल्लीः इस समय पूरा देश लोक आस्था के महापर्व छठ की खुमारी में डूबा है। चार दिनों तक चलने वाला यह महापर्व आठ नंबर को नहाय-खाए से शुरू हुआ। आज व्रती डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देंगे और 11 नवंबर यानी गुरुवार को उदय होते सूर्य को अर्घ्य अर्पित के साथ इसका समापन होगा। हिंदू धर्म के सबसे पुराने त्योहारों में से एक छठ महापर्व कई मायने में अनूठा है। आइए, लोक आस्था के महापर्व से जुड़ी कुछ रोचक बातें जानते हैं…

  • कार्तिक मास के छठे दिन मनाया जाता है।
  • उषा और प्रत्यूषा सूर्य देव की दो पत्नियां हैं और इन्हीं को छठी मइया कहा जाता है।
  • इसमें किसी मंत्र और पुजारी की जरूरत नहीं होती है।
  • इसमें किसी ग्रह, नक्षत्र या मुहूर्त की गणना नहीं होती है। इसमें सिर्फ और सिर्फ साधना होती है।
  • व्रती 36 घंटे तक उपवास रखते हैं और उदय होते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद प्रसाद ग्रहण को व्रत को खोलते हैं।
  • इसमें ऊंच-नीच और जाति का भेदभाव नहीं होता है।

 

क्यों मनायी जाती है छठ?

यह पूजा सूर्य देवता और छठी मइया  (उषा और प्रत्यूषा) को समर्पित है। इस त्यौहार के जरिये लोग सूर्य देवता, देवी मां उषा (सुबह की पहली किरण) और प्रत्युषा (शाम की आखिरी किरण) के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं। ऐसी मान्यता है कि सूरज ऊर्जा का पहला स्रोत है जिसके जरिये पृथ्वी पर जीवन संभव हो पाया है।

छठ पूजा 2021:  यह चार दिवसीय छठ महापर्व 8 नवंबर को नहाय-खाय से शुरू हुआ और 11 नवंबर, 2021 को समाप्त होगा। यह महापर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों द्वारा मनाया जाता है। चार दिवसीय त्योहार नहाय-खाय, खरना, छठ पूजा और सूर्य देव को अ‌र्घ्य देना है।

छठ पूजा से जुड़ी संस्कृति और परम्पराएं 

छठ महापर्व एक ऐसा त्योहार है जिसके नियमों को बड़ी सख्ती के साथ पालन किया जाता है। खुद पर संयम तथा परहेज रखते हुये व्रती सबसे पहले अपने परिवार से अलग होते है ताकि वह अपनी शुद्धता और पवित्रता को बरकरार रख सके। इस त्योहार में बिना नमक, प्याज, लहसुन आदि के  प्रसाद और आहार (श्रद्धालुओं के लिए) बनाए जाते हैं। इस नियम को श्रद्धालुओं को निरंतर 4 दिन तक पालन करना पड़ता है।

छठ पूजा का पहला दिनः नहाए- खाय/अरवा अरवाइन

छठ महापर्व के प्रथम दिन व्रती गंगा नदी में स्नान करते हैं या फिर अपने आस पास मौजूद गंगा की किसी सहायक नदी में स्नान करते हैं। इस दिन व्रती सिर्फ एक बार ही खाना खाते हैं,  जिसे कड्डू-भात कहा जाता है। यह खाना कांसे या मिट्टी के बर्तन में पकाया जाता है। खाना पकाने के लिए आम की लकड़ी और मिट्टी के चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता है।

छठ पूजा का दूसरा दिनः लोहंडा और खरना

छठ महापर्व के दूसरे दिन व्रती पूरे दिन के लिए उपवास रखते है और शाम को रसियो-खीर, पूरी और फलों से सूर्य देवता की पूजा के बाद ही भोजन ग्रहण करते है। इसके बाद अगले 36 घंटों के लिए व्रती निर्जला व्रत रखते  है।

छठ पूजा का तीसरा दिनः सांझ अर्घ्य

इस दिन व्रती नदी किनारे जाकर सूर्य को संध्या अर्घ्य देते हैं। महिलाएं इसके बाद पीले रंग की साड़ी पहनती हैं। इस दिन रात में, भक्त छठी मैया के लोक गीत गाते हैं और पांच गन्नों के नीचे मिट्टी के दीये जलाकर कोसी (कोसिया भराई) भरते हैं।  ये पांच गन्ने पंचतत्व (भूमि, वायु, जल, अग्नि और आकाश) का प्रतिनिधित्व करते हैं।

छठ पूजा का चौथा दिन

यह छठ महापर्व का अंतिम दिन होता है। इस दिन व्रती अपने परिवार और दोस्तों के साथ नदी किनारे सूर्य देवता को बिहानिया अर्घ्य (प्रातः काल की पूजा) देते हैं। अंतिम चरण में व्रती छठ पूजा के प्रसाद से अपना व्रत तोड़ते  है।

छठ पूजा के विभिन्न चरण

छठ महापर्व 6 पवित्र चरणों में  पूरा होता है। पहला – शरीर और आत्मा की शुद्धता; दूसरा -अर्घ्य (सांझ और बिहानिया) के दौरान नदी के भीतर खड़ा होना जिसका मतलब है कि हमारा शरीर आधा पानी में और आधा पानी के बाहर होता है ताकि शरीर की सुषुम्ना को जगा सके। तीसरा – इस चरण में रेटिना और आँखों की नसों के द्वारा ब्रह्मांडीय सौर ऊर्जा को पीनियल, पिट्यूटरी और हाइपोथेलेमस ग्रंथियों (जिन्हें त्रिवेणी परिसर के रूप में जाना जाता है) में प्रविष्ट करवाया जाता है। चौथा -इस चरण में हमारे शरीर की त्रिवेणी परिसर सक्रिय हो जाती है।

पांचवा – त्रिवेणी परिसर के सक्रिय होने के बाद रीढ़ की हड्डी तरंगित हो जाती है और भक्तो का शरीर लौकिक उर्जा से भर जाती है और कुंडलियां जागृत हो जाती है। छठा – यह शरीर और आत्मा की शुद्धि का अंतिम चरण है जिसमें शरीर रिसाइकिल होता है और समूचे ब्रह्माण्ड में अपनी ऊर्जा का प्रसार करता है।

क्यों मनाया जाता है छठ महापर्वः

रामायण और महाभारत दोनों में ही महाग्रंथों में छठ महापर्व का उल्लेख है। रामायण छठ पूजा सीता (राम के अयोध्याय लौटने पर) द्वारा और महाभारत में द्रोपदी के द्वारा मनाए जाने का वर्णन है। ऐसी भी लोक मान्यता है कि यह पूजा सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण द्वारा की गयी थी।

सामान्यतः व्रती, जिन्हें पर्वतिन (संस्कृत शब्द पर्व यानी अनुष्ठान या त्योहार) कहा जाता है, महिलाएं होती है, लेकिन अब पुरुष भी बड़े पैमाने पर इस त्योहार में हिस्सा लेते देखे जा रहे हैं। श्रद्धालु अपने परिजनों के कल्याण और समृद्धि के लिए यह पूजा करते हैं। इस पूजा की धार्मिक मान्यता कितनी प्रसिद्ध है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस त्योहार के दौरान भारत में श्रद्धालुओं के लिए विशेष ट्रेन चलायी जाती है।

छठ महापर्व सभी बिहारी और प्रवासी बिहारियों द्वारा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, मॉरिशस, फिजी, दक्षिण अफ्रीका, त्रिनदाद और टोबैगो, गयाना, सुरीनाम, जमैका, अमेरिका, ब्रिटेन, आयरर्लैंड, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, मलेशिया, मकाऊ, जापान और इंडोनेशिया सहित अनेक देशों में मनाया जाता है।

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