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क्या आपने कभी सोचा है, स्मार्टफोन में क्यों होती है तीन कैमरों की जरूर, जानें इसके क्या है लाभ - Prakhar Prahari
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क्या आपने कभी सोचा है, स्मार्टफोन में क्यों होती है तीन कैमरों की जरूर, जानें इसके क्या है लाभ

दिल्लीः मौजूदा समय में स्मार्टफोन में दिए जाने वाले कैमरे स्मार्टफोन की बिक्री के लिए लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हो गए हैं। इसी के मद्देनजर स्मार्टफोन निर्माता कंपनियां अपनी क्वालिटी में लगातार सुधार करती रहती हैं। पिछले कुछ सालों से स्मार्ट फोन में ज्यादा कैमरे का चलन चल गया है। ड्यूल कैमरे वाले स्मार्टफोन बहुत आम हो गए हैं, लेकिन स्मार्टफोन निर्माता कंपनियां यहीं नहीं रुकी हैं। स्मार्टफोन में ट्रिपल कैमरा का चलन काफी बढ़ गया है। अब तो 4 या उससे ज्यादा कैमरे वाले स्मार्टफोन भी मार्केट में बिक रहे हैं। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि स्मार्टफोन में एक से अधिक कैमरे की जरूरत क्यों होती हैः-

आसान शब्दों में समझे तो ज्यादा कैमरों का मतलब बेहतर पिक्चर क्वालिटी और ऑप्टिकल जूम फंक्शनलिटी होता है। हर कैमरे में एक लेंस दिया गया होता है, जो कि एक वाइड शॉट या जूम इन शॉट कैप्चर करता है। वहीं कुछ स्मार्टफोन में एक्स्ट्रा कैमरे होते हैं जो कि लाइट की सेंसिटिविटी को बढ़ाने के लिए ब्लैक और व्हाइट कलर में में शूट कैप्चर करते हैं और ज्यादा डेप्थ में इंफॉर्मेशन देते हैं। अलग-अलग कैमरों के डाटा को एक क्लियर फोटो में शामिल किया जा सकता है। इससे शेलो डेप्थ फील्ड और कम रोशनी में बेहतर क्षमता आती है।

आपको बता दें कि स्मार्टफोन निर्माता कंपनियों ने फोन को स्लिम रखने के लिए उसमें ज्यादा कैमरे शामिल करने का ऑप्शन चुना है। हर कैमरे का अलग प्रकार का लेंस होता है, जिसकी अपनी फिक्स फोकल लेंथ होती है। वहीं DSLR जैसे बड़े कैमरों में लेंस होते हैं जो एक वाइडर शॉट को कैप्चर करने या किसी स्पेसिफिक एरिया में कैप्चर करने के लिए जूम इन और आउट किया जा सकता है। यह देख सकते हैं कि जूम को एडजेस्ट करते हुए लेंस बैरल किस प्रकार बाहर जाता है या पीछे होता है। इसके चलते इसे ऑप्टिकल जूम के तौर पर जाना जाता है कि जूम इन और आउट करते हुए लेंस बैरल के ग्लास एलिमेंट फिजिकली एक दूसरे से आगे पीछे होते हैं। ऐसे लेंस आमतौर पर साइज में बड़े होते हैं लेकिन इससे सामान्य फोटोग्राफी में कोई दिक्कत नहीं होती है। वहीं जब बात स्मार्टफोन की होती है तो साइज बहुत ज्यादा मायने रखता है। इसलिए एक स्मार्टफोन में वेरिएबल फोकल लेंथ लेंस शामिल करने से एक कैमरा उभर कर आएगा जो कि फोन के साइज को काफी ज्यादा बढ़ा देगा। Samsung ने 2014 में Galaxy K Zoom में 10x ऑप्टिकल जूम प्रदान किया था, लेकिन वह ज्यादा पसंद नहीं किया गया।

यदि आप यह समझना चाहते हैं कि स्मार्टफोन में एक से ज्यादा कैमरों की जरूरत क्यों होती है, तो इसके लिए आपको सबसे पहले फोकल लेंथ और लेंस के एंगल व्यू के प्रभाव को समझने की जरूरत है। सीधे शब्दों में कहें, तो फोकल लेंथ लेंस के सेंटर के बीच की दूरी को दर्शाता है और वहां पर लाइट सेंसर कंव्रेज होता है। इस डिस्टेंस को मिलीमीटर में मापा जाता है। 24mm जैसे छोटे फोकल लेंथ वाले लेंस एक सीन को ज्यादा कैप्चर करते हैं। ऐसे में उनके पास एक वाइड एंगल व्यू होता है। फोकल लेंथ जितनी लंबी होगी तो व्यूइंग का एंगल उतना पतला होता है। ऐसे में किसी खास एरिया में फोटो को ज्यादा मैग्नीफाइड या जूम इन कर सकते हैं।

एक वेरिएबल फोकल लेंथ लेंस वाइड शॉट और क्लोजअप के बीच जूम इन और आउट करते हुए फोकल लेंथ बदलता है। DSLR फोटोग्राफी में 18-55 mm किट लेंस दिए जाते हैं। इन नंबरों का मतलब यह है कि यह लेंस 18 mm लेंस जितना वाइड शूट कर सकता है, लेकिन जूम इन करने पर लेंस बैरल के अंदर के ग्लास एलिमेंट हिलते हैं। शॉट को 55 mm लेंस की फोकल लेंथ तक लिमिटेड कर देते हैं। जब ग्लास मूव करता है तो फोकल लेंथ बदलती है। एक फिक्स फोकल लेंथ लेंस में लेंस बैरल में कोई मूवेबल ग्लास एलिमेंट नहीं होता है। यानी कि आप इस लेंस का इस्तेमाल करके जूम इन और आउट नहीं कर सकते। इसमें सिर्फ एक फिक्स एंगल व्यू होता है। फिक्स फोकल लेंथ अप्रोच के चलते किस प्रकार स्मार्टफोन निर्माता कंपनियां अपने फोन को स्लिम रखती हैं। सॉफ्टवेयर के जरिए एक दूसरे के साथ मिलकर काम करने के लिए अलग-अलग फोकल लेंथ वाले कई कैमरे रखने के लिए यह पता चलता है कि सब कुछ एक बड़े कैमरा बंप में दिया गया है।

क्या होता है हर कैमरा का कामः

वाइड एंगल लेंस: कैमरा डिजाइन हर कंपनी के फोन में अलग-अलग होता है। अगर एक सिंगल कैमरा स्मार्टफोन में एक फिक्स फोकल लेंथ के साथ वाइड एंगल लेंस दिया गया होता है। इस लेंस की स्मॉल फोकल लेंथ का मतलब होता है कि एक वाइडर एंगल व्यू जो ज्यादा कुछ किए बिना लैंडस्केप, स्ट्रीट फोटोग्राफी और ज्यादा लोगों के ग्रुप जैसी चीजों को शूट करने के लिए ठीक है। वाइड-एंगल लेंस बहुत ज्यादा लाइट प्रदान करते हैं और इससे एक डीप डेप्थ की फील्ड कैप्चर होती है, जिसका मतलब है कि शॉट में सब कुछ फोकस में होता है। LG G8 ThinQ में 27mm फोकल लेंथ के साथ एक वाइड एंगल लेंस दिया गया है जो कि ज्यादातर स्मार्टफोन के कैमरों में ऐसे लेंस के लिए स्टैंडर्ड है।

अल्ट्रा वाइड लेंस: यह लेंस एक स्टैंडर्ड वाइड एंगल लेंस से ज्यादा एडवांस है। इसका मतलब है कि आप एक सीन को ज्यादा कैप्चर कर सकते हैं। इसकी फोकल लेंथ बहुत कम होती है और यह देखने में ज्यादा वाइड एंगल लगता है। इस लेंस के साथ एक ऊंची बिल्डिंग के नीचे खड़े होकर पूरे स्ट्रक्चर को एक शॉट में फिट करना आसान हो जाता है। Samsung Galaxy S10+ में 12mm अल्ट्रा वाइड-एंगल लेंस दिया गया है जो कि रियल 123° वाइड फील्ड प्रदान करता है।

टेलीफोटो लेंस: वाइड-एंगल लेंस के अलग टेलीफोटो लेंस की फोकल लेंथ काफी ज्यादा होती है। यानी इससे आप पूरे सीन को कैप्चर करने वाला शॉट लेने की जगह आप एक खास एरिया में जूम कर सकते हैं। कुछ स्मार्टफोन दूसरे कैमरों के डाटा को मिलने के लिए सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हैं, जिससे एक स्मूथ जूम इफेक्ट क्रिएट किया जा सके, क्योंकि कैमरा यूनिट वाइड लेंस और टेलीफोटो लेंस के बीच स्विच करती है। Huawei P30 में 125mm फोकल लेंथ के साथ टेलीफोटो लेंस दिया गया है। यानी कि आप पिक्चर क्वालिटी खराब किए 5x तक जूम इन कर सकते हैं।

मोनोक्रोम सेंसर: मोनोक्रोम यानी ब्लैक एंड व्हाइट सेंसर में कोई कलर फिल्टर ऐरे नहीं होता दिया गया होता है। यानी यह कलर सेंसर के मुकाबले ज्यादा शार्प इमेज कैप्चर कर सकता है। मोनोक्रोम सेंसर लाइट के प्रति ज्यादा सेंसिटिव होता है जो कम लाइट में भी बेहतर होता है। रियल ब्लैक और व्हाइट कलर में ली गई फोटो शार्प और कंट्रास्ट से फुल होने के लिए जानी जाती हैं। जिस स्मार्टफोन इन कैमरा से लैस होते हैं उनमें शार्पनेस और कंट्रास्ट इंफॉर्मेशन ज्यादा इस्तेमाल होती है। इसमें बेहतर लाइटिंग और शार्पनेस के साथ फाइनल कलर इमेज तैयार करने के लिए कलर सेंसर से इमेज के साथ ब्लेंड किया जाता है।

टाइम ऑफ फ्लाइट कैमरा यानी डेप्थ सेंसर: टाइम ऑफ फ्लाइट कैमरा आमतौर पर एक डेप्थ सेंसर है। यह एक इन्फ्रारेड लाइट शूट करता है और चेक करता है कि लाइट को सब्जेक्ट तक पहुंचने में कितना समय लग रहा है और सेंसर पर वापस बाउंस करता है। इस डाटा का इस्तेमाल सब्जेक्ट और सराउंडिंग के डेप्थ में मैप तैयार करने के लिए होता है। यह डेप्थ सेंसर की इंफॉर्मेशन है, जिसका इस्तेमाल सॉफ्टवेयर के जरिए फोरग्राउंड और बैकग्राउंड को अलग करने के लिए होता है। इस प्रकार ब्लर बैकग्राउंड बोकेह इफेक्ट तैयार होता है। हर स्मार्टफोन में डेडिकेटेड टाइम ऑफ फ्लाइट कैमरा नहीं दिया गया होता है। कुछ कंपनियां कॉम्प्लेक्स एल्गोरिदम के जरिए सीन में डेप्थ चेक करने के लिए दूसरे कैमरों से इनफॉर्मेशन का इस्तेमाल करने का ऑप्शन चुनती हैं।

कैमरा कॉम्बिनेशन: कई कंपनियों की अपनी पसंद होती है कि वह अपने स्मार्टफोन में कितने कैमरे फिट करेंगी। वो अपने हिसाब से लेंस और सेंसर का कॉम्बिनेशन तय करती हैं। कुछ कैमरा कॉम्बिनेशन ऑप्टिकल फोकस के तौर पर पाने के लिए किया जाता है।

ड्यूल कैमरा: ड्यूल कैमरा सेटअप लंबे समय से मार्केट में। यह 2016 के बाद से काफी लोकप्रिय हुआ। उसके बाद से काफी सारे स्मार्टफोन में यह नजर आने लगा।

ट्रिपल कैमरा: ट्रिपल कैमरा के तौर पर स्मार्टफोन में सबसे ज्यादा लोकप्रिय कॉम्बिनेशन वाइड एंगल, टेलीफोटो और अल्ट्रा वाइड लेंस होता है। यह कॉम्बिनेशन ड्यूल कैमरा सेटअप पर तैयार होता है। इससे ज्यादा बेहतर चीजें निकलती हैं। इससे इमेज एक वाइडर एरिया को कवर करेगी और आप एक स्पेसिफिक प्वाइंट पर जूम इन कर सकते हैं। वहीं दूसरे कॉम्बिनेशन मोनोक्रोम सेंसर या डेडिकेटेड टाइम ऑफ फ्लाइट कैमरा के साथ वाइड + टेलीफोटो या वाइड + अल्ट्रा वाइड ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुए हैं।

वहीं जब लगता है कि तीन कैमरे काफी हैं तो क्वाड कैमरा स्मार्टफोन नजर आता है। इस पॉइंट पर वाइड एंगल, टेलीफोटो और अल्ट्रा वाइड लेंस मिलते हैं। उसके बाद मोनोक्रोम या टाइम ऑफ फ्लाइट कैमरा कॉम्बिनेशन है। हालांकि यह कोई स्टैंडर्ड नहीं है। Nokia 9 PureView में 5 कैमरा सेटअप दिया गया है। इसमें कलर सेंसर वाले दो कैमरे दिए गए हैं और मोनोक्रोम सेंसर वाले 3 कैमरे दिए गए हैं। प्रत्येक स्मार्टफोन निर्माता कंपनियां अपने स्मार्टफोन में अलग-अलग तरीके से कैमरों को सेट करती हैं।

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