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जानें कौन थे आदि गुरु शंकराचार्य, कामसूत्र के किस सवाल से भारती के आगे हो गए थे निरुत्तर - Prakhar Prahari
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जानें कौन थे आदि गुरु शंकराचार्य, कामसूत्र के किस सवाल से भारती के आगे हो गए थे निरुत्तर

देहरादूनः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को केदारनाथ धाम पहुंचे। मोदी पिछले चार साल में पांचवीं बार केदारनाथ धाम पहुंचे थे। उन्होंने यहां गर्भगृह में करीब 15 मिनट पूजा-अर्चना की। इसके बाद पीएम मोदी आदिगुरु शंकराचार्य के समाधि स्थल पहुंचे और वहां पर आदि गुरु शंकराचार्य की 12 फीट लंबी और 35 टन वजनी प्रतिमा का अनवारण किया। तो चलिए आपको बताते हैं कि कौन थे आदि गुरु शंकराचार्य और किस काम के लिए उन्हें जाना जाता है।

आदि गुरु शंकराचार्य के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने पूरे भारत में भ्रमण कर वेद-वेदांत और धर्म को फिर से स्थापित करने के लिए बड़े-बड़े विद्वानों को शास्त्रार्थ में हराया था। तो चलिए आपको बताते हैं कि कौन थे पूरे देश को एक सूत्र में बांधने  आदि गुरु शंकराचार्य शंकराचार्य, जिन्हें अपनी जिंदगी में एक महिला के आगे निरुत्तर होना पड़ा था।

आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म केरल के कालपी में कोई ढाई हजार साल पहले हुआ था। महज छह साल की उम्र में ही शंकराचार्य प्रकांड विद्वान हो गए थे और आठ  साल की उम्र में उन्होंने संन्यास ले लिया था। आदि गुरु शंकराचार्य को मां से संन्यास लेने की इजाजत नहीं मिल रही थी। एक दिन नदी किनारे मगरमच्छ ने शंकराचार्य का पैर पकड़ लिया। इसका फायदा उठाते हुए शंकराचार्य ने अपनी मां से कहा, “मुझे संन्यास लेने की आज्ञा दो, नहीं तो यह मगरमच्छ मुझे खा जाएगा। इस बात से डरकर उनकी मां ने उन्हें संन्यासी होने की इजाजत दे दी। जैसे ही मां से यह मंजूरी मिली, मगरमच्छ ने फौरन शंकराचार्य का पैर छोड़ दिया।“

बताया जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य भारत भ्रमण के दौरान जब काशी पहुंचे तो उन्होंने मशहूर विद्वान कुमारिल भट्‌ट के शिष्य और मिथिला के पंडित मंडन मिश्र को 42 दिन तक चले शास्त्रार्थ में हरा दिया। उस दौरान दोनों के बीच निर्णायक रही थीं, मंडन मिश्र की पत्नी उभय भारती।

बताया जाता है कि उभय भारती। हार-जीत के निर्णय से पहले किसी जरूरी काम से बाहर जाना पड़ा। उन्होंने बाहर जाने से पहले दोनों विद्वानों के गले में एक-एक फूल माला डालते हुए कहा था कि  ये दोनों मालाएं मेरी गैर मौजूदगी में आपकी हार-जीत का फैसला करेंगी। जब वे लौटीं तो उन्होंने माला देखकर शंकराचार्य को विजेता घोषित कर दिया। भारती ने फैसले की वजह पूछे जाने पर कहा, “जब भी कोई शास्त्रार्थ में हारने लगता है तो वह गुस्सा हो जाता है। इससे मेरे पति के गले की माला उनके क्रोध की तपन से सूख चुकी है, जबकि शंकराचार्य की माला पहले की तरह ही ताजी है। उन्होंने कहा, “जीवन में क्रोध से बचना चाहिए।“

जब मंडन मिश्र शास्त्रार्थ में हार गए तो उभय भारती ने शंकराचार्य से कहा, “मैं मंडन मिश्र की अर्धांगिनी हूं, अभी आपने आधे को ही हराया है। मुझसे भी आपको शास्त्रार्थ करना होगा। उन्होंने शंकराचार्य के हर सवाल का जवाब दिया। हालांकि, 21वें दिन भारती को यह लगने लगा कि अब वे शंकराचार्य से हार जाएंगी। तब उन्होंने शंकराचार्य से पूछा-काम क्या है? इसकी प्रक्रिया क्या है और इससे संतान कैसे पैदा होती है? शंकराचार्य सवाल की गहराई समझते हुए नतमस्तक हो गए। उन्होंने उस वक्त अपनी हार मान ली।

इसके बाद शंकराचार्य ने भारती से जवाब के लिए छह माह का समय मांगा। बताया जाता है कि भारती के इस सवाल का जवाब जानने के लिए शंकराचार्य ने योग के जरिए शरीर त्याग कर एक मृत राजा की देह धारण की और उसकी पत्नी के साथ कई दिनों तक रहने के बाद कामशास्त्र के बारे में जाना। इसके बाद उन्होंने फिर भारती से शास्त्रार्थ कर उनके सवाल का जवाब दिया और उन्हें पराजित किया। इसके बाद मंडन मिश्र उनके शिष्य बन गए।

आदि गुरु शंकराचार्य महान दार्शनिक थे और उन्होंने अद्वैत वेदांत को मजबूती दी और भगवद्गीता, उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर ऐसी टीकाएं लिखीं, जो बेहद चर्चित रहीं। शंकराचार्य ने देश के चार कोनों में चार मठों की स्थापना की, जो तीर्थयात्राओं के लिए बेहद पवित्र और लोकप्रिय माने जाते हैं। ये मठ हैं उत्तर में ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम, दक्षिण में श्रृंगेरी पीठ, पश्चिम में द्वारिका शारदा पीठ और पूर्व में जगन्नाथपुरी गोवर्धन पीठ। इन मठों को चलाने वाले आज शंकराचार्य कहे जाते हैं। 32 साल की कम उम्र में शंकराचार्य ने केदारनाथ के पास ही समाधि ले ली थी।

उत्तराखंड में 2013 में आई भीषण तबाही के दौरान आदि शंकराचार्य की समाधि क्षतिग्रस्त हो गई थी। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिशा- निर्देशों के तहत ही समाधि स्थली का विशेष डिजाइन तैयार किया गया। केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे छह मीटर जमीन की खुदाई कर समाधि तैयार की गई है। मैसूर के मूर्तिकार योगीराज शिल्पी व उनके बेटे अरुण ने कृष्णशिला पत्थर से प्रतिमा तैयार की है।

Shobha Ojha

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