दिल्लीः देशभर में चार नवंबर यानी गुरुवार को महालक्ष्मी पूजा और दीपावली पर्व मनाया जाएगा। इस त्योहार को लेकर अलग-अलग वैदिक ग्रंथों में अगल-अलग बातें लिखी हुई हैं। भागवत और विष्णुधर्मोत्तर पुराण के मुताबिक कार्तिक मास की अमावस्या के दिन समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं, इसलिए लक्ष्मी पूजा की परंपरा है। वहीं, वाल्मीकि रामायण के मुताबिक इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का विवाह हुआ था। स्कंद और पद्म पुराण में बताया गया है कि इस दिन दीप दान करना चाहिए, इससे पाप खत्म हो जाते हैं।
वैदिक ग्रंथों के मुताबिक दीपावली पर दीपक पूजन करने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। इस दिन लक्ष्मी पूजा से पहले कलश, भगवान गणेश, विष्णु, इंद्र, कुबेर और देवी सरस्वती की पूजा की परंपरा है। ज्योतिषियों के मुताबिक इस बार दिवाली पर तुला राशि में चार ग्रहों के आ जाने से चतुर्ग्रही योग बन रहा है। इस दिन की गई पूजा का शुभ फल जल्दी ही मिलेगा। तो चलिए आपको बताते हैं गुरुवार को दीपावली के मौके पर शुभ मुहूर्त और लक्ष्मी माता की पूजा की विधि
पूजा विधिः
सबसे पहले खुद ऊपर, आसन और पूजन सामग्री पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से जल का छिड़काव कर यह शुद्धिकरण मंत्र पढ़ें-
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा। यःस्मरेत् पुण्डरीकाक्षं सबाह्याभ्यंतर: शुचिः।।
आचमन करें और हाथ धोएः
ॐ केशवाय नमः, ॐ माधवाय नम:, ॐनारायणाय नमः ऊँ ऋषिकेशाय नम:
अनामिका अंगुली से चंदन/रोली लगाएः
चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।
कलश पूजाः
कलश में जल भरकर उसमें सिक्का, सुपारी, दुर्वा, अक्षत, तुलसी पत्र डालें फिर कलश पर आम के पत्ते रखें। नारियल पर वस्त्र लपेटकर कलश पर रखें। हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर वरुण देवता का आहवान मंत्र पढ़कर कलश पर छोड़ेः
आगच्छभगवान् देवस्थाने चात्र स्थिरोभव।
यावत् पूजा समाप्ति स्यात् तावत्वं सुस्थिरो भव।।
इसके बाद कलश में कुबेर, इंद्र सहित सभी देवी-देवताओं का स्मरण कर के आव्हान और प्रणाम करें।
भगवान गणेश, विष्णु, इंद्र और कुबेर पूजा विधिः
लक्ष्मी जी की पूजा से पहले भगवान गणेश का पूजन करें। ॐ गं गणपतये नम: मंत्र बोलते हुए गणेश जी को स्नान करवाने के बाद सभी पूजन सामग्री चढ़ाएं। इसके बाद हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर कुबेर, इंद्र और भगवान विष्णु की मूर्ति पर चढ़ाते हुए मंत्र बोलें, सर्वेभ्यो देवेभ्यो स्थापयामि। इहागच्छ इह तिष्ठ। नमस्कारं करोमि। फिर सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम: बोलते हुए सभी देवताओं पर पूजन सामग्री चढ़ाएं।
मां सरस्वती की पूजाः
अक्षत-पुष्प लेकर सरस्वती जी का ध्यान कर के आव्हान करें। फिर ऊँ सरस्वत्यै नम: मंत्र बोलते हुए एक-एक कर के सभी पूजन सामग्री चढ़ाएं। साथ ही इसी मंत्र से पेन, पुस्तक और बहीखाता की पूजा करें। इसके बाद लक्ष्मी पूजा शुरू करें।
दीपमालिका पूजनः
एक थाली लें और उसमें 11, 21 या उससे ज्यादा दीपक जलाकर महालक्ष्मी के पास रखें। इसके साथ ही एक फूल और कुछ पत्तियां हाथ में लें। उसके साथ सभी पूजन सामग्री भी लें। इसके बाद ॐ दीपावल्यै नम: इस मंत्र बोलते हुए फूल पत्तियों को सभी दीपकों पर चढ़ाएं और दीपमालिकाओं की पूजा करें।
दीपकों की पूजा कर संतरा, ईख, धान इत्यादि पदार्थ चढ़ाएं। धान भगवान गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी-देवताओं को भी अर्पित करें।
लक्ष्मी पूजा के शुभ मुहूर्त
दफ्तर– पूर्वाह्न 11.20 से अपराह्न 1.27
अपराह्न 2.50 बजे से शाम 4.20
दुकान– अपराह्न 2,50 से शाम 4.20
शाम 5.34 से रात 8.10
फैक्ट्री– सुबह नौ से 11.19
रात 11.40 से 12.31
घर– अपराह्न 2.50 से 4.20
शाम 5.34 से रात 8.10
रात 11.40 से 12.31
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