ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन (फाइल फोटो)
लंदनः ग्लासगो (स्कॉटलैंड) में 12 नवंबर तक संयुक्त राष्ट्र की क्लाइमेट चेंज पर समिट (COP26) होने वाली है। इससे पहले ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने जलवायु परिवर्त को लेकर एक बड़ी चेतावनी दी है।
इटली की राजधानी रोम में जी-20 शिखर सम्मेलन की समाप्ति के ठीक बाद जॉनसन ने कहा, “यदि ग्लासगो में होने वाली समिट नाकाम हो जाती, तो पूरी कोशिश ही नाकाम हो जाएगी। इसका सीधा सा मतलब यह है ग्लासगो में पेरिस समझौते से आगे की बात होगी और अगर इस पर सहमति नहीं बनती तो दुनिया के सामने क्लाइमेट चेंज को लेकर नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।“
आपको बता दें कि स्कॉटलैंड के ग्लासगो में आज से दो दिवसीय COP26 समिट शुरू हो रही है। भारत की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसमें भाग ले रहे हैं। अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या वैश्विक नेता जॉनसन की इस टिप्पणी को गंभीरता से लेते हैं और किसी ठोस नतीजे पर पहुंचेंगे।
इटली की राजधानी रोम में जी-20 देशों की बैठक कल ही समाप्त हुई है। वैश्विक अर्थव्यवस्था की पावर इंजिन कहे जाने वाली इस समिट में भी क्लाइटमेट चेंज को लेकर चिंताएं जताई गई। इस समिट में ग्लोबल वॉर्मिंग का लेवल 1.5 डिग्री सेल्सियस कम करने पर सहमति व्यक्त की गई।
सीओपी26 (COP26) के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने भी कहा था कि ग्लासगो आखिरी और सबसे अच्छी उम्मीद है। वास्तव में जॉनसन ने आलोक की ही बात को आगे बढ़ाया है।
आपको बता दें कि 2015 में पेरिस एग्रीमेंट हुआ था। इसका एक ही मकसद था कि कार्बन उत्सर्जन कम करके दुनिया को ग्लोबल वॉर्मिंग से बचाना था। इसमें तय किया गया था सभी देश मिलकर सख्त कदम उठाएं और कम से कम 2 डिग्री सेल्सियस तो तापमान कम करने का टारगेट हासिल किया जाए। बदकिस्मती से यह समझौता कागज पर जितना कारगर दिखता है, हकीकत में देश इसे लागू करने में नाकाम रहे। सब अपनी-अपनी मजबूरियां गिनाते रहे, लेकिन विश्व पर्यावरण की चिंता किसी ने नहीं की।
सीओपी26 के अध्यक्ष आलोक ने कहा था, “मसला अमीर या गरीब देशों का नहीं है, अब तो सब इससे प्रभावित हो रहे हैं और नतीजे भी देख रहे हैं। मैं सिर्फ इतना कहूंगा कि अगर हम अब भी नहीं चेते तो मानवता हमें कभी माफ नहीं करेगी।“
उधर, ब्रिटिश प्रधानमंत्री जॉनसन वादा कर चुके हैं कि उनकी सरकार 2050 तक नेट जीरो एमिशन का लक्ष्य हासिल कर लेगी। यानी ब्रिटेन से कार्बन उत्सर्जन नहीं के बराबर होगा। अमेरिका, सऊदी अरब और रूस भी यही वादा कर रहे हैं। जी-20 देश कह रहे हैं कि वह कोयले पर निर्भरता कम करेंगे।
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