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संघ प्रमुख भागवत ने जनसंख्या नीति पर दिया बल, बोले, जनसंख्या दर में अंतर के कारण बढ़ी मुस्लिम आबादी - Prakhar Prahari
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संघ प्रमुख भागवत ने जनसंख्या नीति पर दिया बल, बोले, जनसंख्या दर में अंतर के कारण बढ़ी मुस्लिम आबादी

नागपुरः आज बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक विजयादशमी के पर्व है। साथ ही आज आरएसएस (RSS) यानी राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ का 96वां स्थापना दिवस भी है। इस मौके पर संघ मुख्यालय नागपुर में आयोजित कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने देशवासियों को संबोधित किया। उन्होंने अपने संबोधन में जनसंख्या नीति पर बल दिया और कहा कि जनसंख्या दर में अंतर के कारण मुस्लिम आबादी बढ़ी। उन्होंने कहा कि देश की युवा पीढ़ी को भारत के इतिहास का ज्ञान होना चाहिए ताकि उससे सीखकर वे आगे बढ़ा जा सके।

डॉ. भागवत ने कहा कि जनसंख्या नीति होनी चाहिए। हमें लगता है कि इस बारे में एक बार फिर विचार करना चाहिए। अगर हम इतना बढ़ेंगे तो पर्यावरण कितना झेल पाएगा। 50 साल आगे तक विचार करके रणनीति बनानी चाहिए। जैसे जनसंख्या एक समस्या बन सकती है, वैसे ही जनसंख्या का असंतुलन भी समस्या बनती है।

संघ प्रमुख ने कहा कि 1951 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अंतर के कारण देश की जनसंख्या में जहां भारत में उत्पन्न मत पंथों के अनुयायियों का अनुपात 88 प्रतिशत से घटकर 83.8 फीसदी रह गया है। वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 9.8 प्रतिशत से बढ़कर 14.24 फीसदी हो गया है।

उन्होंने कहा कि यह वर्ष हमारी स्वाधीनता का 75वां वर्ष है। 15 अगस्त 1947 को हम स्वाधीन हुए। उन्होंने कहा, “कालांतर में सुबह की कल्पना ढीली पड़ी, उसके कारण स्वतंत्रता होना, अपना स्व क्या है, ये पता नहीं। स्व को भूल गए तो स्वजनों को भी भूल गए। जो विविधता थी उसकी चौड़ी खाइयां बन गईं, हमको बांटने वाली। इसका लाभ विदेशियों ने लिया और जिस दिन हम स्वतंत्र हुए उस दिन स्वतंत्रता के आंदोलन के साथ-साथ दुखद इतिहास भी रहा। देश का विभाजन हुआ। जिस शत्रुता के चलते विभाजन हुआ, उसकी पुनरावृत्ति नहीं करनी है।“

संघ प्रमुख ने कहा कि देश के विभाजन की टीस अभी तक नहीं गई है। वह अत्यंत दुखद इतिहास है, लेकिन इस इतिहास का सामना करना चाहिए। खोई हुई एकता और अखंडता को दोबारा लाने के लिए इस इतिहास को जानना चाहिए। उस इतिहास को विशेषकर नई पीढ़ी को जानना चाहिए, ताकि उसकी पुनरावृत्ति न हो। खोया हुआ वापस आ सके। पहले हमने अपने स्व, स्वजनों को भुला दिया तो भेद जर्जर हो गए। इसलिए दूर देशों से मुठ्‌ठी भर लोग आए और हम पर आक्रमण कर दिया। ऐसा एक बार नहीं बार-बार हुआ। ब्रिटिशों के अपने यहां राजा बनने तक यही इतिहास हुआ।

उन्होंने कहा कि व्यवस्था तो व्यवस्था है, लेकिन व्यवस्था बदलने के साथ-साथ या उसके पहले मन बदलना चाहिए। समाज के भेद बढ़ाने वाली भाषा नहीं चाहिए, जोड़ने वाली भाषा चाहिए। हर प्रसंग पर भाष्य करते समय प्रेम को बढ़ाने वाली भाषा होनी चाहिए। मन से किसी के पास जाने के लिए तो बातचीत करनी पड़ेगी। इसलिए पर्व-त्योहारों में आपस का मेलजोल, मिल जुलकर पुण्य तिथियां, जयंतियां मनानी चाहिए। पर्व-त्योहारों पर एक-दूसरे के घर जाना, मिलना, इस प्रकार के काम हों। ये काम स्वंयसेवक कर रहे हैं, क्योंकि भेदरहित समाज स्वातंत्र के टिकने और राष्ट्र के एकात्मक का आधार है।

सीखों के नौवें गुरु तेज बहादुर जी को याद करते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि तेग बहादुर जी दिल्ली के बादशाह के सामने और अपनी धर्म श्रद्धा का परिचय देते हुए उन्होंने अपना सिर दे दिया। उन्होंने कहा कि भारत वर्ष में सबकी पूजा स्वीकार होगी। कोई जबरदस्ती नहीं कर सकता। सनातन काल से जो आकाशगंगा यहां चली आ रही है, वे उसके सूर्य थे। मनुष्य सृष्टि को एक साथ सुखी करने वाला ये जो धर्म है, उसका उद्भव अपने आप हुआ। यह अनुभूति आधारित है। इसलिए हम जानते हैं। उस स्वतंत्र सुखी जीवन की कल्पना ज्ञानेश्वर महाराज ने की है, लेकिन आधार क्या है- दुष्टों के बारे में भी ये कहा कि उनका टेढ़ापन जाए।

उन्होंने कहा कि स्वतंत्र भारत का चित्र कैसा हो, भारत की परंपरा के अनुसार समान सी कल्पनाएं मन में लेकर, देश के सभी क्षेत्रों से सभी जातिवर्गों से निकले वीरों ने तपस्या त्याग और बलिदान के हिमालय खड़े किए। समाज की आत्मीयता तथा समता आधारित रचना चाहने वाले सभी को प्रयास करने पड़ेंगे। सामाजिक समरसता के वातावरण को निर्माण करने का कार्य संघ के स्वयंसेवक सामाजिक समरसता गतिविधियों के माध्यम से कर रहे हैं।

डॉ. भागवत ने कहा कि घर की स्वच्छता तो हम देख लेंगे, अपने मोहल्ले की स्वच्छता तो भी देखना पड़ेगा। दिखने वाली स्वच्छता और जहां कोई न देखे, वहां स्वच्छता नहीं, ऐसा लोक स्वास्थ्य भी नहीं होना चाहिए। पर्यावरण के साथ मेल खाने वाली संस्कृति चाहिए। हर जगह प्लास्टिक से प्रदूषण लाएंगे तो सांस विषैली हो जाएगी। इसलिए हमारे यहां पानी का उपयोग ठीक से करना। हम पानी को अमर्यादित खर्च करने लगे तो सबको पानी नहीं मिलेगा। अपने मत, पंथ, जाति, भाषा, प्रान्त आदि छोटी पहचानों के संकुचित अहंकार को हमें भूलना होगा।

उन्होंने तालिबान का उल्लेख करते हुए कहा कि जो बातें हो रही हैं, उसके मुताबिक कभी लोग कहते हैं कि तालिबान बदल गया है, कभी कहते हैं कि पहले जैसा ही है। उसका समर्थन करने वालों में रूस भी था, चीन और पाकिस्तान तो आज भी हैं। उन्होंने कहा कि तालिबान बदला भी होगा, पाकिस्तान बदला है क्या, ऐसा तो बिल्कुल नहीं है। चीन का इरादा भारत के प्रति बदला है क्या, ऐसा तो बिल्कुल नहीं है। प्रेम, अहिंसा से सब ठीक होता है, इसे मानना चाहिए, लेकिन अपनी तैयारी भी पूर्ण रखें। सीमा सुरक्षा और चाक चौबंद करना है।

डॉ. भागवत ने कहा कि साइबर सिक्योरिटी का मामला भी खड़ा हो गया है। उसके बारे में हमें बहुत आगे जाना पड़ेगा और हम जाएंगे। मैं जम्मू-कश्मीर होकर आया। वहां 370 हटने के सामान्य जनता को अच्छे लाभ मिल रहे हैं। भारत से किसी भी भारतीय का रिश्ता लेन-देन का नहीं है। हम भारत माता के पुत्र हैं। हम भारत के अंदर हैं।

संघ प्रमुख ने कहा कि आतंकियों की गतिविधियों का बंदोबस्त भी करना पड़ेगा, चुन-चुन कर जैसे पहले करते थे। मनोबल गिराने के लिए वे लक्षित हिंसा कर रहे हैं। उनका उद्देश्य एक ही है कि अपना डर पैदा करना। शासन को भी बड़ी चुस्ती से इसका बंदोबस्त करना पड़ेगा। हिंदू समाज के अपने भी कुछ प्रश्न है। मंदिरों की स्थिति बहुत अच्छी नही है, लेकिन देश के अलग-अलग भागों में अलग-अलग स्थित है।

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