दिल्लीः इस साल तीन अर्थशास्त्रियों को अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया है। इन तीनों अर्थशास्त्रियों के नाम हैं डेविड कार्ड, जोशुआ डी एंग्रिस्ट और गुइडो डब्ल्यू इम्बेंस। इन तीनों को इनके अनपेक्षित प्रयोगों, या तथाकथित “नेचुरल एक्सपेरिमेंट्स” से निष्कर्ष निकालने पर काम करने के लिए अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार मिला है। आपको बता दें कि पुरस्कार का 50 फीसदी डेविड कार्ड को दिया गया है, जबकि दूसरा आधा हिस्सा संयुक्त रूप से एंग्रिस्ट और इम्बेन्स को दिया गया।

डेविड कार्ड बर्कले में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से संबंधित हैं। वहीं जोशुआ एंग्रिस्ट, मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से और गुइडो इम्बेंस स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से जुड़े हैं। कार्ड कनाडाई मूल हैं, एंग्रिस्ट एक अमेरिकी नागरिक हैं जबकि इम्बेन्स की राष्ट्रीयता डच है।

रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने कहा कि इन तीनों अर्थशास्त्रियों ने इकनॉमिक साइंसेज में अनुभवजन्य/प्रयोगसिद्ध कार्य को पूरी तरह से नया रूप दिया है। आर्थिक विज्ञान समिति के अध्यक्ष पीटर फ्रेड्रिक्सन ने कहा, ‘‘समाज के लिए अहम सवालों के संबंध में कार्ड के अध्ययन और एंग्रिस्ट तथा इम्बेन्स के पद्धतिगत योगदान से पता चला है कि प्राकृतिक प्रयोग, ज्ञान का एक समृद्ध स्रोत हैं। उनके शोध ने महत्वपूर्ण सवालों के जवाब देने की हमारी क्षमता में काफी सुधार किया है, जो समाज के लिए बहुत फायदेमंद है।’’

 

  • अर्थसास्त्र का सिद्धांत है कि जैसे ही आप मिनिमम वेज बढ़ाते हैं, तो दुकानदार और कारखाने के मालिक कम लोगों को रोजगार देंगे, क्योंकि उनको ज्यादा तनख्वाह देनी पड़ेगी। यानी जैसे ही मिनिमम वेज बढ़ेगा, बेरोजगारी भी बढ़ेगी। कार्ड ने अपने सहयोगी के साथ मिलकर इस थ्योरी के संबंध में अमेरिका के दो पड़ोसी राज्यों में एक टेस्ट किया था। इन दोनों राज्यों में से एक में मिनिमम वेज बढ़ाया गया था और दूसरे में नहीं। अपनी स्टडी में कार्ड ने पाया कि जहां मिनिमम वेज बढ़ाया गया है, वहां बेरोजगारी में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई।
  • वहीं जोशुआ और गुइडो ने ‘कॉजल रिलेशनशिप’ पर स्टडी की थी। यानी किसी एक चीज का दूसरी चीज पर असर। इकोनॉमिक्स में ‘कॉजल रिलेशनशिप’ का बहुत महत्व है, क्योंकि इसी आधार पर आप किसी पॉलिसी या नीति की सफलता का आकलन कर पाएंगे। इसकी तकनीक जोशुआ और गुइडो ने विकसित की है।

आपको बता दें कि  नोबेल पुरस्कार वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के आधार पर दिए जाते हैं। अल्फ्रेड नोबेल ने अपनी वसीयत में कहा था कि उनकी सभी पूंजी का एक फंड बनाकर उससे हर साल मानव जाति को सबसे बड़ा लाभ पहुंचाने वालों को पुरस्कार दिया जाएं। इस फंड को पांच बराबर भागों में बांटकर पांच अलग-अलग फील्ड में उन्नत कार्य करने वालों को ये राशि दी जाए। ये फील्ड हैं फिजिक्स, फिजियोलॉजी/मेडिसिन, केमिस्ट्री, साहित्य और शांति। अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत में अर्थशास्त्र में पुरस्कार दिए जाने का कोई जिक्र नहीं था।

अब सवाल उठता है, तो फिर क्यों दिया जाता है अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कारः दरअसल 1968 में स्वीडन का स्वेरिगेस रिक्सबैंक अपनी 300वीं वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए नोबेल फाउंडेशन को एक बड़ी राशि दान में दी थी। इस राशि का इस्तेमाल अल्फ्रेड नोबेल की याद में एक पुरस्कार स्थापित करने के लिए किया जाना था। अगले ही साल पहली बार इस राशि से इकोनॉमिक्स की फील्ड में पुरस्कार दिया गया। बैंक ने पुरस्कार के विजेताओं का सिलेक्शन करने की जिम्मेदारी स्वीडिश अकादमी ऑफ साइंसेस को दी। आपको बता दें कि यही अकादमी फिजिक्स और केमिस्ट्री का नोबेल भी देती है।

अब सवाल यह उठता है कि क्या यह नोबेल पुरस्कार नहीं हैः इसका सीधा जवाब हां है। नोबेल पुरस्कार की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, इकोनॉमिक्स की फील्ड में दिया जाने वाला पुरस्कार नोबेल नहीं है। 1968 में जब इस पुरस्कार की स्थापना की गई थी, तब इसे ‘द स्वेरिगेस रिक्सबैंक प्राइज इन इकोनॉमिक साइंसेस इन मेमोरी ऑफ अल्फ्रेड नोबेल’ कहा जाता था।

हालांकि इसके विजेताओं के सिलेक्शन की पूरी प्रोसेस ठीक उसी तरह है, जिस तरह दूसरी फील्ड के पुरस्कार देते वक्त फॉलो की जाती है। साथ ही इसके विजेताओं की घोषणा भी बाकी विजेताओं के साथ ही की जाती है और पुरस्कार भी नोबेल के बाकी विजेताओं के साथ एक ही सेरेमनी में दिया जाता है, लेकिन तकनीकी रूप से यह नोबेल पुरस्कार नहीं है।

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