दिल्लीः आखिरकार सरकारी विमानन कंपनी एअर इंडिया बिक गई। दिवालिया के कगार पर पहुंच चुकी एअर इंडिया 68 साल बाद एक बार फिर टाटा ग्रुप की हो गई है। इस मामले से जुड़े सूत्रों ने बताया कि सरकार ने टाटा संस की बोली को स्वीकार कर लिया है। आपको बता दें कि सरकार इसमें पूरी 100 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के लिए टेंडर बुलाया था। वहीं सरकार एअर इंडिया की दूसरी कंपनी एअर इंडिया सैट्स (AISATS) में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचेगी।
एअर इंडिया की निलामी के लिए गठित समिति में केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण, वाणिज्यमंत्री मंत्री पियूष गोयल और एविएशन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया शामिल हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सरकार ने एअर इंडिया का रिजर्व प्राइस 15 से 20 हजार करोड़ रुपए तय किया था।
निलामी के दौरान टाटा ग्रुप ने स्पाइस जेट के चेयरमैन अजय सिंह से करीबन तीन हजार करोड़ रुपए ज्यादा की बोली लगाई थी। इस तरह करीब 68 साल बाद एअर इंडिया की घर वापसी हो गई है। एअर इंडिया के लिए बोली लगाने की आखिरी तारीख 15 सितंबर थी। उसी समय से उम्मीद की जा रही थी कि टाटा ग्रुप एअर इंडिया को खरीद सकता है।
आपको बता दें कि टाटा ग्रुप ने ही 1932 में एअर इंडिया को शुरू किया था और जेआरडी टाटा इसके फाउंडर थे। वे खुद एक पायलट थे। उस समय इसका नाम टाटा एअर सर्विस रखा गया। 1938 तक कंपनी ने अपनी घरेलू उड़ानें शुरू कर दी थीं। वहीं द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इसे सरकारी कंपनी बना दिया गया। आजादी के बाद सरकार ने इसमें 49 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी थी।
टाटा ग्रुप के साथ हुई इस डील के तहत एअर इंडिया का मुंबई में स्थित हेड ऑफिस और दिल्ली का एयरलाइंस हाउस भी शामिल है। मुंबई के ऑफिस की मार्केट वैल्यू 1,500 करोड़ रुपए से ज्यादा है। मौजूदा समय में एअर इंडिया देश में 4,400 और विदेशों में 1,800 लैंडिंग और पार्किंग स्लॉट कंट्रोल करती है।
दिवालियापन की कगार पर पहुंच चुकी एअर इंडिया पर भारी -भरकम कर्ज है सरकार कई सालों से इसे बेचने की योजना में फेल हो रही थी। सरकार ने 2018 में 76 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने के लिए बोली मंगाई थी। हालांकि, तब सरकार ने इसका मैनेजमेंट कंट्रोल अपने पास रखने की बात कही थी, लेकिन जब किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई तो सरकार ने मैनेजमेंट कंट्रोल के साथ इसे 100 प्रतिशत बेचने का फैसला किया। हाल में विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा था कि 15 सितंबर के बाद बोली लगाने की तारीख नहीं बढ़ाई जाएगी।
सरकार ने सबसे पहले 2000 में एअर इंडिया को बेचने का फैसला किया गया था। उस समय देश में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व एनडीए (NDA) यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार थी और अरुण शौरी विनिवेश मंत्री थे। उस समय केंद्र सरकार ने मुंबई के सेंटॉर होटल सहित कई कंपनियों का विनिवेश किया था। सरकार ने 27 मई 2000 को एअर इंडिया में 40 फीसदी हिस्सा बेचने का फैसला किया था।
इसके साथ ही सरकार ने 10 प्रतिशत हिस्सा कर्मचारियों को शेयर देने के रूप में और 10 फीसदी हिस्सा घरेलू वित्तीय संस्थानों को देने का फैसला किया था। इसके बाद सरकार की हिस्सेदारी एअर इंडिया में घटकर 40 प्रतिशत रह जाती। तब से पिछले 21 साल से एअर इंडिया को बेचने की कई बार कोशिश हुई, लेकिन पर हर बार किसी न किसी कारण से यह मामला अटक गया।
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